History Of Kota Assembly Seat : 67 साल तक कोटा था कांग्रेस का मजबूत गढ़,लेकिन गैर कांग्रेसी ने तोड़ दिया तिलिस्म - कांग्रेस का अभेद्य किला
History of Kota Assembly छत्तीसगढ़ में कई ऐसी विधानसभाएं हैं,जहां पर चुनाव के लिए पारंपरिक वोट हमेशा से ही कैंडिडेट को जीताते आ रहे हैं. बिलासपुर संभाग की बात करें तो गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले की दो विधानसभा सीटों में पारंपरिक वोट देखने को मिलते हैं. ये सीट है मरवाही और कोटा.आज हम आपको कोटा विधानसभा के बारे में बताएंगे.आज हम जानेंगे कि क्यों ये सीट खास है.JCCJ Renu Jogi demolished Congress stronghold
बिलासपुर :आजादी के बाद से कोटा विधानसभा में 72 साल में 16 बार चुनाव हुए. इन 16 चुनाव 6 ऐसे नेता हैं जो विधानसभा तक पहुंचे . कोटा की जनता में एक विशेष तरह की खासियत है. ये खासियत बहुत ही कम विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं में होता है.यहां की जनता 2018 से पहले तक सिर्फ कांग्रेस के प्रत्याशियों को ही विधानसभा भेजते आई है.लेकिन इस इतिहास को 2018 में बदल दिया गया. जब प्रदेश में पहली बार चुनाव लड़ रही जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की प्रत्याशी रेणु जोगी को जनता ने नए सिंबल पर विधानसभा भेजा. लेकिन रेणु जोगी इससे पहले तीन बार कांग्रेस की टिकट पर कोटा से ही विधानसभा जा चुकी हैं.
रेणु जोगी ने कांग्रेस के अभेद्य किले में की थी सेंधमारी
कोटा विधानसभा का इतिहास :छत्तीसगढ़ में आगामी नवंबर माह में विधानसभा का चुनाव है. इससे पहले हम आपको बिलासपुर संभाग की सीटों के बारे में जानकारी दे रहे हैं.आज हम जिस सीट की बात कर रहे हैं वो कोटा विधानसभा है. कोटा विधानसभा 67 साल तक कांग्रेस का अभेद्य किला रहा है. भारत की आजादी के बाद कोटा विधानसभा कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है. यह सीट 1951 में अस्तित्व में आई. इस विधानसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी पहली बार जीते. पहले चुनाव से ही यहां कांग्रेस ने अपना कब्जा जमा लिया. कांग्रेस ने यहां लगभग 67 साल तक राज किया.
कोटा को कांग्रेस पसंद है :इस किले को भेदने में कई नेताओं की राजनीति चली और खत्म भी हो गई. लेकिन इस किले को 67 साल तक कोई भी भेद न सका. कांग्रेस यहां लगातार जीतती रही. जीत का आलम ये था कि कोटा विधानसभा की जनता जिसे पसंद कर लेती थी उसे कई बार विधायक के रूप में चुनती. यह किला इतना मजबूत था कि इसे बीजेपी या कोई अन्य पार्टी जीत ना सका. 67 साल कांग्रेस ने यहां राज करके साबित किया कि कोटा की जनता को कांग्रेस और कांग्रेसी नेता ही पसंद हैं.
द्विसदस्यीय प्रणाली में चुने गए एक साथ दो विधायक :कोटा विधानसभा ऐसी विधानसभा है जहां से एक बार में दो विधायक भी बने हैं. ये जानकर आपको थोड़ी हैरानी होगी, लेकिन कोटा विधानसभा में पहले चुनाव में एक विधायक चुने गए, वहीं दूसरा चुनाव 1957 में हुआ. इस चुनाव में द्विसदस्यीय प्रणाली में चुनाव हुआ. इस तरह के चुनाव में एक सामान्य और एक आरक्षित सीट होती थी. उस चुनाव में कांग्रेस के काशीराम तिवारी और सूरज कुंवर विधायक बने थे. इस चुनाव में कोटा की जनता ने अपने लिए अपना नेतृत्वकर्ता दो लोगों को बनाया था. दोनों जनता की अपेक्षाओं पर खरा भी उतरे.
कितने विधायक अब तक जीते ? :अब तक हुए 16 चुनाव मेंकोटा की जनता ने सिर्फ 6 चेहरों को ही पसंद किया. कांग्रेस के इस अभेद्य किले को 2018 तक कोई भी पार्टी नहीं भेद सका था. लेकिन 2018 में जेसीसीजे की उम्मीदवार डॉक्टर रेणु जोगी ने इसे भेदने में कामयाबी हासिल की. लेकिन एक बात ये भी है कि रेणु जोगी पहले इसी सीट से तीन बार कांग्रेस की टिकट में चुनाव लड़ी और जीत हासिल की. क्योंकि रेणु जोगी पहले ही तीन बार यहां से कांग्रेस की टिकट से जीत हासिल की और वह पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी थी. इससे भी लोगों में यह प्रभाव पड़ा कि उनकी सोच कांग्रेसी है.लिहाजा लोगों ने अपना मत नहीं बदला.