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WOMEN'SDAY: जो घर के आंगन से पंडवानी को 16 देशों में पहुंचा आई, वो अनदेखी से दुखी है

बलौदाबाजार: पंडवानी का नाम लेते ही दो नाम सबसे जेहन में आते हैं, तीजन बाई और रितु वर्मा. दोनों ने देश-विदेश में पंडवानी गायक कर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया. 16 देशों में प्रस्तुतियां देकर रितु ने पंडवानी को पहचान दी. लेकिन वे सरकार की बेरुखी से दुखी नजर आती हैं.

पंडवानी गायीका रितु वर्मा

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Published : Mar 6, 2019, 3:18 PM IST

छत्तीसगढ़ कि लोक कलाकार प्रख्यात पंडवानी गायक रितु वर्मा 6 साल की उम्र से पंडवानी गायन कर रही हैं. रितु का जन्म भिलाई के रुआ बांधा में हुआ था. उन्होंने देश-प्रदेश के अलावा जापान, जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस समेत 16 देशों में पंडवानी की प्रस्तुति देकर छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया. इसके लिए उन्हें उस्ताद बिस्मिल्ला खां पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. लेकिन उन्हें प्रदेश से कभी कोई सम्मान नहीं मिला.

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ईटीवी से बातचीत में उभरा दर्द
ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में रितु का दर्द उभर आया. उन्होंने कहा कि देश में भले उन्हें सम्मान मिला लेकिन प्रदेश ने कभी सुध नहीं ली. वे राज्य सरकारों पर छत्तीसगढ़ के कलाकारों का सम्मान न करने का आरोप लगाती हैं. रितु कहती हैं कि कई मेले लगे लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से कोई न्योता नहीं आया.

सरकार की अनदेखी से दुखी
रितु वर्मा बताती हैं कि कभी राज्योत्सव में उन्हें नहीं बुलाया गया. रितु कहती हैं कि बाहर से कलाकारों को बुलाने के लिए सरकार के पास पैसा होता है लेकिन राज्य के कलाकारों के लिए बजट नहीं होता है.
रितु कहती हैं कि वे पढ़ी नहीं हैं, उनके बच्चे बताते हैं कि बाहर लोग उनकी सहारना करते हैं. वे कहती हैं स्कूल में पढ़ाई जाने वाली किताबों में उनके बारे में लिखा है लेकिन आज तक प्रदेश सरकार ने न तो उनकी सुध ली और न ही सम्मानित किया.

कलाकारों का सम्मान नहीं: रितु
रितु वर्मा कहती हैं कि, मैं एक अकेली कलाकार नहीं हूं, बहुत से कलाकार हैं जिन्हें आज तक न ही किसी प्रकार का बढ़ावा मिला है और न ही किसी प्रकार का सम्मान किया गया है. वे कहती हैं कि नई सरकार आई तो उम्मीद है कि कलाकारों के दिन फिरें.

रितु वर्मा के बारे में कुछ जानिए-

  • श्रमिक परिवार में 10 जून 1979 को भिलाई में जन्म.
  • अगस्त 1989 में विदेशी मंच पर अपना पहला कार्यक्रम दिया. 10 साल की उम्र में दी थी प्रस्तुति.
  • 1991 में आदिवासी लोक कला परिषद भोपाल ने उन्हें जर्मनी और इंग्लैंड भेजा.
  • रितु ने बचपन से एक पांव के घुटने पर बल देकर पंडवानी कहने की कला को साधा.

पांच साल की उम्र से पिता ने जो खिलौना दिया, रितु ने उसे अपनी जिंदगी बना लिया. पहले घर के आंगन फिर प्रदेश और देश के आंगन से पंडवानी को निकाल कर रितु उसे विदेश पहुंचा आई हैं. इस महिला दिवस शुभकामनाएं देते हैं कि उन्हें वो सम्मान मिले, जिसकी वे हकदार हैं.

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