रायपुरः देश भर में आज से गणेशोसत्व (Ganesha) का शुभारंभ कर दिया गया. गणेश पर्व (ganesh festival) की तैयारी को लेकर राजधानी रायपुर को दुल्हन की तरह सजाया गया है. शहर के चौक-चौराहों पर बुद्धि के देवता को विराजमान किया जा रहा है. हम आपको राजधानी रायपुर के घासीदास संग्रहालय में मौजूद उन दुर्लभ मूर्तियों (rare sculptures) के दर्शन (Visit) कराने जा रहे हैं, जो 10 वीं शताब्दी की हैं.
10 वीं शताब्दी के गणपति की मूर्तियां यहां बारसूर के जुड़वा गणेश की प्रतिमा (ganesh statue), नृत्य करते अष्टभुजा वाले गणपति (dancing octagonal ganpati) और आसनस्थ लंबोदर गणेश की सैकड़ों साल पुरानी प्रतिमाएं (old images) और रेप्लिकाएं मौजूद हैं. यही नहीं, कैलाश पर्वत (Kailash mountain) पर विराजमान उमा महेश्वर (Uma Maheshwar) के चरणों के पास बैठे गणेश और कार्तिकेय (Ganesh and Kartikeya) की दुर्लभ मूर्ति के दर्शन भी यहां किया जा सकता है.
संस्कृति विभाग परिसर स्थित महंत घासीदास संग्रहालय में यूं तो हजारों साल पुरानी कई प्रतिमाएं (many old statues) मौजूद हैं, लेकिन गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर हम आपको बुद्धि के देवता के उन प्रतिमाओं के दर्शन करा रहे हैं, जो हजारों साल पुरानी हैं. यहां मौजूद तीन मूर्तियां (three sculptures) ऐसी हैं जो करीब 1 हजार साल पुरानी हैं. यह मूर्तियां जबलपुर के कारितलाई में खुदाई (Excavation in Karitlai of Jabalpur) के दौरान मिली हैं. यह तीनों मूर्तियां अत्यंत ही दुर्लभ हैं. इसकी नक्काशी (carving) इतनी शानदार की गई है कि मूर्तियों को देखते ही मन प्रफुल्लित (hilarious) हो जाएगा.
नृत्य करते आठ भुजाओं वाले गजानंद
यह है नृत्य गणपति. दसवीं सदी ईसवी में मध्यप्रदेश के जबलपुर जिला के कारितलाई से मिली मूर्ति है. इस प्रतिमा में गणेश नृत्य करते हुए मुद्रा में हैं. उनके उदर में यज्ञोपवीत (Yagyopavita in the abdomen) है. गले में हार (necklace around the neck), हाथ में कंकड़ (pebble in hand) और भुजाओं में भुज बंद (Arms closed) दृष्टव्य है. प्रतिमा अष्टभुजी (image octagon) है. जिनमें से 6 भुजाएं खंडित (6 sides broken) हैं. सुन का हिस्सा तथा कान भी खंडित है.
हाथ में मोदक लिए चतुर्भुजी गणेश
10 वीं सदी की यह लंबोदर की मूर्ति जबलपुर के कारितलाई से मिली है. आसनस्थ लंबोदर गणेश के बाएं कंधे पर नाग (snake on shoulder) यज्ञ पवित्र लिपटा रहा है. सिर पर मुकुट (crown on head) और गले में हार (necklace around the neck) है. सूर्य का हिस्सा खंडित (part of the sun fractured) हो गया है. उनके कान सुख के समान बड़े हैं. चतुर्भुजी गणेश (Chaturbhuji Ganesh) के बाएं और दाएं का निचला हिस्सा खंडित (left and right bottom section fractured) है. उपर के दाहिने हाथ में मोदक (modak in right hand) है.
शिव पार्वती के साथ गणेश और कार्तिकेय
यह है उमा महेश्वर की मूर्ति. यह भी जबलपुर के कारितलाई से मिली है. बलुआ पत्थर की प्रतिमा में शिव लीलासन (Shiv Leelasan) में बैठे हुए हैं. पार्वती शिव की बायीं जांघ पर बैठी हैं. दोनों विविध प्रकार के आभूषण (variety of jewelery) पहने हैं. शिव चतुर्भुजी (Shiva is quadrilateral) हैं. किंतु पार्वती के 2 हाथ हैं. शिव के उपरले दाएं-बाएं हाथों में क्रमशः त्रिशूल और सर्प (trident and snake) है. दाहिने निचले हाथ में अक्षरमाला (lower hand alphabet) है और बांया निचला हाथ पार्वती के स्तन का स्पर्श कर रहा है. पार्वती का दांया हाथ शिव के गले में (right hand around the neck of shiva) लिपटा हुआ है और बांया हाथ घुटने पर अवस्थित है. उमा महेश्वर कैलाश पर्वत पर बैठे हैं. प्रतिमा के ऊपरी भाग के दांयी ओर चतुर्भुजी ब्रह्मा (quadrilateral brahma) और बांयी ओर चतुर्भुजी विष्णु (Quadrilateral Vishnu) बैठे हैं. उमा महेश्वर के दोनों ओर एक-एक गण बैठे हैं. उसके नीचे एक ओर गणेश और दूसरी ओर कार्तिकेय हैं. जिनके बीच में नंदी और कैलाश को उठाने के लिए प्रयासरत रावण (Ravana) प्रदर्शित है.
दंतेवाड़ा के बारसूर की गणेश भगवान की प्रतिमा
छिंदक नागवंशियों की राजधानी के रूप में बारसूर वैभवशाली नगर था. छिंदक नागों (chindak serpents) के समय में गाणपत्य संप्रदाय (ganpatya sect) विशेष रूप से लोकप्रिय था. बारसूर से प्राप्त गणेश एशिया महाद्वीप (asia continent) के विशालतम गणेश प्रतिमा (Largest Ganesh Statue) के रूप में जाना जाता है. बारसूर का मंदिर दंतेवाड़ा जिला में मौजूद है. इस मंदिर में गणेश जी की दो विशालकाय मूर्ति (giant statue) है. एक 5 फीट और दूसरी 7 फीट की. संग्रहालय में इन्हीं मूर्तियों की प्रतिकृति के दर्शन कर सकते हैं.
देश का 9 वां सबसे पुराना संग्रहालय
संस्कृति विभाग के संचालक विवेक आचार्य ने बताया कि महंत घासीदास संग्रहालय में 10 वीं शताब्दी (10th century) की लगभग 3 प्रतिमाएं मौजूद हैं. वह जबलपुर के कारितलाई क्षेत्र से उत्खनन (Excavation) में प्राप्त हुई थीं. यह 10 वीं शताब्दी की हैं, जो आज से लगभग 1 हजार साल पुरानी (1 thousand years old) हो गई है. इसमें खास बात यह है कि गणेश जी की एक 10 वीं शताब्दी (10th century) की प्रतिमा नृत्य (statue dance) करते हुए है. उसमें गणेश जी ने यज्ञोपवीत पहना हुआ है. उनके हाथ में कंकड़ हैं. भुजाओं में भुज बंद है. यह दुर्लभ खोज (rare find) काफी समय पहले कारितलाई क्षेत्र से हुई है.
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गणेशोसत्व पर दुर्लभ प्रतिमाओं के करें दर्शन
संचालक आचार्य कहते हैं कि गणेश जी देवताओं में अग्रणी (Ganesha the leader of the gods) देवता माने गए हैं. मान्यता है कि कोई भी पूजा बिना गणेश पूजन के पूरा नहीं होता. गणेश जी की प्रतिमा जो रायपुर में स्थापित है, वह बहुत ही दुर्लभ है. मैं सभी प्रदेशवासियों से आग्रह करूंगा कि वह आएं और संग्रहालय (museum) में रखी हुई गणेश जी की हजार साल पुरानी मूर्ति का दर्शन करें. हमारे पुरखों की कला की सराहना करें कि उस समय बड़ी मशीनें होती नहीं थीं, लेकिन उन्होंने उस समय भी पत्थरों से अपनी क्रिएटिविटी और कल्पना को रुप दिया.
सोमवार को खुलेगा संग्रहालय
महंत घासीदास संग्रहालय में बहुत ही दुर्लभ और ऐतिहासिक मूर्तियां (historical sculptures) मौजूद हैं. इन मूर्तियों के दर्शन के लिए आप घासीदास संग्रहालय पहुंच कर अवलोकन कर सकते हैं. फिलहाल शुक्रवार से रविवार तक शासकीय अवकाश है. जिसकी वजह से संग्रहालय बंद रहेगा. अब सोमवार को संग्रहालय खुलेगा, जहां सुबह 10 से शाम 5 बजे तक अपना पर्यटन कर सकते हैं.