बलरामपुर: गौशाला में पाठशाला, ये सुनने में आपको अजीब लग रहा होगा लेकिन ये इस गांव और यहां के मासूमों की हकीकत है. गाय के लिए लगे खूंटे और लकड़ी का बना ये कमरा बताता है कि ये मवेशियों की रहने की जगह है. लेकिन आप जान कर चौंक जाएंगे कि यहां मवेशियों के साथ बच्चे भी बैठते हैं.
जिले के जनपद पंचायत शंकरगढ़ के देव सारा गांव में संचालित स्कूल में देश का भविष्य गढ़ने को तैयार नौनिहालों को पढ़ने के लिए क्लासरूम नसीब नहीं है. यहां पिछले 22 सालों से कक्षाएं गौशाला में लगाई जा रही है. सुविधाओं के अभाव में नौनिहालों गौशाला की दुर्गंध के बीच पढ़ने को मजबूर हैं. इस स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातार बच्चे पहाड़ी कोरवा के हैं. स्कूल न होने के कारण गौशाला में पहली से पांचवी तक सभी बच्चों को साथ बैठा कर पढ़ाया जाता है.
प्रशासनिक अधिकारी नहीं दे रहे ध्यान
स्कूल में पढ़ाने के लिए यहां दो शिक्षकों की नियुक्ति की गई है. शिक्षकों ने कई बार असुविधाओं की जानकारी प्रशासन को दी है, लेकिन आज तक कोई प्रशासनिक अधिकारी इसे देखने नहीं आया. शिक्षकों की मानें तो उन्हें स्कूल का संचालन करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
जर्जर हालत में है स्कूल के लिए बनाए गए भवन
शिक्षकों ने बताया कि साल 2013 में यहां एक स्कूल भवन का निर्माण जरूर किया गया था जो कभी भी गिर सकता है. स्कूल भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है. स्कूल की ऐसी हालत देखते हुए शिक्षकों ने उसका हैंडओवर नहीं लिया. गांव में दूसरा कोई स्कूल नहीं है. बच्चों के परिजन मजबूरी में बच्चों को यहां पढ़ने भेजते हैं.
बच्चों की सेहत पर पड़ रहा असर
परिजनों की मानें तो गाय के कोठार में स्कूल लगने से काफी बदबू आती है जिससे बच्चों की सेहत पर असर पड़ रहा है. वहीं मामले में अधिकारी का कहना है कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं है. ईटीवी भारत के माध्यम से छात्र- छात्राएं अपने लिए स्कूल की मांग कर रहे हैं.