बिलासपुर: केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े तीन विधेयकों के विरोध में किसान हंगामा कर रहे हैं. इधर विपक्षी पार्टियों ने भी सरकार पर हमला बोला है. देश के अलग-अलग हिस्सों में नए कृषि बिल को लेकर विरोध देखने को मिल रहा है. ETV भारत ने वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता नंद कश्यप की जुबानी कृषि विधेयकों की बारीकियों और विरोध की मुख्य वजहों को टटोलने की कोशिश की है.
सामाजिक कार्यकर्ता नंद कश्यप से खास चर्चा
सवाल: नए कृषि बिल को लेकर विरोध का क्या कारण है.
जवाब:मुख्य विरोध के सवाल पर जवाब देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता नंद कश्यप ने कहा कि मुख्य विरोध सरकार की नीयत को लेकर है. सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदी के सिस्टम को खत्म करना चाहती है. सरकार ने परोक्ष रूप से मंडी को बिचौलिया कहा है. सरकार ने सरकार बनने से पहले नई मंडियों के निर्माण की भी बात कही थी और अब मंडी सिस्टम को खत्म करना चाहती है. अभी जो नया बिल आया है, उसमें यह कहने-सुनने में तो अच्छा लग रहा है कि किसानों को बाजार दिया जाएगा, लेकिन सच्चाई यह है कि यह मुकाबला अब सीधे तौर पर पूंजीपतियों और संघर्षरत किसानों के बीच होगा. पुरानी सरकारों ने MSP को भले ही कोई कानूनी शक्ल ना दिया हो, लेकिन किसान MSP को लेकर प्रोटेक्टेड थे. अभी नए बिल के माध्यम से किसानों के इस सुरक्षा कवच को हटा दिया गया है, देशभर में व्यापक विरोध की यही प्रमुख वजह है.
सवाल:MSP के मुद्दे पर सरकार खुल कर कह रही है कि धोखा नहीं होगा.
जवाब:इस मुद्दे पर नंद कश्यप ने बात करते हुए कहा कि MSP से कम की खरीदी संज्ञेय अपराध होगा. जो विधेयक में नहीं है. कश्यप ने कहा कि अलग-अलग विधेयकों के माध्यम से सरकार किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी और मिनिमम सपोर्ट प्राइस जैसे तमाम सिस्टम को खत्म करना चाहती है. देश के किसान यह बखूबी समझ रहे हैं कि यदि मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा, तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी आसान नहीं होगी. इसलिए इस नए विधेयक का पुरजोर विरोध हो रहा है. कश्यप ने कहा कि सरकार वैसे ही अपनी कई सार्वजनिक संस्थाओं को निजी हाथों में सौंप रही है, यह परोक्ष रूप से सरकार की अपनी ही आलोचना है.
सवाल: विधेयक किस तरह मुनाफा का माध्यम बनेगा?
जवाब:नंद कश्यप ने कहा कि नया विधेयक अनाज को एसेंशियल कमोडिटी से हटाकर निजी खरीदार को असीमित संचय की छूट देता है. इसे अब सरकार ने कानून बनाकर किसानों की परेशानी और ज्यादा बढ़ा दी है. सामाजिक कार्यकर्ता ने तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार के समय का उदाहरण देते हुए कहा कि उन दिनों PUCL के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई गई थी, जिसमें एक तरफ अनाज के गोदामों में भरे होने और दूसरी ओर देश में लोगों के भूखे होने की बात कही थी, जिसके बाद मिड डे मील और सस्ता अनाज वितरण का काम शुरू हुआ था. आज भी देश में 40 से 50 करोड़ लोगों को सब्सिडाइज्ड अनाज की जरूरत है, लेकिन नए विधेयक के माध्यम से जो नियम में छूट दी गई है, यह जनहित के लिहाज से सही नहीं है.
सवाल: किसान अपने उत्पाद को कहीं भी बेच सकता हैं, ये तकनीकी रूप से कितना संभव है?
जवाब:किसान पहले भी जहां चाहे अपने उत्पाद को बेच सकता था, इसमें कोई नई बात नहीं है. दरअसल किसान अपने खेत में 4 महीने काम करता है. वह तय समय में अनाज को बेचकर दोबारा फील्ड वर्क में लग जाता है, इसलिए उसे MSP का प्रोटेक्शन चाहिए. इन तीनों नए विधेयकों में किसान कल्याण और जनहित की अवधारणा को खत्म कर दिया गया है.
सवाल: बिल के माध्यम से क्या पूंजीपति किसानों के खेतों तक पहुंच सकते हैं ?
जवाब:संकट के इस समय में स्टॉक सिस्टम के खत्म होने का खामियाजा आने वाले दिनों में आम आदमी को भी उठाना पड़ सकता है.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर पेप्सिको कंपनी का जिक्र करते हुए नंद कश्यप ने कहा कि पंजाब में पेप्सिको की ही मनमानी के कारण वहां किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आने लगे थे. किसानों को छलने का यह एक बहुत बड़ा उदाहरण है.