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छत्तीसगढ़ की इस सीट पर 28 साल से नहीं चली 'पंडिताई', क्या इस बार बदलेगी तस्वीर

भारत में होने वाले चुनावों में जाति समीकरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. रमेश बैस ने रायपुर लोकसभा सीट पर कुछ इस तरह के चक्रव्यूह की रचना कर दी थी, जिसे भेदने की कांग्रेस के कई दिग्गजों ने की कोशिश की लेकिन सब नाकाम रहे थे. इस बार बैस के विजय रथ पर भाजपा आलाकमान ने ही रोक दिया.

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Published : Apr 3, 2019, 6:11 PM IST

जाति समीकरण

जाति समीकरण
रायपुर : भारतमें होने वाले चुनावों में जाति समीकरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. बात अगर रायपुर लोकसभा सीट की करें तो इस सीट पर कुर्मी प्रत्याशियों का दबदबा रहा है. शुक्ल परिवार का दबदबा मानी जाने वाले इस सीट पर रमेश बैस 7 बार चुनाव जीते. उन्होंने विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, केयूर भूषण, भूपेश बघेल जैसे दिग्गजों को चुनाव में हराया.

रमेश बैस ने रायपुर लोकसभा सीट पर कुछ इस तरह के चक्रव्यूह की रचना कर दी थी, जिसे भेदने की कांग्रेस के कई दिग्गजों ने की कोशिश की लेकिन सब नाकाम रहे थे. इस बार बैस के विजय रथ पर भाजपा आलाकमान ने ही रोक दिया. भाजपा ने रमेश बैस समेत प्रदेश के अपने सभी मौजूदा सांसदों का टिकट काट दिया है, नहीं तो बैस के सामने आए ब्राह्मण, साहू यहां तक कि कुर्मी समाज से आने वाले वर्तमान सीएम भूपेश बघेल को भी करारी हार का सामना करना पड़ा है.

रायपुर लोकसभा सीट पर 6 बार से नहीं जीते ब्राह्मण प्रत्याशी
क्रिकेट की भाषा में रमेश बैस ने डबल हैट्रिक बनाई और हर बार जीत का अंतर बढ़ा. इस बार चुनावी तस्वीर बिलकुल बदली हुई है, इस बार जहां भाजपा ने बैस की जगह सुनील सोनी को वहीं कांग्रेस ने मेयर प्रमोद दुबे को चुनाव मैदान में उतारा है. दोनों नगरीय निकायों के दिग्गज नेता माने जाते रहे हैं. सुनील सोनी जहां ओबीसी वर्ग से आते हैं वहीं कांग्रेस के प्रमोद दुबे ब्राह्मण वर्ग से हैं. रायपुर का चुनावी इतिहास को खंगाला जाए तो यहां से पिछले 6 चुनावों में ब्राह्मण उम्मीदवारों को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है. हारने वालों में भी कोई छोटा-मोटा नाम नहीं है इनमें विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, सत्यनारायण शर्मा जैसे बड़े नेता शामिल हैं.

ब्राह्मण उम्मीदवार को आखिरी बार 1991 मिली थी जीत
1991 के चुनाव में आखिरी बार रायपुर से कांग्रेस को कामयाबी मिली थी तब दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल ने रमेश बैस को मामूली अंतर से हराया था. राजीव गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस को लेकर एक सद्भावना लहर दिख रही थी. इस लहर के बाद भी वीसी महज 959 वोटों से ही चुनाव जीते थे. इसके बाद कोई कांग्रेसी और कोई ब्राह्मण नेता इस सीट से चुनाव नहीं जीत पाया है.

इस बार कांग्रेस को है उम्मीद
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली कामयाबी के बाद कांग्रेस की उम्मीद बढ़ी हुई नजर आ रही है. शहर के महापौर प्रमोद दुबे का राजधानी में तो अच्छी पकड़ बताई जा रही है लेकिन ग्रामीण इलाकों के लिए उनका नाम भी लोगों के लिए लगभग नया ही है. रायपुर लोकसभा सीट में कुल 9 विधानसभा सीट शामिल हैं इनमें से 6 पर कांग्रेस और 2 पर भाजपा और एक पर जेसीसीजे को जीत मिली है. तो इस आधार पर कांग्रेस का पलड़ा भारी नजर आ रहा है. लेकिन लोकसभा चुनव के मुद्दे अलग होते हैं. और जनता अलग-अलग स्थिति में अपने विवेक से फैसला लेती है.

क्या प्रमोद दुबे बदल पाएंगे हवा का रुख
लेकिन सीट के इतिहास को जानते हुए भी एक शहरी नेता जो ब्राह्मण समाज से आता है उसे टिकट देकर कांग्रेस ने अलग दांव तो जरूर चल दिया है. अब देखने वाली बात होगी क्या प्रमोद दुबे इस सीट में पिछले 28 साल से बह रही हवा का रुख मोड़ पाएंगे या नहीं.

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