सीतापुर विधानसभा सीट पर अब तक नहीं जीती भाजपा अंबिकापुर:सरगुजा संभाग के अंबिकापुर जिले की सीतापुर विधानसभा सीट पर भाजपा का खाता आज तक नहीं खुला है. इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार भी विधायक बन चुके हैं, लेकिन भाजपा को जीत हासिल नहीं हुई है. ये सीट कांग्रेस का अभेद्य किला बन चुका है. आजादी के बाद अब तक 15 विधानसभा चुनाव हुए. इनमें 12 बार कांग्रेस तो 3 बार निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली. इस सीट पर कभी भी जन संघ, जनता पार्टी या भाजपा को जीत नहीं मिली है.
क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट:सीतापुर एक ऐसी विधानसभा क्षेत्र है, जहां पर उरांव जनजाति और क्रिश्चियन जाति के लोग ज्यादा हैं. इन दोनों जाति का झुकाव कांग्रेस की ओर है. अंबिकापुर विधानसभा का कुछ हिस्सा दरिमा मार्ग के लेफ्ट हिस्से में है. जो शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. इस क्षेत्र में कंवर जाति के लोग हैं, वो शुरू से कांग्रेस को ही वोट करते आ रहे हैं. पत्रकार अनंग पाल दीक्षित बताते हैं कि इस विधानसभा सीट से सीतापुर, बतौली और मैनपाट को छोड़ भी दें, तो ये अंबिकापुर से लगा हिस्सा है. वो हिस्सा भी सीतापुर में जुड़ गया इसलिए ये सीट कांग्रेस का गढ़ बन चुका है.
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भाजपा के पास नेतृत्व ही नहीं: कांग्रेस का मानना है कि सीतापुर विधानसभा की जनता हमेशा कांग्रेस के पक्ष में रही है. कांग्रेस की रीतियों और नीतियों के पक्ष में रही है. भारतीय जनता पार्टी ने उस क्षेत्र में नेतृत्व और जनाधार पैदा करने की कभी कोशिश नहीं की. इस वजह से भाजपा उस क्षेत्र को कभी छू नहीं पाई. कांग्रेस के नेता जेपी श्रीवास्तव का कहना है कि "भाजपा के पास उनके खुद के नेता ही नहीं है. भाजपा को इम्पोर्टेड नेता लाना पड़ता है. बाहर से नेता मंगाते हैं, इसलिए वहां नेतृत्व का अभाव है. "
कार्यकर्ताओं में भरा है जोश अब जीतेंगे:कांग्रेस के दावे को भाजपा भी मान रही है. हालांकि भाजपा इस बार के चुनाव में जीत का दावा कर रही है. भाजपा नेता प्रशांत त्रिपाठी का कहना है कि "जनता को मतदान के लिए कार्यकर्ता उत्साहित करता है. सीतापुर विधानसभा के कार्यकर्ता कहीं से कमजोर नहीं हैं. रणनीति तैयार हो रही है. वर्तमान मंत्री की गलतियों को भाजपा मुद्दा बनायेगी. इस बार हम सीतापुर विधानसभा में विजयी होंगे."
भाजपा ने खुद किया नजरअंदाज:सीतापुर में भाजपा के बूथ मैनेजमेंट में कमी दिख रही है. भाजपा का कोई बड़ा चेहरा सीतापुर में नहीं दिख रहा है इसी वजह से चुनाव में प्रत्याशी बाहर से लाना पड़ता है. इसके पीछे एक कारण ये भी नजर आ रहा है कि भाजपा ने इस सीट को कभी सीरियस नहीं लिया.