बलौदा बाजार: हर शहर की एक अलग पहचान होती है. शहरों के नामकरण को लेकर भी कई कहानियां होती हैं. कई शहरों के नाम में स्थानीय परंपरा या वहां के किसी मशहूर चीजों की झलक होती है. जिला मुख्यालय बलौदा बाजार के नामकरण के पीछे भी कुछ ऐसी रोचक कहानी है.
बैल बाजार की जमीन पर कब्जा बताते हैं बलौदा बाजर शहर का नाम यहां लगने वाले बैल बाजार के नाम पर रखा गया था. बाद में इसी शहर के नाम पर जिले का नाम भी बलौदा बाजार रखा गया. कहते हैं उस दौर में महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, हरियाणा, बिहार राज्य से लोग यहां बैल और भैंसा (बोदा) खरीदने-बेचने आते थे. भैंसा को यहां की स्थानीय भाषा में बोदा कहा जाता है. बैल और बोदा को मिलाकर इस शहर का नाम पहले बैलबोदा बाजार रखा गया. जो बाद में बलौदा बाजार के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
दिनों दिन सिकुड़ता जा रहा है बैल बाजार
शहर के साथ जिले का नाम तो बलौदा बाजार हो गया, लेकिन जिसके नाम पर जिले का नाम पड़ा आज वो ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. अधुनिकता और ट्रैक्टर-पावरटीलर के दौर में बैल बाजार लगभग बंद हो गए. हालांकि बैल का बाजार तो अब भी लगता है, लेकिन शहर में जो स्थान बैल बाजार के लिए सुरक्षित था, उसपर अब माफिया का कब्जा होते जा रहा है. दिनों दिन सिकुड़ता बैल बाजार आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.
सरकार ने भी किया अतिक्रमण
बैल बाजार की जमीन पर न सिर्फ भू-माफिया बल्कि सरकार ने भी कब्जा करना शुरू कर दिया है. बाजार के आस-पास जहां भू-माफिया ने अतिक्रमण शुरू कर दिया है, वहीं बिजली विभाग ने भी उसी बैल बाजार में सब स्टेशन बना दिया है. जिसके कारण बैल बाजार और सिकुड़ता जा रहा है.
पहले हजारों की संख्या में आते थे मवेशी
मामाले में नगर पालिका की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं. पालिका पर आरोप है कि पालिका के अधिकारी मवेशी बाजार के लिए हर साल टेंडर निकाल देते हैं, लेकिन टेंडर लेने वाले ठेकेदार बाजार में बिकने आने वाले मवेशियों के लिए न तो पानी का व्यवस्था करते हैं न ही छांव के लिए शेड लगाया जाता है. जिसके कारण अब मवेशी बेचने वाले व्यापारी बलौदा बाजार से किनारा करने लगे हैं. पहले जब बाजार लगता था, तब अन्य प्रदेश के लोग भी यहां खरीद बिक्री करने पहुंचते थे, लेकिन अब मुश्किल से 50 से 100 मवेशी ही बिक्री के लिए आते हैं.