बिलासपुर:कोयलांचल होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में लघु व्यापारियों को कोयले की किल्लत का सामना करना पड़ रहा (Small industry facing shortage of coal in Bilaspur) है. पीक टाइम में कोयला न मिलने से लघु उद्योगों के सामने कोल संकट गहरा गया है. राज्य की ओर से सीएसआईडीसी ने कोयला की खरीदी के लिए SECL को भुगतान भी कर दिया है. इसके बावजूद SECL कोयले की सप्लाई नहीं कर रहा है. आलम यह है कि कोयले की कमी के कारण अब लघु उद्योगों का उत्पादन प्रभावित होने लगा है.
बिलासपुर में किल्लत झेल रहे छोटे उद्योग लघु उद्योगों के लिए राज्य सरकार देती है इतना कोयला
भारत सरकार के कोयला मंत्रालय ने लघु उद्योगों के लिए राज्य सरकार को हर साल 1 लाख टन कोयला अलॉट किया है. राज्य सरकार ने कोयले को लघु उद्योगों को बांटने के लिए सीएसआईडीसी को अधिकृत किया है. वहीं सीएसआईडीसी भुगतान के बाद भी एसईसीएल कोयले की सप्लाई नहीं कर रहा है. इससे लघु उद्योगों के सामने कोल संकट गहरा गया है. छत्तीसगढ़ लघु एवं सहायक उद्योग संघ की मानें तो 8 हजार टन कोयले के लिए इस महीने एडवांस में पैसा जमा कर दिया गया है. इसके बावजूद उद्योगों को कोयले का अलॉटमेंट नहीं है. एसईसीएल इसमें लगातार टाल-मटोल कर रहा है. साथ ही लघु उद्योगों को नजरअंदाज कर रहा है. ये पहली बार नहीं है, जब लघु उद्योगों के सामने कोयले का संकट है.
हर वित्तीय वर्ष में कोल संकट झेलते हैं लघु उद्योग
लघु उद्योगों को हर वित्तीय वर्ष में कोल संकट से जूझना पड़ता है. 1 लाख टन कोयले के आबंटन में केवल 25 से 30 हजार टन कोयला ही मिल पाता है. हर वर्ष 60 से 70 हजार टन कोयला बरबाद हो जाता है. छत्तीसगढ़ लघु एवं सहायक उद्योग संघ का आरोप है कि इस वर्ष भी इसी का इंतजार किया जा रहा है, ताकि मार्च खत्म होने के बाद कोयला खत्म हो जाए. इस मामले में छत्तीसगढ़ लघु एवं सहायक उद्योग संघ के अध्यक्ष हरीश केडिया ने बताया कि कोयला नहीं मिलने से जहां उत्पादन प्रभावित हो रहा है. आर्थिक नुकसान हो रहा है. वहीं कुछ छोटे उद्योगों की भट्टी को बंद कराने की नौबत भी आ गई है. यदि भट्टी बंद कर दी जाती है और उसे दोबारा शुरू करना पड़े तो उसके लिए बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ता है.
एसईसीएल बाहर कोयले की सप्लाई कर रहा
लघु उद्योगों का पीक पीरियड आ गया है. बारिश और त्योहारों का मौसम जाते ही मार्च, अप्रैल, मई और जून को लघु उद्योगों के लिए पीक पीरियड माना जाता है. इस समय उद्योग अपनी पूरी क्षमता के साथ उत्पादन करते हैं. यही नहीं कोविड का भी संकट नहीं है. ऐसे में कोविड के कारण प्रभावित उद्योगों को फिर से पटरी पर लाने के लिए पूरी क्षमता के साथ संचालित होने की जरूरत है, जिसके लिए कोयला आपूर्ति सबसे अहम है. लेकिन एसईसीएल लघु उद्योगों के लिए कोयला सप्लाई नहीं कर रहा है. छत्तीसगढ़ लघु एवं उद्योग संघ की माने तो एसईसीएल के कोयला उत्पादन का 0.1 फीसद कोयला ही प्रदेश के लघु उद्योगों की आवश्यकता है. उसके बावजूद एसईसीएल प्रदेश के उद्योगों को दरकिनार कर बाहर कोयले की सप्लाई कर रहा है.
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लक्ष्य को हासिल कर पाना अब एसईसीएल के लिए चुनौती
इधर प्रदेश के लघु उद्योगों के सामने कोल संकट के बीच एसईसीएल पावर और नॉन पॉवर दोनों सेक्टरों को कोयला आपूर्ति करने की बात कह रहा है. एसईसीएल प्रबंधन की मानें तो रोजाना 6 से 7 लाख टन कोयले का डिस्पैच किया जा रहा है. कोयले की कोई कमी नहीं है, हालांकि एसईसीएल के इन दावों के बीच एसईसीएल को इस वित्तीय वर्ष में मिले लक्ष्य के लिहाज से एसईसीएल कोयले के उत्पादन में काफी पीछे चल रहा है. 172 मिलियन टन के लक्ष्य में एसईसीएल अब तक केवल 146.85 मिलियन टन कोयला का प्रोडक्शन व डिस्पैच ही कर सका है. ऐसे में लक्ष्य को हासिल कर पाना अब एसईसीएल के लिए चुनौती बन गया है.
एसईसीएल प्रदेश के उद्योगों को उनके हक का कोयला नहीं दे रहा
एसईसीएल के दावों के बीच प्रदेश के उद्योगों को अब तक हुए कोयले के आवंटन से यह तो साफ है कि कमिटमेंट के बाद भी एसईसीएल प्रदेश के उद्योगों को उनके हक का कोयला नहीं दे रहा है. जिसके कारण प्रदेश के लघु व नॉन पॉवर उद्योगों के सामने संकट की स्थिति खड़े हो गई है. पिछले दिनों कोयला मंत्री ने कोरबा के तीनों कोयला खदानों का निरीक्षण किया था और उन्होंने दावा किया था कि कोयले की आपूर्ति छोटे उद्योगों को भी की जाएगी, लेकिन जिस तरह का कोयले का खेल चल रहा है. उससे लग रहा है कि छोटे उद्योगों की स्थिति काफी खराब हो सकती है.आने वाले समय में उद्योगों के बंद होने की भी स्थिति उत्पन्न हो सकती है. एसईसीएल भले ही लाख दावा करती है कि वह छोटे और लघु उद्योगों को कोयला दे रहा है लेकिन कहीं ना कहीं इस बात की पोल भी खुलती है. जब लघु उद्योगों के संचालक और संगठन कोयला नहीं मिलने की जानकारी लगातार देते रहते हैं.