तखतपुर: कभी तखतपुर का ग्रामीण इलाका फलों के राजा आम के लिए मशहूर था, लेकिन पिछले 10 साल से आम को लेकर तखतपुर की ख्याति कम होती जा रही है. लोग अब आम के बगीचे लगाने से कतरा रहे हैं. विशेषकर नई पीढ़ी फलों के बगीचा लगाने के नाम पर कोसों दूर भाग रही है. इसमें उनकी कोई रूचि नहीं दिख रही है. कहीं न कहीं इसमें जागरूकता का अभाव देखा जा रहा है.
कभी आम के बगीचे के लिए मशहूर था तखतपुर, अब ये हैं हालात
कभी तखतपुर का ग्रामीण इलाका फलों के राजा आम के लिए मशहूर था, लेकिन पिछले 10 साल से आम को लेकर तखतपुर की ख्याति कम होती जा रही है. लोग अब आम के बगीचे लगाने से कतरा रहे हैं. विशेषकर नई पीढ़ी फलों के बगीचा लगाने के नाम पर कोसों दूर भाग रही है. इसमें उनकी कोई रूचि नहीं दिख रही है. कहीं न कहीं इसमें जागरूकता का अभाव देखा जा रहा है.
मनियारी नदी के किनारे बसे सैकड़ों गांव जो कभी मौसमी फलों के लिए मशहूर थे. इन क्षेत्रों में आम के बगीचे हुआ करते थे, लेकिन अब केवल निजी तालाबों के मेड़ों पर ही देसी आम दिखाई देते हैं. ऐसा ही एक गांव है चुलघट, जहां छायादार आम के पेड़ निजी तालाबों की शोभा बढ़ा रहे हैं. इन्हीं के जरिए यहां रह रही ग्रामीणों की तकरीबन 6 पीढ़ियां देसी आमों का आनंद उठा रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में सेंदरी, खरखरही, सुपाड़ी, अथान, ढेकुना, किरही, लोढ़हवा, चेपटी जैसे देसी आमों का मिलना भी कम हो गया है.
ग्रामीणों का कहना है
इस संबंध में ग्रामीणों का कहना है कि आम के साथ ही अमरुद, जामुन, सीताफल, रामफल, गंगा ईमली, इमली, महुआ जैसे मौसमी फलों की उपलब्धता के लिए तखतपुर पहचाना जाता था, लेकिन कटाई और आंधी-तूफान के कारण जहां पुराने पेड़ खत्म हो रहे हैं. वहीं नये पौधे लगाने को कोई तैयार नहीं है. पेड़-पौधों के बचाव के लिए कई अभियान चलाए गए. समितियां और नियम भी बनाए गए, लेकिन सारे प्रयास धरे के धरे रह गए. प्रशासन द्वारा संरक्षण की स्थाई व्यवस्था न होना भी एक कारण है.