रायपुरःप्रदेश के लिए नक्सल से बड़ी समस्या कुपोषण है. यह कहना है प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghel) का. उन्होंने यह बातें पंडो जनजाति (Pando tribe) के लोगों की कुपोषण के चलते मौत के मामले में कही थी.
आखिर ऐसी क्या वजह रही कि मुख्यमंत्री को ऐसा कहना पड़ा. इसके लिए भी मुख्यमंत्री कहीं ना कहीं पूर्ववर्ती भाजपा सरकार को जिम्मेदार (BJP government responsible) ठहरा रहे हैं. वहीं भाजपा प्रदेश में व्याप्त कुपोषण (rampant malnutrition) के लिए छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार (Congress government) को जिम्मेदार ठहरा रही है. जानकारों की मानें तो सरकार के द्वारा योजना सूची बनाई जाती है लेकिन उसके क्रियान्वयन में कहीं न कहीं कोताही बरती जाती है. जिसके कारण योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों (needy) तक नहीं पहुंच पाता. इसी विषय पर हम बात करने जा रहे हैं कि आखिर नक्सल से बड़ी समस्या कुपोषण (problem malnutrition) क्यों है?
संतुलित आहार न मिलना ही कुपोषण
डॉक्टर सारिका श्रीवास्तव कहती हैं कि जरूरी संतुलित आहार काफी लंबे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण होता है. कुपोषण होने का मुख्य कारण सही खाना नहीं मिलना होता है और बच्चों में पाई जाने वाली यह बीमारी जानलेवा भी साबित होती है. अगर वक्त रहते इसका इलाज न किया जाए तो जान भी जा सकती है. यह बीमारी होने पर शरीर और मानसिक स्वास्थ्य (body and mental health) पर बुरा प्रभाव पड़ता है और एकाग्रता की कमी हो जाती है. शरीर बेहद ही कमजोर (body is very weak) हो जाता है और कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ जाता है.
अब कुपोषण के रूप में हो रही राज्य की पहचान
प्रदेश को कुपोषण मुक्त करने की दिशा में ना तो पूर्ववर्ती सरकारों ने कोई ठोस कदम उठाया है और ना ही वर्तमान सरकार के द्वारा कोई बड़े प्रयास किए गए. यही कारण है कि आज कुपोषण नक्सल (Malnutrition Naxal) से बड़ी समस्या बन चुका है. लोग इस प्रदेश को पहले नक्सल के नाम से जानते थे, अब कुपोषण के नाम से जानने लगे हैं. आइए देखते हैं कि प्रदेश में कुपोषण (Malnutrition in the state) की क्या स्थिति है.
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2019 में की गई मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरुआत
भूपेश सरकार ने कुपोषण मुक्त छत्तीसगढ़ संकल्पना के साथ 2 अक्टूबर 2019 को महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की 150 वीं जयंती के दिन पूरे प्रदेश में मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरुआत की थी. अभियान को सफल बनाने के लिए इसमें जन-समुदाय का भी सहयोग लिया गया. प्रदेश में जनवरी 2019 की स्थिति में कुपोषित बच्चों (malnourished children) की संख्या 4 लाख 33 हजार 541 थी. इसमें से मई 2021 की स्थिति में लगभग एक तिहाई 32 फीसदी अर्थात 1 लाख 40 हजार 556 बच्चे कुपोषण से मुक्त हो गए.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण और एनीमिया (Malnutrition and anemia) की दर को देखते हुए प्रदेश को कुपोषण और एनीमिया से मुक्त करने अभियान (anemia free campaign) की शुरुआत की गई थी. इस सर्वेक्षण रिपोर्ट (survey report) के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के 37.7 फीसदी बच्चे कुपोषण और 15 से 49 वर्ष की आयु की 47 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं. इन आंकड़ों को देखें तो कुपोषित बच्चों में से अधिकांश आदिवासी और दूरस्थ अंचल इलाकों के बच्चे थे.