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गुटबाजी और पार्टी की मनमानी ने खोदी कांग्रेस की कब्र, सरगुजा संभाग ने दी बीजेपी को जीत की चाबी

2023 का चुनाव कांग्रेस के लिए कई सबक लेकर आया. बस्तर को सत्ता की चाबी कहने का मिथक भी बीजेपी ने तोड़ते हुए सरगुजा से छत्तीसगढ़ी की जीत का रास्ता निकाला. बीजेपी की ऐसी हवा चली की सभी 14 सीटों पर भगवा लहरा गया.

BJP Victory in surguja sambhag
गुटबाजी और पार्टी की मनमानी ने खोदी कांग्रेस की कब्र

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 4, 2023, 10:30 PM IST

सरगुजा: चुनावी पंडितों का एग्जिट पोल और तमाम मीडिया हाउसों के नतीजों को गलत साबित करते हुए बीजेपी ने जो कमल खिलाया उसकी उसकी खूशबू पूरे छत्तीसगढ़ में फैल गई. सरगुजा संभाग की 14 में से 14 सीटें कमल की झोली में आ गिरी. कभी सरगुजा में जीत को लेकर इतरानी वाली कांग्रेस और उसके दिग्गज नेता हार की हताशा में डूब गए. सरगुजा की जनता का कहना है कि स्थानीय लोगों की अनदेखी और नेताओं को मौका नहीं देना कांग्रेस को भारी पड़ा.


पार्टी का अंदरुनी विवाद: पूरे सरगुजा संभाग में टिकट वितरण से लेकर प्रचार के दूसरे चरण तक पार्टी अंदरुनी गुटबाजी से जूझती रही. खुद डिप्टी सीएम सिंहदेव और सीएम भूपेश बघेल जरूर मंच साझा करते रहे लेकिन विवाद पद को लेकर खत्म नहीं हुआ. पब्लिक को पांच साल का ये विवाद रास नहीं आया. पब्लिक ने विवाद का अंत कांग्रेस को हरा कर किया. सिंहदेव समर्थकों को हमेशा ये लगता था कि उनके नेता और खुद वो ठगे गए. पार्टी के भीतर और बाहर चल रही गुटबाजी भारी पड़ी. भरतपुर सोनहत के कार्यकर्ताओं का आरोप था वादाखिलाफी जो पार्टी आलाकमान ने की उसे लोग भूल नहीं पाए थे. वोटिंग के दौरान उन्होने इसका बदला लिया.


बीजेपी की महतारी वंदन योजना कांग्रेस के तमाम गारंटियों पर भारी पड़ी. बीजेपी ने मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए ये ऐलान एन वक्त पर किया कि पार्टी जीतने पर हर महिला के खाते में सालाना 12 हजार रुपए देगी. कांग्रेस बीजेपी के इस रामबाण का काट नहीं खोज पाई. कांग्रेस काट खोजने के बजाए चुनाव आयोग से शिकायत करने में जूझती रही. नतीजा ये निकला कि बीजेपी का तीर सही जगह पर लग गया और कांग्रेस ढेर हो गई.

हार और जीत के बीच में कुछ समीकरण सीटों को लेकर भी बने. कहीं विधायक का विरोध हुआ तो कहीं प्रत्याशी बदले जाने की मांग हुई.सूरजपुर, प्रतापपुर, प्रेमनगर और भटगांव ऐसी ही सीटें थीं. सिटिंग विधायकों का विरोध हुआ बावजूद इसके आलाकमान और भूपेश बघेल ने शिकायत पर विचार नहीं किया. नतीजा सभी सीटें हार में कांग्रेस को उपहार के रुप में मिली. नाराज कार्यकर्ताओं को भी मनाने की कोशिश न तो स्थानीय नेताओं ने की नहीं बड़े नेताओं ने की. रेणुका सिंह का सियासी दबदबा भी कांग्रेस पर भारी पड़ा और वो चित्त हो गई. रही सही कसर कांग्रेस की गोंगपा ने पूरी कर दी. जानकारों का कहना है कि चुनाव में मिस मैनेजमेंट और सिंहदेव की टीम का टूटना बड़ी वजह रही.

सीतापुर सीट जिसे कभी भी बीजेपी भेद नहीं पाई थी उसे भी कांग्रेस हार गई. अमरजीत भगत यहां 20 सालों से विधायक थे. भगत भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दे पर बीजेपी के सामने टूट गए. विधायक ने वास्तव में वहां विकास किया होता तो हार मुश्किल थी.सेना से रिटायर हुए एक आम आदमी ने उनको ऐसी शिकस्त दी जिसे वो लंबे वक्त तक याद रखेंगे. लुंड्रा विधानसभा सीट की कहानी भी कुछ ऐसी ही रही. जशपुर से लेकर पत्थगांव तक रामानुजगंज से लेकर कुनकुरी तक कांग्रेस अंतर्रकलह से जूझती रही. बीजेपी ने कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठाया और जीत अपने नाम कर लिया.

सरगुजा संभाग में हार का जो सबसे बड़ा फैक्टर रहा वो पड़े लिखे लोगों की कांग्रेस से नाराजगी भी रही. कांग्रेस पार्टी गाय, गोबर और पीएससी घोटाले पर सफाई देती रही, अपनी योजनाओं का बखान करती रही इससे भी युवा नाराज थे. रही सही कसर महादेव एप ने ताबूत में आखिरी कील की तरह कर दी.

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