सरगुजा:हैंडीक्राफ्ट की दुनिया तेजी से अपना पैर पसार रही है. आज जिस किसी घर में चले जाएं आपको हैंडीक्राफ्ट से बना कुछ न कुछ सामान जरुर मिलेगा. हैंडीक्राफ्ट के सामान जहां आपके घरों को सुंदर बनाते हैं, वहीं कई कारीगरों को रोजगार भी देते हैं. हैंडीक्राफ्ट की दुनिया से निकले एक ऐसे ही कारीगर हैं सरगुजा के झोलर साय. कभी दो वक्त की रोटी के लिए ये मारे मारे फिरते थे. गांव में काम नहीं होने पर दिहाड़ी मजदूरी तक करने को मजबूर हुए. झोलर साय की दुनिया एक दिन उनके एक फैसले से बदल गई.आज झोलर साय हैंडीक्राफ्ट और कारीगरी की दुनिया में अच्छा खासा नाम कमा रहे हैं.
कैसे बदली झोलर साय की जिंदगी: लालमाटी ग्राम पंचायत के गंजहाडांड के रहने वाले झोलर साय विशेष संरक्षित जनजाति कोरवा समुदाय से आते हैं. जंगल से लकड़ी लाकर उसे शहर में बेचकर अपना पेट पालते थे. कभी वन विभाग वाले परेशान करते थे तो कभी पैसे नहीं होने पर दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती थी. झोलर साय को किसी ने हैंडीक्राफ्ट की ट्रेनिंग लेने की सलाह दी, बस यहीं से झोलर साय की जिंदगी ने करवट ली और उनके जीवन की गाड़ी पटरी पर आ गई. झोलर की मेहनत का ही नतीजा है कि वो आज हैंडीक्राफ्ट के ट्रेनर बनकर लोगों को भी ट्रेंड भी कर रहे हैं. अपनी मेहतन से साय ने न सिर्फ अपना जीवन बदला बल्कि अपने साथ के कई लोगों का जीवन भी वो बदल रहे हैं.