बिलासपुर:प्रतिभा तो है साहब, लेकिन सुविधाएं भी तो चाहिए फलक तक जाने के लिए. मरवाही के पथर्रा गांव की रहने वाली वर्षा रानी के साथ भी यही हुआ. वर्षा रानी का टैलेंट सुविधाओं को मोहताज हो गया और राष्ट्रीय स्तर पर जिमनास्टिक का 6 बार उत्कृष्ट प्रदर्शन कर चुकी इस जिमनास्ट को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बनने के लिए मजबूर होना पड़ा. वर्षा रानी के बड़े सपने मदद की आस में अधूरे रह गए. जो छत्तीसगढ़ के साथ देश का भी नाम रोशन करना चाहती थी, वो अरमानों के इन रंग-बिरंगे पंखों के होते हुए भी उड़ान नहीं भर पा रही है.
तमाम अभावों और चुनौतियों के बावजूद नेशनल जिम्नास्ट वर्षा रानी का हौसला अभी कम नहीं हुआ है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवा देने के साथ ही वह भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए डटकर मेहनत कर रही हैं. पथर्रा गांव के आदिवासी किसान लाल सिंह और मीनाबाई की बेटी वर्षा रानी जब गांव के मैदान में अपने खेल का प्रदर्शन करती है, तो राह चलते लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं.
6 बार नेशनल जिमनास्टिक में भाग लेकर किया प्रदेश का नाम रोशन
शासकीय कन्या हायर सेकेंडरी स्कूल सकोला पेंड्रा से पढ़ी हुई वर्षा को बचपन से ही खेल पसंद है. स्कूल में जिमनास्टिक के संसाधन नहीं होने के बावजूद वह रेत और बेंच की मदद से प्रैक्टिस किया करती थी. इसी के सहारे अपनी मेहनत और लगन से 6 बार नेशनल जिमनास्टिक में पार्टिसिपेट कर प्रदेश का नाम रोशन कर चुकी हैं. तीन साल पहले 12वीं में 73 फीसदी अंक लाने वाली वर्षा आज भले ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की नौकरी कर रही है, लेकिन वह कहती हैं कि लगातार कोशिश कर रही है कि खेल में आगे बढ़े.
स्कूल की लड़कियां हर साल स्टेट और नेशनल में करती हैं खेल प्रदर्शन
वर्षा रानी के मन में छत्तीसगढ़ में जिमनास्टिक के लिए बहुत कुछ करने की इच्छा है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता होने के बावजूद वर्षा रानी लगन के साथ भारतीय सेना में जाने की तैयारी कर रही है. वर्षा बताती हैं कि वह अपने जूनियर वर्ग को भी जिमनास्टिक सीखा कर आगे बढ़ाना चाहती हैं. वह बताती हैं कि जिस सरकारी स्कूल में वह पढ़ती थी, उस स्कूल में किसी सुविधा के नहीं होने के बाद भी वह छत्तीसगढ़ का ऐसा अकेला स्कूल रहा, जहां से हर साल 24 से 25 लड़किया स्टेट और नेशनल में प्रदर्शन करती है. वर्षा ने बताया कि कई बार उन्होंने अपनी दूसरी साथियों के साथ मिलकर टीचर और कोच के माध्यम से सरकार से मदद की मांग की, लेकिन इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. समय बीतता गया और आज तक कुछ न हो सका.