बालोद: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम हथौद, जहां ज्यादातर लोग बुनकर का काम करते हैं. यहां पर हथकरघा के माध्यम से लोग अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं. हालांकि जिला प्रशासन इन्हें आधुनिकता से जोड़ने का प्रयास कर रही है. ये महिलाएं अब प्रशिक्षित होकर कपड़े की राखी बना रही (Women of Balod are making eco friendly Rakhi from clothes ) हैं. दरअसल इनकी राखियों को ऑनलाइन माध्यम से पोर्टल में अपलोड किया गया है. जिसके बाद असम, न्यू दिल्ली और साउथ के कई राज्यों से राखी की डिमांड की गई और हाथों हाथ यह राखियां बिक गई. महिलाओं ने यहां पर इको फ्रेंडली राखी का मास्टर प्लान तैयार किया. सब्जियों और विभिन्न तरह के माध्यमों से प्राकृतिक रंग तैयार किए. यहां स्थानीय बुनकरों से कपड़े मंगाए. उन कपड़ों से राखियां बनाकर, उसमें गोदना कसीदा लगाकर ऑनलाइन माध्यम से सेल भी कर दिया गया. कलेक्टर ने इन महिलाओं के कार्यों की सराहना की और कहा कि निश्चित ही यह गर्व का विषय है.
80 महिलाएं कर रही काम: डिजाइनर सुरभि गुप्ता ने बताया कि ''यहां पर कुल 60 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं. 20 महिलाओं की इस काम में हिस्सेदारी है. कुल 80 महिलाएं इस कार्य में शामिल हैं. महिलाएं काफी रूचि लेकर ये काम कर रही हैं. आगे भी यह महिलाएं बेहतर कामकरती रहेंगी.
राखियों की प्रिंटिंग बेहद खूबसूरत:फिलहाल बाजार में रंग बिरंगी राखियां मौजूद है. कपड़ों की राखियों को सुन ऐसा लगता है, मानो वह बेहद ही सामान्य हों. लेकिन ये राखियां रंग बिरंगी हैं. इन राखियों की प्रिंटिंग भी काफी खूबसूरत है. उसमें गोदना कला सहित कसीदा कला को भी उकेरा गया है.
वेजिटेबल कलर किया गया यूज:बालोद की इन महिलाओं ने इको फ्रेंडली राखियां बनाई है. अनार के छिलके, गेंदे का फूल, हर्रा, लोहे और गुड़ का मिश्रण, आलम, गोंद, चायपत्ती, हीना, कत्था यह सभी रंग होते हैं, जो सप्तरंगी छटा बिखेरते हैं. इन्हें कुछ ऐसा लगाया जाता है कि यह पक्के रंग में तब्दील हो जाए. गेंदे के फूल से पीला रंग, गुड़ और लोहे को मिलाकर काला रंग बनाया जाता है. मेहंदी से हरा रंग बनाया जाता है. इस तरह हर प्राकृतिक चीजें कुछ न कुछ रंग उकेरती है, जिसे उन्होंने राखियों में उपयोग किया है.
स्टॉक हुआ सोल्ड:इस छोटे से गांव के लिए गर्व की बात तो यह है कि इस गांव में पोस्ट ऑफिस नहीं है. लेकिन योजनाओं से ऑनलाइन सामग्रियां पार्सल के माध्यम से नई दिल्ली, असम और साउथ के कई राज्यों में भेजा जा रहा है. दरअसल, पहली बार में जितनी राखियां तैयार की गई थी, उसे पोर्टल में अपलोड करने के मिनटों बाद ही खरीदारों ने खरीद लिया. सैकड़ों राखियां हाथों हाथ बिक गई. अब भी कुछ राखियां बिक्री के लिए बची है. इन महिलाओं को उम्मीद है कि जितनी बुकिंग है, उतनी राखियां ये उन तक पहुंचा पाएंगी.