बिलासपुर: राशन कार्ड न बन पाने के कारण गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के आदिवासी इलाके के सैकड़ों ग्रामीण राशन के सार्वजनिक वितरण प्रणाली से वंचित हो रहे हैं. लॉकडाउन के बीच राशन नहीं मिलने से ग्रामीणों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. प्रभावितों में पंडों जनजाति के आदिवासी भी शामिल हैं. मामला सामने आने के बाद प्रशासन ने सर्वे कराकर सभी को श्रेणी अनुसार राशन कार्ड उपलब्ध कराने की बात कही है.
आदिवासी ग्रामीणों का नहीं बना राशन कार्ड गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में हर परिवार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत सस्ता राशन उपलब्ध कराने का राज्य सरकार का दावा फेल होता नजर आ रहा है. यहां के आदिवासी बाहुल्य बस्ती बगरा ,पुटा, रोटी, मार और उसके आसपास के ग्रामीण इलाकों में ग्रामीण राशन कार्ड बनवाने के लिए परेशान हैं. सरकारी कर्मचारियों के उदासीनता के चलते इनका राशन कार्ड नहीं बन पा रहा है.जिसके चलते ये ग्रामीण बाजार से ही महंगे दर पर राशन खरीदने को मजबूर हैं.
पंडो जनजाति के लोग भी हैं शामिल
मामले में महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रभावितों में अति पिछड़ी पंडो जनजाति के लोग भी शामिल हैं. उनके अनपढ़ होने का फायदा उठाकर राशन दुकान संचालक ने कार्ड बनवाने के लिए उनसे ₹200 भी ले लिए, जिसकी शिकायत पीड़ित ने कैमरे पर की. ज्यादातर ग्रामीण इलाकों के आदिवासी या फिर तो बीपीएल सूची में शामिल है या अन्य वर्ग के तहत राशन पाने के अधिकारी रहे हैं. बावजूद सर्वे में इनमें से कई आदिवासियों के नाम कट गए और उसके बाद से लगातार कोशिशों के बावजूद आज तक उनके राशन कार्ड नहीं बन पाए .
कलेक्टर ने सर्वे कराने की कही बात
मामला सामने आने के बाद जिला कलेक्टर ने गांव में सर्वे कराकर पात्र हितग्राहियों को शीघ्र ही राशन कार्ड उपलब्ध कराने की बात कही है. वहीं सभी को सर से दर पर राशन उपलब्ध कराने के सरकारी दावे कागजों पर ही नजर आ रहे हैं क्योंकि आदिवासी और रिमोट एरिया में पिछड़े जनजाति के आदिवासियों का राशन कार्ड से महरूम होना शासन के दावों की पोल खोलता नजर आ रहा है.