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बालोद की महिलाएं कपड़ों से बना रही इको फेंडली राखी, दूसरे राज्यों में बढ़ी डिमांड

बालोद जिले के ग्राम हथौद की महिलाएं कपड़ों के ऊपर कारीगरी कर इको फ्रेंडली राखी तैयार कर रही हैं. इनकी बनाई राखियां ऑनलाइन माध्यम से दूसरे राज्यों में हाथों हाथ बिक रही (Women of Balod are making eco friendly Rakhi from clothes) है.

Women of Balod are making eco friendly Rakhi from clothes
बालोद की महिलाएं कपड़ों से बना रही इको फेंडली राखी

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Published : Aug 9, 2022, 4:49 PM IST

Updated : Aug 9, 2022, 4:58 PM IST

बालोद: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम हथौद, जहां ज्यादातर लोग बुनकर का काम करते हैं. यहां पर हथकरघा के माध्यम से लोग अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं. हालांकि जिला प्रशासन इन्हें आधुनिकता से जोड़ने का प्रयास कर रही है. ये महिलाएं अब प्रशिक्षित होकर कपड़े की राखी बना रही (Women of Balod are making eco friendly Rakhi from clothes ) हैं. दरअसल इनकी राखियों को ऑनलाइन माध्यम से पोर्टल में अपलोड किया गया है. जिसके बाद असम, न्यू दिल्ली और साउथ के कई राज्यों से राखी की डिमांड की गई और हाथों हाथ यह राखियां बिक गई. महिलाओं ने यहां पर इको फ्रेंडली राखी का मास्टर प्लान तैयार किया. सब्जियों और विभिन्न तरह के माध्यमों से प्राकृतिक रंग तैयार किए. यहां स्थानीय बुनकरों से कपड़े मंगाए. उन कपड़ों से राखियां बनाकर, उसमें गोदना कसीदा लगाकर ऑनलाइन माध्यम से सेल भी कर दिया गया. कलेक्टर ने इन महिलाओं के कार्यों की सराहना की और कहा कि निश्चित ही यह गर्व का विषय है.

इको फेंडली राखी

80 महिलाएं कर रही काम: डिजाइनर सुरभि गुप्ता ने बताया कि ''यहां पर कुल 60 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं. 20 महिलाओं की इस काम में हिस्सेदारी है. कुल 80 महिलाएं इस कार्य में शामिल हैं. महिलाएं काफी रूचि लेकर ये काम कर रही हैं. आगे भी यह महिलाएं बेहतर कामकरती रहेंगी.

राखियों की प्रिंटिंग बेहद खूबसूरत:फिलहाल बाजार में रंग बिरंगी राखियां मौजूद है. कपड़ों की राखियों को सुन ऐसा लगता है, मानो वह बेहद ही सामान्य हों. लेकिन ये राखियां रंग बिरंगी हैं. इन राखियों की प्रिंटिंग भी काफी खूबसूरत है. उसमें गोदना कला सहित कसीदा कला को भी उकेरा गया है.

वेजिटेबल कलर किया गया यूज:बालोद की इन महिलाओं ने इको फ्रेंडली राखियां बनाई है. अनार के छिलके, गेंदे का फूल, हर्रा, लोहे और गुड़ का मिश्रण, आलम, गोंद, चायपत्ती, हीना, कत्था यह सभी रंग होते हैं, जो सप्तरंगी छटा बिखेरते हैं. इन्हें कुछ ऐसा लगाया जाता है कि यह पक्के रंग में तब्दील हो जाए. गेंदे के फूल से पीला रंग, गुड़ और लोहे को मिलाकर काला रंग बनाया जाता है. मेहंदी से हरा रंग बनाया जाता है. इस तरह हर प्राकृतिक चीजें कुछ न कुछ रंग उकेरती है, जिसे उन्होंने राखियों में उपयोग किया है.

स्टॉक हुआ सोल्ड:इस छोटे से गांव के लिए गर्व की बात तो यह है कि इस गांव में पोस्ट ऑफिस नहीं है. लेकिन योजनाओं से ऑनलाइन सामग्रियां पार्सल के माध्यम से नई दिल्ली, असम और साउथ के कई राज्यों में भेजा जा रहा है. दरअसल, पहली बार में जितनी राखियां तैयार की गई थी, उसे पोर्टल में अपलोड करने के मिनटों बाद ही खरीदारों ने खरीद लिया. सैकड़ों राखियां हाथों हाथ बिक गई. अब भी कुछ राखियां बिक्री के लिए बची है. इन महिलाओं को उम्मीद है कि जितनी बुकिंग है, उतनी राखियां ये उन तक पहुंचा पाएंगी.

हैंडलूम ने बढ़ाई वैल्यू:इस गांव में हैंडलूम कपड़े बनाए जाते हैं. सामान्यतः यह कपड़े प्लेन होते हैं. परंतु अब यहां पर महिलाओं को जिस तरह से प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इन कपड़ों में प्रिंटिंग भी शुरू किया गया है. जिससे इन कपड़ों के दाम बढ़े हैं. कपड़ों की कारीगरी भी बढ़ गई है. यहां आपको शुद्ध हाथों से बने और प्राकृतिक रंगों से सजे कपड़े बारह महीने मिल जाएंगे.

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महिलाएं राखियों को लेकर एक्टिव: प्रिंटिंग, गोदना का प्रशिक्षण दे रहे मदन मोहन चौधरी ने बताया कि ''यहां की महिलाएं और बच्चे काफी एक्टिव हैं. उन्होंने काफी कुछ सीखना शुरू कर दिया है. रोजाना महिलाएं यहां सीख रही हैं. प्राकृतिक रूप से कलर कैसे बनाया जाए? रंगों को कैसे कपड़ों पर पहुंचाया जाए?'' उन्होंने कहा कि हाथों हाथ इनकी बनाई सामग्रियां बांटी जा रही है. खासकर राखी तो कम समय में काफी मात्रा में बिक चुकी है.

टेक्नोलॉजी को साथ लेकर चल रहे लोग:इस गांव के लोग पारंपरिक ढंग से हथकरघा का काम करते थे. प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने आधुनिकता के साथ अब हाथ मिला लिया है. हर चीजों का यूज किया जा रहा है.

हले बनाए गए सैंपल:डिजाइनर सुरभि गुप्ता ने बताया कि पहले यहां पर कुछ स्थानीय बुनकरों से कपड़े मंगाए गए और एक सैंपल बनाया गया. फिर उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित किया गया. जिसके बाद आपने आप इसकी डिमांड बढ़ती गई. डिमांड के अनुरूप हमने निर्माण कर उन्हें भेज दिया है. क्योंकि राखी का पर्व अभी काफी नजदीक है. हमने जितने भी सामान बनाए थे, सारे बिक चुके हैं. हमारी महिलाएं भी प्रॉफिट में हैं.

महिलाओं की बढ़ी आमदनी: कलेक्टर गौरव कुमार सिंह ने बताया कि "ऐसी परियोजनाओं के माध्यम से शासन प्रशासन की मंशा होती है कि महिलाएं जो घरों के चूल्हे तक सिमट कर रहती हैं, घरों से बाहर निकलें और अपने अंदर छिपी प्रतिभा को निखारें. आर्थिक रुप से संबल बनें. यह हमारी महिलाओं की प्रतिभा का परिणाम है कि इको फ्रेंडली राखियां नई दिल्ली, असम और साउथ इंडिया के कई राज्यों तक पहुंची है. यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है."

Last Updated : Aug 9, 2022, 4:58 PM IST

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