बेमेतरा: जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर नवागढ़ मार्ग पर पडकीडीह के पास एक गांव है मरका. यहां स्वयंभू शिव शंकर का दिव्य दरबार है. माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर यहां मेला का आयोजन होता है. देशभर से संत-महात्मा और श्रद्धालु मरका धाम आते हैं. स्वयंभू का दरबार होने के कारण इस गांव को स्वयंभू-पुरी मरका धाम के नाम से लोग बुलाते हैं.
मरका संगम तट पर लगता है स्वयंभू शिव शंकर का दिव्य दरबार आस्था का केंद्र है स्वयंभू शिव शंकर का धाम मरका
स्वयंभूपुरी मरका में पश्चिम से पूर्व की ओर बह रही हाफ नदी और तुरतुरिया नाला के संगम तट पर स्वयंभू शिवलिंग की सिद्धि है. कहते हैं, इसके आकार में लगातार हो रही वृद्धि उपवासकों को समृद्धि प्रदान कर रहा है. तुरतुरिया नाले में बना प्राकृतिक कुंड देवों के देव महादेव को प्रिय बेलपत्र का बगीचा शिवतीर्थ होने का जीता जागता प्रमाण है. तीर्थ में अब 1 दर्जन से अधिक मंदिर हो गए हैं. प्रदेश भर के श्रद्धालु यहां मनोवांछित फल पाने की आस लिए पहुंचते हैं. मरका धाम में बेलपत्रों से आच्छादित बगीचा प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली पर्यटकों का मन मोह लेती है.
दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु
मरका बगीचा में बीते 65 वर्षों से श्रीमद् भागवत कथा एवं मेला का आयोजन किया जा रहा है. प्रदेश भर से श्रद्धालु हाफ नदी और तुरतुरिया नाला के संगम तट पर बने कुंड पर स्नान करते हैं. इस धाम की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल रही है. इसके कारण अब भोलेनाथ के उपासक और श्रद्धालु प्रदेशभर से पहुंचते हैं. हर शिवरात्रि यहां विशेष आयोजन किया जाता है.
आसपास के लोगों को रहता है मेले का इंतजार
मरका मेला को लेकर अंचल भर के श्रद्धालुओं को इंतजार रहता है. प्रदेश भर से श्रद्धालु बड़ी संख्या में मरका धाम पहुंचते हैं. मेला में किसानों के लिए बैल के जोड़े, बुजुर्गों के लिए लाठी, महिलाओं के लिए गृहस्थी का सामन और बच्चों के लिए बांसुरी के साथ सौंदर्य प्रसाधन की चीजें बिक्री होती है.
अनेकता में एकता का समावेश
मरका धाम में शिव मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, राम जानकी मंदिर, दत्तात्रेय मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर, हनुमान मंदिर और सतनाम धर्म का प्रतीक जैतखाम स्थापित है. मरका क्षेत्र की जनता की आस्था का केंद्र है, जहां वर्ष में माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के मौके पर मेला का आयोजन होता है. मरका संगम तट 3 गांव को जोड़ता है.