रायपुर: जेब खाली होते हुए भी मैंने अपने पिता को कभी मना करते नहीं देखा. मैंने अपने पिता से बड़ा आदमी जीवन में नहीं देखा. कुछ इसी तरह की पंक्तियां छत्तीसगढ़ के अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे होनहार बच्चों के जीवन में चरितार्थ हो रही है. पिता वो वृक्ष है जो हर तरह की परेशानी और तकलीफ को सहन करते हुए अपनों को संभालता और बचाता है. इसी तरह अपने बच्चों के जीवन को संवारने में पिता का अहम योगदान रहता है. फादर्स डे (fathers day) के इस खास मौके पर ETV भारत आपको राजधानी के कुछ ऐसे प्रतिभावान और होनहार लोगों से रूबरू करा रहा है जो आज अपने क्षेत्रों में एक मुकाम हासिल कर चुके हैं. ये उपलब्धियां उन्हें उनके पिता से मिली हैं.
संगीत के क्षेत्र में और छत्तीसगढ़ की संस्कृति के क्षेत्र में काम कर रही गरिमा और स्वर्णा दिवाकर से ETV भारत ने बातचीत की.
सवाल: आज आप जिस मुकाम पर हैं उसके पीछे आपके पिता का क्या योगदान रहा है ?
जवाब: पापा का शुरू से ही सहयोग रहा है. आज हम जो भी हैं, उन्हीं की वजह से हैं. वो ही हमारे पहले गुरू हैं. जिनसे हमने संगीत सीखा. पापा रेडियो दूरदर्शन (Doordarshan) के ग्रेडेड आर्टिस्ट रहे हैं. जब वे रियाज करते थे तो मैं भी उनके पास बैठ जाती थी और उनसे संगीत सीखा करती थी. जब उन्हों लगा ही हां मुझे संगीत में इंट्रेस्ट है तब उन्होंने मुझे सिखाया. जहां कहीं भी हमारा प्रोग्राम होता है वहां पापा और मम्मी दोनों रहते हैं. मैं कुछ भी गाती हूं तो पहले उनसे पूछती हूं.
रमन सिंह के साथ स्वर्णा और गरिमा दिवाकर सवाल: बाकी पेरेंट्स से क्या कहना चाहेंगी ?
जवाब:हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे माता-पिता मिले हैं. मैं सभी पेरेंट्स से कहूंगी की वे भी अपने बच्चों को सपोर्ट करें. क्योंकि हमें अपने माता-पिता से इतना सपोर्ट मिला है इसी वजह से हम आज काम कर पा रहे हैं. संगीत के क्षेत्र में काम कर पा रहे हैं. कला के क्षेत्र में काम कर पा रहे हैं. छत्तीसगढ़ की संस्कृति के क्षेत्र में काम कर पा रहे हैं.
गरिमा दिवाकर और स्वर्णा दिवाकर स्वर्णा दिवाकर ने कहा कि आज मम्मी-पापा सभी का साथ रहा है तो हम कुछ कर पा रहे हैं. जब पापा रियाज करते थे, दीदी साथ में बैठा करती थी. जब दीदी छोटी थी तो उन्हें पापा सिखाया करते थे. मेरा भी इंट्रेस्ट आया और मैं भी संगीत सीखने लगी. शुरू से ही मम्मी-पापा का बहुत सपोर्ट रहा है. इसी वजह से हम आज कुछ कर पा रहे हैं.
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छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री (chhattisgarhi film industry) अभिनेत्री अनुकृति चौहान ने भी फादर्स डे के मौके पर अपने पिता को याद किया.
माता पिता के साथ साहित्य उपाध्याय सवाल: आपके इस मुकाम पर पहुंचने के पीछे आपके पापा का क्या सपोर्ट है ?
जवाब: जब बच्चे अपनी जिंदगी में कुछ तय नहीं किए रहते हैं तब मैने काम करना शुरू किया था. शुरू से ही मुझे पापा का सपोर्ट रहा है. लोगों का सोचना होता है कि लड़की को काम नहीं कराउंगा, इस लाइन में नहीं भेजूंगा, लेकिन पापा की कभी ऐसी सोच नहीं रही. उन्होंने मुझे बहुत सपोर्ट किया. मेरे पापा को गुजरे साढ़े तीन साल हो चुके हैं. भले ही वो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज भी उनका आशीर्वाद मेरे साथ है. मैं अब तक करीब 18 फिल्म कर चुकी हूं और उनमें से पापा ने मेरी 2 शुरूआती फिल्म देखी थी.
इंटरनेट पर लोगों को एंटरटेन और अपने वीडियो से हंसाने वाले साहित्य उपाध्याय ने फादर्स डे के मौके पर ETV भारत से चर्चा की.
सवाल: आप आज जो काम कर रहे हैं उसमें आप अपने पापा के सहयोग को कैसे देखते हैं ?
जवाब: मुझे कॉमेडी करने का बहुत शौक था और मैनें इसे ही अपना प्रोफेशन बनाने का सोचा. जब मैनें अपना पहला वीडियो बनाकर पिताजी को दिखाया था तो वो बहुत खुश हुए थे. उन्होंने कहा था कि ये तो बहुत अच्छा बना है. लेकिन उस समय उन्हें ये नहीं पता था कि मैं इसे अपना प्रोफेशन बनाने वाला हूं. मैने पिताजी से कहा कि मैं अपनी बाइक बेचकर i-phone लेना चाहता हूं. जिसमें में वीडियो बनाउंगा. तो उस समय भी मुझे सपोर्ट मिला. फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या इस कैमरे में क्वॉलिटी आ जाती है या दूसरा कैमरा चाहिए ? मैने कहा अगर मिल जाता तो अच्छा होता. तो उन्होंने अगले ही दिन मुझे कैमरा खरीदने के लिए पैसे दे दिए. तो शुरू से ही घर और पिताजी ने मुझे बहुत सपोर्ट किया है.
पिता के साथ साहित्य उपाध्याय सवाल: आपके जीवन में पापा की क्या एहमियत है ?
जवाब:माता-पिता का साथ में होना ही अहम बात है. क्योंकि पिछले डेढ़ साल में कोरोना से जो हालात हमने देखे हैं उसमें कई लोगों ने अपने माता-पिता को खो दिया. तो ऐसे में हम सौभाग्यशाली हैं हमारे माता-पिता हमारे साथ हैं.