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Sharadiya Navratri 2022: 1400 साल पुराने महामाया मंदिर में आज भी चकमक पत्थर से जलाई जाती है नवरात्र की पहली ज्योत - हैहयवंशीय राजाओं की कुलदेवी

Navratri in Mahamaya temple of Raipur: हैहयवंशी राजाओं की कुलदेवी मां महामाया के मंदिर में नवरात्र में दूर दूर से श्रद्धालु मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. इस मंदिर में नवरात्र के दौरान कुंवारी कन्या के हाथों से चकमक पत्थर से निकली ज्योत से दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है. कहा जाता है मां के आशीर्वाद से निसंतान दंपति की गोद भर जाती है. Sharadiya Navratri 2022

Mahamaya temple of Raipur
सिद्धपीठ मां महामाया देवी मंदिर का इतिहास

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Published : Sep 25, 2022, 1:08 PM IST

रायपुर: राजधानी रायपुर का सिद्धपीठ मां महामाया देवी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 1400 साल पहले हैहयवंशी राजाओं के शासनकाल में 36 किले के निर्माण के साथ ही 36 जगहों पर मां महामाया का मंदिर बनाया गया था. हैहयवंशी राजाओं की कुलदेवी मां महामाया है. मंदिर पूरी तरह से तांत्रिक विधि से निर्माण कराया गया. जहां हैहयवंशी राजा तंत्र मंत्र साधना और आराधना किया करते थे. आज भी इस प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर में साल में 2 बार नवरात्र के समय चकमक पत्थर की चिंगारी से नवरात्र की ज्योति जलाई जाती है. शारदीय नवरात्र हो या फिर चैत्र नवरात्रि कुंवारी कन्या जिसकी उम्र 9 साल से कम होती है. उसे देवी स्वरूपा मानकर उन्हीं के हाथों नवरात्र की पहली ज्योत प्रज्वलित कराई जाती है.History of Siddhapeeth Maa Mahamaya Devi Temple

सिद्धपीठ मां महामाया देवी मंदिर का इतिहास

मां महामाया मंदिर में काली महालक्ष्मी और समलेश्वरी मां की पूजा:राजधानी में कई देवी मंदिर है. जिनमें से एक मां महामाया देवी का मंदिर है. जिसे लोग सिद्धपीठ मां महामाया देवी मंदिर के नाम से भी जानते है. शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में दूरदराज के श्रद्धालु भी हजारों की तादाद में इस मंदिर में अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. ऐसा कहा जाता है कि मां के दरबार में जो भी मन्नत या मनोकामना होती है. वह कभी खाली नहीं जाती. मां उनकी झोली जरूर भर देती है. मां महामाया काली का रूप है. इसलिए इस मंदिर में काली माता, महालक्ष्मी और माता समलेश्वरी तीनों की पूजा आराधना एक साथ होती है. समलेश्वरी और महामाया मंदिर का आधार स्तंभ को देखने से प्रतीत होता है कि इसमें की गई नक्काशी और कलाकृति काफी प्राचीन होने के साथ ही ऐतिहासिक भी है.
Sharadiya Navratri 2022

महामाया मां

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मां महामाया मंदिर हैहयवंशीय शासनकाल में तांत्रिक विधि से निर्मित:सिद्ध पीठ महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि "हैहयवंशीय राजाओं के शासनकाल में निर्मित यह मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है. करीब 1400 साल पहले इस मंदिर का निर्माण हैहयवंशीय राजाओं ने कराया था. मां महामाया हैहयवंशीय राजाओं की कुलदेवी है. महामाया मंदिर का गर्भगृह और गुंबद का निर्माण श्री यंत्र के रूप में हुआ जो कि स्वयं में महालक्ष्मी का रूप है. वर्तमान समय में मां महालक्ष्मी मां महामाया और मां समलेश्वरी तीनों की पूजा आराधना एक साथ की जाती है. "

कन्या के हाथों से जलती है नवरात्र की पहली ज्योत:मां महामाया मंदिर ट्रस्ट के सदस्य विजय कुमार झा ने बताया "शारदीय नवरात्र या फिर चैत्र नवरात्र के समय कुंवारी कन्या जिसकी उम्र 9 साल से कम होती है उसे देवी स्वरूपा मानकर उनके हाथों से नवरात्र की प्रथम ज्योत प्रज्वलित कराई जाती है. जिसके बाद दूसरे ज्योति कलश को प्रज्वलित किया जाता है. पुरानी परंपरा का निर्वहन भी किया जा रहा है. जिस तरह से बस्तर दशहरा में काछन देवी की पूजा अर्चना की जाती है. उसके बाद ही बस्तर दशहरे का होता है. इसके साथ ही ज्योत जलाने के लिए किसी लाइटर या माचिस का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि चकमक पत्थर की चिंगारी से ज्योत प्रज्वलित किया जाता है."

मां के दरबार निसंतान की भर जाती है झोली:इस प्राचीन और ऐतिहासिक सिद्ध पीठ मां महामाया मंदिर के बारे में भक्तजन और श्रद्धालु बताते हैं कि "मंदिर काफी पुराना और ऐतिहासिक होने के साथ ही मां महामाया लोगों की मनोकामना पूरी करने वाली देवी मानी जाती है. भक्तजन और श्रद्धालु पिछले कई सालों से देवी मां की चौखट पर अपना सिर झुकाने आते हैं. सिद्धपीठ मां महामाया के मंदिर में राजधानी सहित दूरदराज के श्रद्धालु भी शारदीय और चैत्र नवरात्र में हजारों की संख्या में अपनी पीड़ा और मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. कहा जाता है कि निसंतान दंपत्ति माता के द्वार पर पहुंचता है. तो उसे संतान की प्राप्ति होती है."

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