बिलासपुर: 'मुट्ठी-भर दाने को... भूख मिटाने को... मुंह फटी, पुरानी झोली का फैलाता... दो टूक कलेजे के करता... पछताता पथ पर आता. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की इस चर्चित कविता 'भिक्षुक' को आपने स्कूल में पढ़ा होगा. इसमें कवि ने एक भिक्षुक की दयनीय व्यथा का बखूबी वर्णन किया है. जब सामान्य दिनों में भिक्षकों की ये हालत रहती है, तो फिर लॉकडाउन में इनकी क्या हालत है, ये तो आप समझ ही सकते हैं.
आज लॉकडाउन में हर किसी की आर्थिक स्थिति डंवाडोल है. ऐसे में दूसरों से मांगकर गुजारा करने वाले इन भिक्षुकों की जिंदगी रुक सी गई है. इस लॉकडाउन में भीख मांगकर गुजारा करने वाले लोग एक-एक दाने के लिए तरस गए हैं. भूख से इनके होठ सूख रहे हैं, लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
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भूखे पेट सोने को मजबूर
भीख मांगकर गुजारा करने वाले ये लोग कस्बों और शहरों की ऐसी सार्वजनिक जगहों पर रहते हैं, जहां लोगों की भीड़ होती है, ताकि उनके इर्द-गिर्द गुजरने वाले लोगों की इन पर नजर पड़े और वे इन्हें कुछ पैसे या खाना दे दें, जिससे इनका गुजारा हो सके.
ETV BHARAT ने लिया जायजा