बिलासपुर:कांग्रेस पार्टी को कमजोर दूसरी पार्टी नहीं, बल्कि खुद कांग्रेसी ही करते हैं. टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस के नेता बागी हो जाते हैं और निर्दलीय या दूसरी पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ कर कांग्रेस प्रत्याशी को हरा देते हैं. पार्टी से टिकट की लालसा रखने वालों को टिकट नहीं मिलने पर वे बागी हो जाते हैं. जबकि भाजपा में ऐसा नहीं होता. विधानसभा चुनाव 2018 में बिलासपुर जिले की 6 सीटों में 3 सीटों पर, बागियों की वजह से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस ने इन बागियों को वापस पार्टी में शामिल कर लिया था. जिससे कार्यकर्ताओं में गलत मैसज गया.
बागी नेताओं को लेकर कांग्रेस नहीं लेती कोई एक्शन:प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव 2018 में बिलासपुर जिले की 3 सीटों पर बागी कांग्रेसियों की वजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. वहीं एक सीट पर जीत का अंतर काफी कम रहा. जिन बागियों की वजह से 4 सीट प्रभावित हुआ था. चुनाव के बाद कांग्रेस ने इन बागियों को वापस कांग्रेस में ले लिया है. इस बार भी टिकट वितरण के दौरान कांग्रेस के कई बागी चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे हैं. कांग्रेस को कई सीटों पर इस वजह से हार का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे बागियों पर नकेल कसने कांग्रेस क्या उनपर कड़ा रुख अपनाएगी या फिर हर बार की तरह उन्हें कांग्रेस में मिला लेगी.
जनाधार होने पर मजबूरी पर पार्टी में लिया जाता है:बागियों के मामले में राजनीतिक जानकर राजेश अग्रवाल ने कहा कि "बिलासपुर जिला और संभाग की स्थिति की बात करें, तो कांग्रेस अच्छी स्थिति में नहीं थी. जिले में 2 सीट और संभाग में 24 में से 12 सीट पर ही कांग्रेस आ पाई थी. अगर बागियों की बात करें तो बागी पहले ही जनता कांग्रेस जोगी में शामिल हो गए थे. बिलासपुर की 6 में से 4 सीटों पर प्रभाव डाला था, जिसमें 3 सीट तो कांग्रेस हार गई थी. वहीं एक सीट पर जीत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं था. यहां तक कि उस सीट में कांग्रेस पहले नंबर तो भाजपा तीसरे नंबर पर थी. सीधे-सीधे लड़ाई कांग्रेस और जनता कांग्रेस के बीच हुई थी."
"इसी तरह बिल्हा विधानसभा में पूर्व विधायक सियाराम कौशिक भी कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़े थे और इस वजह से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. बेलतरा विधानसभा में अनिल टाह को जोगी कांग्रेस से चुनाव लड़कर 39 हजार वोट मिले थे और बेलतरा विधानसभा में भाजपा के उम्मीदवार रजनीश सिंह को 5000 वोटों से जीत हासिल हुई थी. ऐसे लोग जो पार्टी से अलग होकर चुनाव लड़ते हैं, उनका अपना जनाधार होता है और कई बार इसी मजबूरी की वजह से कांग्रेस को इन्हें पार्टी में वापस शामिल करना पड़ता है. यदि कार्रवाई की बात करें तो सभी बागी अपने-अपने नेताओं के पास गिड़गिड़ाकर वापस आ जाते हैं. इसी लिए दूसरों में भी हिम्मत बढ़ती है. ऐसे बागियों को कड़े तौर पर निष्काषित कर एक मैसेज देना चाहिए."- राजेश अग्रवाल, राजनीतिक जानकर