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SPECIAL: जिन हाथों में होनी चाहिए थी कॉपी-किताब, अब उनके कंधों पर घर की जिम्मेदारी - child-labour issue

कोरोनाकाल में लोगों की नौकरी गई. लोगों की आर्थिक स्थिति बुरी तरह प्रभावित हुई. इस कोरोनाकाल में एक कड़वा सच यह भी है कि स्कूली बच्चों के ऊपर भी बाहर कामकाज करने का बोझ बढ़ा है. ईटीवी-भारत ने कोरोनाकाल में उन मासूम छात्रों की पड़ताल करने की कोशिश की है, जिन पर अचानक घर चलाने या घर में आर्थिक सहयोग करने का बोझ बढ़ गया है.

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बाल श्रम

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Published : Mar 6, 2021, 10:54 PM IST

बिलासपुर:ईटीवी-भारत की टीम ने स्कूली छात्रों के मजदूरी कनेक्शन को जानने की कोशिश की तो समाज के ऐसे कई स्याह पक्ष उभर कर सामने आए जो वाकई एक सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय है. हमने बिलासपुर शहर के गली-गली में ऐसे बच्चों से बातचीत की जो फिलहाल मेहनत-मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं.

लॉकडाउन में बाल मजदूरे बढ़े

शहर में सुबह सुबह अखबार बांटने का काम सबसे ज्यादा वो स्कूली बच्चे ही करते हैं, जिन्हें मजदूरी की कानूनी इजाजत बिल्कुल नहीं है. इन बच्चों से जब हमने बातचीत की तो उनका मार्मिक पक्ष सामने आया. कुछ बच्चे ने कहा कि वो घर में आर्थिक सहयोग करने के लिए ऐसा कर रहे हैं तो कुछ बच्चों ने कहा कि मजदूरी करने से उनका जरूरी खर्च निकल रहा है.

क्या कोरोनाकाल में बाल मजदूरी बढ़ी?

बाल श्रम की ऐसी तस्वीरें पहले भी दिखती थीं लेकिन कोरोनाकाल के कारण अब यह तस्वीर भयावह बनकर कुछ ज्यादा ही दिख रही है. बच्चों ने अपनी-अपनी लाचारी ईटीवी-भारत के सामने जगजाहिर किया. ज्यादातर बच्चों का कहना है कि कोरोना पीरियड में उनके अभिभावकों की नौकरी गई या फिर बेहद कम आमदनी में उन्हें गुजारा करना पड़ रहा था,लिहाजा वो मजबूरन बाहर काम कर रहे हैं. यदि कुछ भी नहीं तो वो अपने कॉपी-किताब की जरूरतों को ही बाहर काम करके पूरा कर लेते हैं.

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'सालों से अखबार बेचते हैं बाल मजदूर'

अखबार बांटनेवाले बच्चे जिन डिस्ट्रीब्यूटरों से अखबार लेकर बांटते हैं, उनसे जब हमारी बात हुई तो और भी कुछ बातें सामने आईं जो अपनेआप में दुःखद है. डिस्ट्रीब्यूटरों का कहना है कि बच्चों का काम करने का रुझान फिलहाल जरूर बढ़ गया है लेकिन बीते 3 दशक से ज्यादा समय से वो इस पेशे में लगे हैं और लगातार ये बच्चे उनसे जुड़कर मजबूरीवश ये काम करते हैं. सुबह के एक या दो घंटे के काम से उन्हें उनके परिवार को कुछ आर्थिक मदद मिल जाती है. एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि कई बच्चे उनसे जुड़कर अखबार बांटने का काम इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि वो अपनी कमाई से एंड्रॉयड फोन लेना चाहते हैं ताकि उनकी ऑनलाइन पढ़ाई बाधित ना हो.

फल-सब्जी भी बेच रहे बाल मजदूर

इतना ही नहीं हमें शहर में कुछ फल बेचनेवाले तो कुछ सब्जियां बेचनेवाले ऐसे मासूम बच्चे भी मिले जिन्होंने खुलकर वर्तमान में अपनी मजबूरी को स्वीकारा. कुछ बच्चों ने कहा कि उनके ऊपर उनके परिवार का बोझ है. कुछ बच्चों ने कहा कि वो एक पार्ट टाइम जॉब की तरह काम कर रहे हैं. हम स्कूली छात्रों के बीच भी पहुंचे तो क्लास के दौरान ही कुछ छात्रों की वेदना बाहर आ गई और उन बच्चों ने बाहर काम करने की मजबूरी को स्वीकारा.

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'मजदूरी की वजह से ऑनलाइन क्लास से नहीं जुड़ रहे'

इस मामले की तह तक जाने के लिए हमने शिक्षकों और स्कूल प्रशासन से भी बातचीत की. शिक्षकों ने भी इस बात को बखूबी स्वीकारा कि उन्हें भी उनके छात्रों से बाहर कामकाज करने के संकेत मिलते रहते हैं. कई बार ऑनलाइन कक्षा में ना जुड़ना भी बाहर कामकाज करने के कारण ही होता है.

क्या मिड-डे मील नहीं मिलना भी है बड़ी वजह?

शिक्षकों ने कहा कि पहले स्कूलों में मिड-डे मील की व्यवस्था होती थी तो छात्र मध्याह्न भोजन के आकर्षण के कारण भी स्कूली व्यवस्था में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे लेकिन अब खुल चुके स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति बहुत कम होती है. सरकारी स्कूलों के ये कमजोर तबके के छात्र अपने मां-बाप की आर्थिक मदद के लिए कच्ची उम्र में मेहनत-मजदूरी में जुट गए हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा परेशानी

सामाजिक जानकार नंद कश्यप ने बताया कि निश्चित रूप से इस दौर में वयस्क श्रमिकों का रोजगार बुरी तरह प्रभावित हुआ है. यही वजह है कि बालश्रम अब और ज्यादा बढ़ गया है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में बाल मजदूरी और ज्यादा बढ़ गई है. जिम्मेदार सिर्फ औपचारिकता में जुटे रहते हैं और बालश्रम की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है.

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'मजदूरों के आर्थिक संकट की वजह से बढ़ा बालश्रम'

श्रम मामलों की विधि विशेषज्ञ एडवोकेट गुंजन तिवारी का मानना है कि फिलहाल बाल श्रम के मामले जरूर बढ़े हैं. मजदूरों के सामने आर्थिक संकट आने की वजह से भी बच्चे बालश्रम के शिकार हो रहे हैं. बच्चों के लिए भी पारिवारिक प्राथमिकता ज्यादा महत्वपूर्ण हो चली है. वो वर्चुअल पढ़ाई को भी आर्थिक दिक्कतों के कारण नहीं कर पा रहे हैं.

क्या कहता है कानून?

बाल श्रमिक प्रतिषेध अधिनियम के मुताबिक 14 साल तक किसी भी बच्चे से बालश्रम करवाना कानूनी जुर्म है. यह उम्र उन्हें संवारने और शिक्षा के अधिकार जैसे संवैधानिक अधिकार को पाने की रहती है. साल 2017 में जरूर कानून में आंशिक संशोधन किया गया, जिसमें बच्चों को सशर्त आय प्राप्त करने का अधिकार मिला है.

कौन है जिम्मेदार?

समाज में बालश्रम का बढ़ना किसी एक व्यक्ति की चूक नहीं है, बल्कि बालश्रम को बढ़ावा ना मिले, यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है. बालश्रम पर निगरानी महत्वपूर्ण है. वर्तमान में कोरोना महामारी की वजह से पहले की अपेक्षा बालश्रम का आंकड़ा बढ़ा है.

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कैसे दूर होगी यह समस्या

बहरहाल ईटीवी-भारत ने ग्राउंड रिपोर्टिंग के जरिए समाज में बढ़ रहे बालश्रम की प्रवृत्ति और बेसुध प्रशासनिक-सामाजिक रवैये की तस्वीर आपको दिखाई. जरूरत इस बात की है कि सभ्य समाज इस काली हकीकत को अब नजरअंदाज ना करे ताकि मासूम के कंधों पर पड़े इस अतिरिक्त बोझ से हमारा समाज कलंकित ना हो.

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