सरगुजा: अविभाजित सरगुजा जिला (Undivided Surguja District) या रियासत काल में हमेशा संगीतमय रही है. इसलिए इसे लोग सरगुजा (SURGUJA) कहते हैं, लेकिन दस्तावेजों में सरगुजा कई स्पेलिंग SURGUJA लिखा जाता है, अर्थात इसे सुरगुजा भी पढ़ा जा सकता है. माना जाता है कि प्राचीन काल में इस धरती का सुरगूंजा था जो बाद में सरगुजा हो गया. सुरगूंजा से तात्पर्य था जहां सुर गूंजते हों ऐसी जगह को सुरगूंजा कहा गया. अब ऐसे कौन से कारण है कि घनघोर वन क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र को सुरगूंजा कह दिया गया. इसके प्रमाण मिलते हैं यहां के प्राचीन वाद्ययंत्र में इसके संरक्षण और संवर्धन पर काम कर रहे हैं.
ईटीवी भारत के संवाददाता ने पुरातत्व के जानकार अजय कुमार चतुर्वेदी बातचीत की. इस खास बातचीत में उन्होंने बेहद अद्भुत बातें बताई. जिनके अनुसार यहां लगभग 80 प्रकार के प्राचीन वाद्ययंत्र होते थे, कुछ ऐसे अद्भुत वाद्ययंत्र हुआ करते थे. जिनसे खतरनाक शेरों को भगाने और बुलाने का काम किया जाता था.
सवाल:कितने वाद्य यंत्र हैं और इनकी विशेषता क्या है?
जवाब: सरगुजा अंचल में पहले ऐसे करीब 70 से 80 वाद्य यंत्र हुआ करते थे, बाद में वो या तो विलुप्त हो गए या विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन वाद्य यंत्रों को जंगली जानवरों के चमड़े, उनके दांत, बांस, लकड़ी से बनाया जाता था. कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. यहां घनघोर जंगल हुआ करता था और खतरनाक जंगली जानवरों से बचने के लिये ग्रामीणों के पास कोई हथियार नहीं था तो इन वाद्य यंत्रों को ग्रामीणों ने अपना हथियार बनाया.