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बीजापुर जिला पंचायत सदस्य ने दोरला नर्तक दल को भेंट किए घुंघरू

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Published : Feb 22, 2021, 12:37 AM IST

Updated : Feb 22, 2021, 2:56 AM IST

जिला पंचायत सदस्य बसंत राव ताटी ने भोपालपटनम क्षेत्र के सकनापल्ली ग्राम के दोरला नर्तक दल को बीस जोड़ी घुंघरू भेंट किए हैं. दोरला नर्तक दल भी भेंट के रूप में घुंघरू पाकर काफी खुश है.

Bijapur District Panchayat member presented Ghungroo to Dorla tribal
दोरला नर्तक दल को भेंट किए घुंघरू

बीजापुर:जिला पंचायत सदस्य बसंत राव ताटी ने भोपालपटनम क्षेत्र के सकनापल्ली ग्राम के दोरला नर्तक दल को बीस जोड़ी घुंघरू भेंट किए हैं. क्षेत्र के विलुप्त होते नृत्य कला को संरक्षित करने के लिए जिला पंचायत सदस्य ने पहल की है. दोरला नर्तक दल भी भेंट के रूप में घुंघरू पाकर काफी खुश है. बता दें आदिवासी समाज में अनेक नृत्य-संगीत की शैली है. अलग-अलग समुदाय की अलग-अलग पहचान है. आदिवासी संस्कृति में नृत्य-संगीत का महत्व भी है.

दोरला नर्तक दल को भेंट किए घुंघरू

जिला पंचायत सदस्य बसंत राव ने कहा कि इस क्षेत्र की कलाओं को प्रोत्साहित करना जरूरी है. बिना प्रोत्साहन के आदिवासी कलाओं का संरक्षण संभव नहीं है. ऐसे में यह प्रयास भी किया जा रहा है कि क्षेत्र की समस्त पारंपरिक कलाओं को चिन्हित कर उनके प्रोत्साहन और संरक्षण के लिए एक प्रभावी योजना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समक्ष रखी जाए. कलाकारों को घुंघरू भेंटकर हमने उस अभियान की प्रतीकात्मक शुरुआत कर दी है.

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दोरला आदिवासियों की नृत्य-संगीत की शैली अलग

बीजापुर के भोपालपटनम् तहसील में गोंड जनजाति के दोरला समुदाय की आबादी अधिक है. इस समुदाय के देवी-देवता, तीज-त्योहार, पूजा-अनुष्ठान, मेले-मड़ई का स्वरूप भी अन्य क्षेत्रों के गोंड समुदायों से कुछ भिन्न है. ठीक इसी तरह दोरला लोगों के नृत्य-संगीत की शैली भी अन्य क्षेत्रों के आदिवासी नृत्य-संगीत से अलग और विशिष्ट है. ये संगीत के लिये ढोल, ढोलक, डफ, ताल वाद्य, शहनाई, बांसुरी, सींग(तुरही), सुषिर वाद्य, चिरतल(खड़ताल), मंजीरे, थाली, घंटी, घुंघरू और घन वाद्यों का प्रयोग नृत्य के साथ करते हैं.

पहचान की जरूरत

राज्य विभाजन के पहले के जमाने में और आज के छत्तीसगढ़ में राज्य स्तरीय सांस्कृतिक आयोजनों में आदिवासी क्षेत्र के नर्तक दलों की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही है. सबसे बड़ा कारण क्षेत्र के आदिवासी कलाकारों का संकोच और राज्य स्तर पर प्रदर्शन योग्य पारंपरिक वेशभूषा और वाद्ययंत्रों का अभाव भी है. इस क्षेत्र के आदिवासी कलाकर चाहते हैं कि अन्य क्षेत्रों की जनजातीय कलाओं की तरह बीजापुर और विशेष रूप से भोपालपटनम् क्षेत्र की कलाओं को भी देश-विदेश के आयोजनों में प्रतिनिधित्व मिले.बसंत ताटी ने सकनापल्ली के दोरला नर्तक दल को प्रतीकात्मक रूप से घुंघरू भेंट कर इस महत्वकांक्षी अभियान की शुरुआत की है.

Last Updated : Feb 22, 2021, 2:56 AM IST

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