रायपुर\हैदराबाद: शारदीय नवरात्र की आज से शुरुआत हो रही है. ऐसे में नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां अंबे के अलग अलग स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है. पहले दिन की बात करें तो इस दिन माता के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होती है. सफेद वस्त्र धारण किए मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल शोभायमान है. मां के माथे पर चंद्रमा सुशोभित है.first day of Shardiya Navratri
कैसे करें मां के इस स्वरूप की पूजा:नवरात्रि के पहले दिन प्रात: उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ कपड़े पहनें. फिर एक चौकी पर देवी दुर्गा की प्रतिमा और कलश स्थापित करें. मां शैलपुत्री का ध्यान कर व्रत का संकल्प करें. मां शैलपुत्री को सफेद रंग की वस्तुएं काफी प्रिय हैं. इसलिए चंदन रोली से टीका कर मां की प्रतिमा पर सफेद वस्त्र और सफेद फूल चढ़ाने चाहिए. बाद में शैलपुत्री माता की कथा करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. इसके बाद दुर्गा चालीसा का पाठ करें.Worship of Maa Shailputri
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मां को श्वेत रंग है प्रिय:माता शैलपुत्री को श्वेत रंग बहुत ही प्रिय है. सफेद फूल, सफेद मिठाई और चमकीली सफेद साड़ी से श्रद्धा पूर्वक और अनंत निष्ठा के साथ माता का शृंगार करना चाहिए. माता शैलपुत्री जीवन में स्थिरता प्रदान करती है. जो लोग जीवन में अस्थिर और भटकने वाले है. उनके जीवन में दुर्गा के इस रूप की आराधना करने पर ठहराव आता है. माता शैलपुत्री के हाथ में त्रिशूल और कमल रहता है. कमल सुख समृद्धि ऐश्वर्य कृति का प्रतीक है. त्रिशूल हमें पुरुषार्थ साहस और प्रचंड पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करता है.
बैल पर करती हैं मां सवारी:माता की सवारी नंदी बैल को माना गया है. माता शैलपुत्री की पूजा करने पर उत्तम वर की प्राप्ति होती है. ऐसे जातक जिनका चंद्रमा बहुत कमजोर है. नीच राशि का है. पाप ग्रहों से युक्त है. ऐसे जातको को शैलपुत्री की आराधना अनंत श्रद्धा से करनी चाहिए. माता के मुकुट में अर्धचंद्र शोभायमान है यह प्रयोग भक्तों को चंद्र के दोष से विमुक्त करती है ऐसे जातक जो बार-बार काम या नौकरी बदलते हैं, उन्हें मां दुर्गा के इस पवित्र उत्तम रूप की निश्चित तौर पर साधना करनी चाहिए. इस दिन यथासंभव निराहार अथवा एकासन कर प्रतिपदा के व्रत को उत्तम कोटि से प्रारंभ करना चाहिए.
पौराणिक कथाएं:पौराणिक कथाओं के मुताबिक राजा दक्ष ने अपने निवास पर एक यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को बुलाया. उन्होंने शिव जी को नहीं बुलाया. माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की इच्छा जताई. सती के आग्रह पर भगवान शिव ने भी उन्हें जाने की अनुमति दे दी. जब सती यज्ञ स्थल पर पहुंची तो वहां पिता दक्ष ने सबके सामने भगवान शिव के लिए अपमानजनक शब्द कहे. अपने पिता की बाते सुनकर मां सती बेहद निराश हुईं और उन्होंने यज्ञ की वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. इसके बाद मां सती शैलराज हिमालय के घर में जनमीं और वह शैलपुत्री कहलाईं.