बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल और प्रियंका गांधी की बड़ी रैलियां हुईं.इन रैलियों में भीड़ बड़ी तादाद में आई. भीड़ देखने के बाद पार्टियां अपने-अपने पक्ष में दावा करने लगी.लेकिन क्या नेताओं की रैली में जुटने वाली भीड़ चुनाव के दौरान वोटों में कनवर्ट होती है.ये एक बड़ा सवाल है.क्योंकि हमने कई बार देखा है कि भारी भरकम भीड़ लेकर सभा करने वाली पार्टी के प्रत्याशी चुनाव के नतीजों में औंधे मुंह गिर जाते हैं.आखिर ऐसा क्या होता है कि लाखों की संख्या में जुटने वाली भीड़ चुनाव के समय अपना मन बदल देती है.
भीड़ और चुनाव का कनेक्शन :चुनाव के दौरान यदि किसी बड़े नेता की सभा आयोजित की जाती है तो रैली के दौरान ये माना जाता है कि उसे देखने और सुनने के लिए भारी संख्या में भीड़ जुटेगी.लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता.क्योंकि कई बार भीड़ को इकट्ठा करने के लिए मैनेजमेंट का सहारा लेना पड़ता है.यानी किसी खास जगह की खास रैली में भीड़ को जुटाया जाता है.भीड़ इकट्ठा करने के लिए उनके आने जाने से लेकर खाने तक का इंतजाम पार्टियां करती हैं.कई बार मजदूरों को इकट्ठा करके उन्हें एक दिन के हिसाब से मजदूरी दी जाती है.ताकि वो सभा में डटे रहे.भले ही वो किसी भी पक्ष में वोट डाले.लेकिन मौजूदा समय में संंबंधित पार्टी की रैली का हिस्सा बनते हैं.
कैसे होता है भीड़ का मैनेजमेंट ? :राजनीतिक पार्टियों की सभाओं में भीड़ के रूप को देखकर अंदाजा लगाया जाता है कि प्रत्याशी को कितने प्रतिशत वोट पड़ेंगे. चुनावी सीजन आते ही इसलिए भीड़ को लेकर अलग बिजनेस शुरु होता है. इस बिजनेस में लोग बिना किसी लागत के कमीशन के रूप में बड़ी राशि कमाते हैं.ऐसे लोगों से कई राजनीतिक पार्टियां संपर्क करती है.इन लोगों की ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों तक अच्छी पैठ मानी जाती है.इन लोगों के कहने पर ही लोग अपना सारा काम छोड़कर किसी भी रैली के लिए इकट्ठा हो जाते हैं.इस काम में व्यक्ति विशेष के हिसाब से पैसा तय किया जाता है.