बलौदाबाजारः जिले में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए 11 अप्रैल से टोटल लॉकडाउन लगाया गया है. पिछले 21 दिनों से जिले में टोटल लॉकडाउन लगा हुआ है. इसके बावजूद कोरोना संक्रमितों की संख्या और मौत के आंकड़े लागतार बढ़ते जा रहे हैं. जिले में लॉकडाउन के दौरान कुल 16 हजार 46 नए कोरोना संक्रमित मरीज सामने आए हैं. इसके साथ ही 109 लोगों की मौत भी कोरोना से हुई है. तमाम पाबंदियों के बाद भी बढ़ते संक्रमण ने जिला प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है.
जनप्रतिनिधि टीकाकरण के लिए कर रहे प्रेरित
बढ़ते कोरोना संक्रमण से जिलेवासियों में डर का माहौल है. टोटल लॉकडाउन के बावजूद संक्रमण की रफ्तार में कोई कमी नहीं हो रही है. साथ ही मौत का आंकड़ा भी लोगों में दहशत फैला रहा है. जिला प्रशासन लगातार संक्रमण को रोकने के लिए जिले में सख्ती भी बरत रहा है. साथ ही वैक्सीनेशन कि रफ्तार बढ़ाई गई है. कई नए टीकाकरण केंद्र भी खोले जा रहे हैं.
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वैक्सीनेशन की गति में लगातार आ रही कमी
जिले में जिस रफ्तार से कोरोना संक्रमण की संख्या बढ़ रही है, उस रफ्तार से वैक्सीनेशन नहीं हो रहा है. जिले में लॉकडाउन के पहले 7000 से 8000 लोगों का टीकाकरण किया जा रहा था. लेकिन अब जब कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है, तो टीकाकरण केवल 700 से 800 लोगों का ही हो पा रहा है. कलेक्टर और स्वास्थ्य विभाग लोगों से लगातार टीकाकरण के लिए अपील भी कर रहे हैं. सभी पात्र जिलेवासी वैक्सीनेशन में भाग ले रहे हैं और दूसरों को भी वैक्सीनेशन के लिए प्रेरित कर रहे हैं. बावजूद इसके लोगों में डर और अफवाहों के कारण टीकाकरण में कमी आई है.
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जिले में हर रोज मिल रहे 800 से ज्यादा नए मरीज
जिले में जब से लॉकडाउन हुआ है. तब से हर रोज कोरोना के 800 से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है, अगर कोरोना जांच की गति में तेजी आएगी. जिले में पहले हर दिन 8 हजार से 9 हजार लोगों की कोरोना जांच होती थी, लेकिन अभी केवल 2500 लोगों की जांच हो रही है. यही कारण है कि नए मरीजों की संख्या भी कम ही दिख रही है. नए कोरोना मरीजों की पहचान समय से ना होने से भी मौत के आंकड़े बढ़े हैं.
सरकारी अस्पतालों में नहीं है खाली बेड
जिले के शासकीय कोविड अस्पतालों में 820 बिस्तरों की व्यवस्था है. लेकिन हर दिन 800 से ज्यादा नए कोरोना मरीज मिलने से सारे बिस्तर भरे हुए हैं. जिले में एक भी बिस्तर खाली नहीं है, इसके साथ ही 234 ऑक्सीजन बेड बनाए गए हैं. जो पिछले एक हफ्ता पहले ही भर चुके हैं. ऐसे में लोगों को ऑक्सीजन बेड के लिए निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ रहा है.