राममंदिर में निभाई गई रियासतकालीन परंपरा सरगुजा :अम्बिकापुर में भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया. सरगुजा के 90 साल पुराने राम मंदिर में भव्य आयोजन किया गया. दोपहर 12 बजे भगवान राम का जन्म हुआ. इस दौरान प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने रियासतकालीन परंपरा निभाई. राम के जन्म के बाद मंदिर के पट खोलकर भक्तों को दर्शन कराए गए.
जानिए, क्या है पुरानी परंपरा : स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने बताया कि "ये मंदिर स्टेट टाइम में मेरे पिता जी के जन्म के अवसर पर बनवाया गया था. आगे चलकर बाबा जी की तपस्या और लोगों की आस्था को देखकर के मम्मी और डैडी ने इसे दान में अमरकंटक वाले बाबा जी को दे दिया. तब से जब भी रामनवमी की पूजा होती है उन्होंने एक परंपरा डाली है. परिवार का मुखिया आकर दोपहर बारह बजे मंदिर का पट खोला करेंगे. ये परंपरा महाराज साहब के समय से चली आ रही है.''
पश्चिम मुखी राममंदिर का इतिहास : सरगुजा के इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा ने बताया " टीएस सिंहदेव के पिता महाराज मदनेश्वर शरण सिंहदेव का जन्म 1930 में हुआ था. इस मंदिर का निर्माण भी उसी के आस पास कराया गया. पहले यहां चित्रगुप्त मंदिर बनाया जा रहा था. इसलिए यह पश्चिम मुखी मंदिर है. क्योंकि चित्रगुप्त मंदिर पश्चिम मुखी ही होते हैं. लेकिन उस समय राजमाता रहीं माई साहब ने सुझाव दिया कि पैलेश के सामने यम से जुड़े मंदिर बनाना उचित नहीं होगा, इसलिए फिर इस मंदिर में भगवान राम की मूर्ति स्थापित की गई. कहीं भी शायद ही भगवान राम का मंदिर पश्चिम मुखी होगा."
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कहां बनाया गया चित्रगुप्त मंदिर : गोविंद शर्मा बताते हैं कि "इसके बाद चित्रगुप्त मंदिर अंधेरी बगीचा में बनाया गया, जो आज गुदरी बाजार के रूप में जाना जाता है. 1982 में राम मंदिर में तपस्या करने वाले कल्याण दास बाबा को राजा माता देवेन्द्र कुमारी सिंहदेव के कहने पर महाराज साहब ने मंदिर दान में दे दिया. कल्याण बाबा राम मंदिर में तपस्या करते थे. वो कड़कड़ाती ठंड में ठंडे पानी में डूबे रहते थे. गर्मियों में चारों तरफ आग जलाकर बीच में बैठकर तप करते थे. वो कभी बैठते या लेटते नहीं थे. एक पेड़ पर रस्सी का झूला बनाया था. उसी पर पेट के बल लटक कर आराम करते थे."