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Madku Island of Bilaspur: रहस्यमयी मदकु द्वीप पर अनोखा पर्व, नजर आ रहीं सिर्फ झोपड़ी ही झोपड़ी, जानें क्यों

Shivnath river stream मध्य भारत का एकमात्र मसीही मेला इन दिनों मुंगेली जिले के मदकु द्वीप में लगा हुआ है. शिवनाथ नदी की धारा के दो भागों में बंटने से द्वीप के रूप में प्रकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण प्राचीन रमणीय स्थान है. इस द्वीप पर पिछले 114 सालों से हर वर्ष मसीही समाज का धार्मिक पर्व झोपड़ी पर्व मनाया जा रहा है, जिसमें बाइबिल के संदेश गूंजते हैं.

Madku Island of Bilaspur
मदकु द्वीप पर मसीही मेला

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Published : Feb 11, 2023, 2:26 PM IST

Updated : Feb 11, 2023, 2:36 PM IST

रहस्यमयी मदकु द्वीप पर अनोखा पर्व

बिलासपुर:प्रकृति ने छत्तीसगढ़ के कई स्थानों को खूबसूरती से नवाजा है. यहां प्राकृतिक सुंदरता के साथ धर्म और आध्यात्म का भी अनूठा संगम देखने को मिलता है. इसी संगम का केंद्र एक द्वीप है जिसे मदकु द्वीप के नाम से जाना जाता है. मुंगेली जिले का मदकु द्वीप धर्म और आस्था का बड़ा केंद्र है. जहां इसका अपना प्राचीन इतिहास है, वहीं प्राकृतिक सुंदरता भी इसे खास बनाती है. शिवनाथ नदी से घिरे इस द्वीप में इन दिनों आस्था का बड़ा मेला लगा हुआ है. झोपड़ी पर्व मध्य भारत के मसीही मेले के रूप में जाना जाता है. यहां मसीही समाज के अनुयायी और धर्म गुरु जुटे हुए है.

क्यों खास खास है मसीही मेला:मान्यता है कि मांडूक्य ऋषि ने इसी स्थल पर विराजित होकर मंडुकोपनिषद की रचना की थी. मदकुद्वीप में इस समय मध्यभारत का सबसे बड़ा मसीही मेला लगा हुआ है. बताया जाता है कि 1909 से यहां इस मेले की शुरुआत हुई है. तब से लेकर लगातार 114 वर्षो से यहां मसीही मेले का आयोजन हो रहा है. हर वर्ष फरवरी माह में मसीही मेले का आयोजन किया जाता है. मेले के दौरान छत्तीसगढ़ सहित देशभर से मसीही समाज के लोग यहां जुटते हैं.

मदकु द्वीप पर मसीही मेला

दो भाग में होता है मेले का आयोजन: एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले का अयोजन दो भागों किया जाता है. पहला भाग रिट्रीट का होता है, जिसमें मेले की सफलता के लिए प्रार्थना की जाती है. वहीं दूसरे भाग में मेले की शुरुआत होती है. इसमें धर्म और अध्यात्म के अलग- अलग कार्यक्रम आयोजित होते हैं. मसीही समाज के लोग सामुहिक रूप से एक पंडाल के नीचे प्रभु की अराधना करते हैं. प्रभातफेरी, गीत संगीत, काव्य पाठन, वाद- विवाद, विचार गोष्ठी सहित कई कल्चरर कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. बाहर से आए स्पीकर समाज को आध्यात्मिक संदेश भी सुनाते हैं.

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इस उद्देश्य से शुरू हुआ था मसीही मेला:जानकर बताते है कि "मेले की शुरुआत करीब 114 साल पहले की गई थी. उस समय अलग- अलग धड़ों में बंटे समाज के लोग यहां एक मंच पर आए और एक दूसरे से मेलजोल बढ़ा. देशभर के करीब 80 से 90 अलग- अलग चर्च ने शामिल होकर एक साथ प्रभु की अराधना की. मसीही समाज इसे आध्यात्मिक मेले के रूप में मनाता है. बताया जाता है कि "समाज के संत सुंदर सिंह भी यहां आए थे, जिन्होंने एक पीपल पेड़ की नीचे प्रभु की आराधना की थी. इसके बाद से मसीही समाज दिव्य क्षेत्र के रूप में इसे मानता आ रहा है और हर वर्ष मसीही मेले का आयोजन कर रहा है."

मदकु द्वीप पर मसीही मेला
जानिए इसलिए झोपड़ी पर्व का दिया गया नाम:मदकु द्वीप मेले में प्रदेश के साथ ही मध्यप्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, दिल्ली सहित विदेश से भी मसीही समाज के लोग यहां पहुंचे हैं. मेले के पूरे समय यहां कैंप कर तंबुओं में रुकते हैं. प्राकृति की गोद में उनका ये कैंप भी अद्भुत होता है. तंबुओं में अपने परिवार के साथ रहना, घर की तरह दिनचर्या और प्रभु की अराधना में लीन रहना आस्था और आध्यात्म के संगम को और अटूट बनाता है. समाज के लोग इसे झोपड़ी पर्व के रूप में भी मानते हैं.

शादियों के लिए यहां जुड़ते हैं रिश्ते:यहां आने वाले मसीही समाज के लोग मेले के जरिए आपसी मेलजोल को भी बढ़ते हैं. अलग-अलग जगहों से आए समाज के लोग नए रिश्ते भी जोड़ते हैं. कई शादी के संयोग भी यहां बनते हैं. धार्मिक सभा और मेले के माध्यम से एक दूसरे को जानने का मौका मिलता है और शादियों के लिए रिश्ते की बात भी होती है.

Last Updated : Feb 11, 2023, 2:36 PM IST

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