रायपुर: साक्षरता (literacy) किसी भी देश की सामाजिक, आर्थिक तरक्की का आधार होती है. एक साक्षर और शिक्षित समाज (literate and educated society) ही लोकतांत्रिक तरीके से आर्थिक और सामाजिक उन्नति के बारे में बेहतर तरीके से सोच सकता है. यानी समाज जितना अधिक साक्षर होगा, देश का विकास भी उतना ही अधिक होगा. लेकिन विकसित देश बनने की ओर तेजी से अग्रसर भारत की साक्षरता दर (India Literacy Rate) अब भी संतोषजनक स्तर तक नहीं पहुंच पाई है. ऐसे में राजधानी रायपुर की शिक्षिका उमा धोटे (Teacher Uma Dhote) ने निरक्षर लोगों को साक्षर करने का बीड़ा उठाया है. उन्होंने अब तक 500 से अधिक महिलाओं को न केवल साक्षर बनाया, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया है. विश्व साक्षरता दिवस (world literacy day) पर ईटीवी भारत ने उनसे खास बात की है.
उमा धोटे ने 500 से ज्यादा महिलाओं को पढ़ाया सवाल: निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने का विचार मन में कैसे आया ?
जवाब: यह तो बहुत पहले ही मेरे मन में आ गया था. क्योंकि एक बार मैंने देखा मेरे पड़ोस में एक अनपढ़ महिला काम करती थी और जब उसको पैसा दिए गए तो उसको पैसा ज्यादा बोल करके दिया गया था, जबकि उसे कम पैसा मिला था. उसी दौरान मेरे दिमाग में आ गया कि यदि यह पढ़ी-लिखी रहती तो वह पैसे को गिन पाती और अपना सही मूल्य ले पाती. उसके बाद ही मैंने उसको पढ़ाना शुरू किया. तब से मेरे मन में जुनून आया कि जो निरक्षर हैं, उन लोगों को साक्षर करना है. कम से कम इतना तो पढ़ लें कि वो अपने साथ अन्याय ना होने दें.
सवाल: अब तक आपने कितनी महिलाओं को पढ़ाया?
जवाब: संख्या तो मैं भी बता नहीं सकती. क्योंकि लगभग 30 साल से ऐसी महिलाओं और बालिकाओं को पढ़ाया है. अब तो मैं अपना एनजीओ भी रजिस्टर्ड करा चुकी हूं. हमारे आसपास के इलाके के जितने भी स्लम एरिया हैं जैसे त्रिमूर्ति नगर, फोकट पारा इन सब इलाकों के लोगों को मैं पढ़ाती हूं. हमने ऐसी महिलाओं को पढ़ाया, जिन्हें अनार, आम भी नहीं आता. पहले उनको अनार आम, फिर गिनती लिखना, उसके बाद पढ़ना-लिखना सिखाया.
सरकार ने 5वीं आठवीं के लिए समतुल्यता के बारे में बहुत से लोगों को जानकारी दी. उसमें परीक्षा दिलवाया. उसके बाद 10th और 12 th का एग्जाम ओपन बोर्ड से दिलवाया. वहीं बालिका या महिलाएं 12 वीं पास हो गईं, उनको यूनिवर्सिटी से पात्रता प्रमाण पत्र दिला कर उनको कॉलेज में भी दाखिला दिलाया. ऐसी कई महिलाएं और युवतियां हैं, जो ग्रेजुएशन करने के बाद एजुकेशन लाइन में काम कर रही हैं. कई बालिकाएं बीच में पढ़ाई छोड़ देती हैं. ऐसी बालिकाओं को हमने पढ़ना-लिखना सिखाया. ऐसी बहुत सारी महिलाएं और बालिकाएं हैं, जो आज पढ़कर कुछ ना कुछ कर रही हैं तो उससे आत्मसंतुष्टि होती है और मुझे बहुत खुशी होती है.
सवाल: आप स्लम बस्तियों में महिलाओं और बच्चियों को पढ़ाने जाती हैं. इस दौरान कौनसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
जवाब: चुनौतियां तो देखिए बहुत आती हैं. क्योंकि आप जानते हैं, झुग्गी झोपड़ी का हाल क्या है. वहां की महिलाएं, लड़कियां काम करने जाती हैं. पुरुष पत्ते खेलते रहते हैं, ड्रिंक किए रहते हैं. इतनी गालियां देते हैं. उल्टा सीधा बोलते हैं, लेकिन कभी मैंने उनकी बातों को ध्यान नहीं दिया. अगर उनकी बात को ध्यान देती तो मैं वहीं रह जाती. बहुत परेशानियां आती है. बहुत बातें बोलते हैं वह लोग, लेकिन मेरा उद्देश्य है कि जितना मैं कर सकती हूं. उतना मैं करती हूं और मैं उन सब बातों को ध्यान नहीं देती. मैं लगातार अपने काम पर लगी रहती हूं.
सवाल: आपका लक्ष्य क्या है?
जवाब: मेरा आगे का लक्ष्य है कि इस काम को बड़े स्तर पर करूं. कोई बड़ा संस्थान खोलूं. मैं पहले गुजराती महिला मंडल द्वारा संचालित एक स्कूल में शिक्षिका थी. उसके बाद मुझे सेंट्रल गवर्नमेंट का जॉब मिला. उस दौरान मैंने स्कूल छोड़ दिया. स्कूल की प्रेसिडेंट दीपा संगोई मैडम थीं. उन्होंने मुझे बहुत अच्छे से जाना तो वह चाहती थी कि मैं उस स्कूल को ना छोड़ूं. उस स्कूल को बढ़ाने के लिए मैंने प्रिंसिपल पोस्ट पर ज्वाइन किया. वह स्कूल रजिस्टर्ड भी नहीं थी. नर्सरी से पीपी वन, पीपी टू तक संचालित थी. इस स्कूल को गुजराती महिलाओं ने चंदा इकट्ठा कर बनवाया है. वे लोग वहां महिलाओं को ट्रेनिंग देते थे. फिर जब मैं उनसे जुड़ी तो लगातार मैं बोलती रही कि स्कूल को आगे बढ़ाना चाहिए.
कई साल तक मैंने बोला तब जाकर वो मेरी बात पर सहमत हुए. उसी स्कूल को मैंने पहले रजिस्टर्ड किया. उसके बाद उसको 8 वीं तक का परमिशन दिलाया. आज वह स्कूल 10वीं तक चल रही है. उन्होंने मुझे यह अवसर दिया इसलिए मैं उनका शुक्रिया करती हूं. क्योंकि वहां पूरे स्लम एरिया के बच्चे पढ़ते हैं. उसी स्कूल में मैंने चार से पांच कंप्यूटर डोनेट किया है. लाखों का फंडिंग कराया और जरूरत की जो चीजें होती है, वह प्रोवाइड कराती हूं. उस स्कूल में मैं जाते रहती हूं. क्योंकि वहां पर सब ऐसे बच्चे पढ़ते हैं, जिनकी माताएं लोगों के घर में काम करते हैं. उनके पिता ऑटो या रिक्शा चलाते हैं. अभी कोरोना काल में बहुत ज्यादा संकट की वजह से वे लोग फीस नहीं पटा पा रहे हैं तो कुछ गरीब बच्चों का मैंने फीस भी पे किया है. वह स्कूल बहुत अच्छे से चल रही है. आगे इसी तरह साक्षरता और शिक्षा फैलाने की कोशिश है.
क्यों मनाया जाता है विश्व साक्षरता दिवस?
विश्व साक्षरता दिवस (world literacy day) हर साल 8 सितंबर को मनाया जाता है. विश्व में शिक्षा के महत्व को दर्शाने और निरक्षरता को समाप्त करने के उद्देश्य से विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य समाज में लोगों के प्रति शिक्षा को प्राथमिकता देना है. पहला विश्व साक्षरता दिवस 8 सितंबर 1966 को मनाया गया था. साल 2009-10 में संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष को साक्षरता दशक घोषित किया. तब से आज तक पूरे विश्व में 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता है.