महासमुंद:फिंगेश्वर राज और सरायपाली रियासत के राजा महेन्द्र बहादुर सिंह का सोमवार रात निधन हो गया. वे 96 वर्ष के थे. जिंदादिल राजा रहे महेंद्र की पहचान अच्छे खिलाड़ी, चित्रकार और संगीतकार के रूप में भी थी. सप्ताहभर पहले उनकी तबियत बिगड़ने पर उन्हें रायपुर के रामकृष्ण केयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यहां देर रात उन्होंने अंतिम सांस ली. वे अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री रहे हैं. राज्यसभा में दो बार सदस्य चुने गए. सात बार के विधायक और छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रथम (प्रोटेम) स्पीकर होने का गौरव प्राप्त है.
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फिंगेश्वर राज की अंतिम जमींदार रानी श्याम कुमारी देवी थीं. सरायपाली रियासत के राजा महेंद्र बहादुर सिंह को उनकी नानी रानी श्याम कुमारी देवी ने गोद लिया था. तब से वे फिंगेश्वर राज की बागडोर संभाल रहे थे. वे इस राज परिवार के अंतिम राजा हैं. उनकी कोई संतान नहीं है. राजा देवेंद्र बहादुर सिंह और नीलेन्द्र बहादुर सिंह उनके भतीजे हैं. उनके पार्थिव शरीर को सरायपाली ले जाया जाएगा और वहीं उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
राजकुमार कॉलेज में हुई शिक्षा
1924 में राजा महेंद्र बहादुर सिंह का जन्म सरायपाली राज परिवार में हुआ. 1936 से 1942 तक उन्होंने राजकुमार कॉलेज रायपुर में अध्ययन किया. बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए मुंबई चले गए. गोल्फ, हॉकी में खास रुचि होने की वजह से वे लंबे समय तक खेलते रहे. उत्कृष्ट तबला वादक के रूप में भी राजा महेंद्र बहादुर सिंह की एक अलग पहचान थी. वे जीवंत तस्वीर बनाने में भी पारंगत थे.
राजनीति में रही खास पकड़
स्वतंत्र भारत में साल 1957 से महेंद्र बहादुर सिंह कई चुनाव लड़े और जीते. जब कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया तो वे निर्दलीय भी बसना क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीतकर आए. उनकी राजनीतिक विरासत में देवेंद्र बहादुर सिंह वर्तमान में बसना विधानसभा से विधायक हैं, और छत्तीसगढ़ शासन में वन विकास निगम के अध्यक्ष है. महेंद्र बहादुर सिंह के निधन की सूचना मिलते ही राज्यपाल अनुसूइया उइके, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने श्रद्धांजलि अर्पित की है.
कांग्रेस में रही आजीवन निष्ठा
वर्ष 2016 में महेंद्र बहादुर सिंह के कांग्रेस छोड़कर जोगी कांग्रेस में प्रवेश की चर्चा राजनीतिक गलियारों में खूब हुई थी. इस पर उन्होंने कहा था कि जोगी कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा ना तो उन्होंने की है और ना ही अजीत जोगी ने. इसलिए वे शुरू से आखिरी तक कांग्रेस के साथ रहे हैं और हमेशा रहेंगे.
दशहरा के दिन हुआ था राजा का देहावसान
विजयादशमी का दिन फिंगेश्वर राज घराने के इतिहास में काला अध्याय बनकर रह गया है. वर्षों पहले भी दशमी के दिन फिंगेश्वर के राजा ठाकुर दलगंजन सिंह का देहावसान हुआ था. तब से दशमी के दिन यहां दशहरा नहीं मनाया जाता है. तीन दिन बाद तेरस को यहां शाही दशहरा मनाने की परंपरा है. अब राजा महेंद्र बहादुर सिंह की दशमी तिथि को देहावसान से एक अध्याय और जुड़ गया. कुंवर निलेन्द्र बहादुर सिंह ने बताया कि इस वर्ष कोरोना काल की वजह से शाही दशहरा पहले ही स्थगित कर दिया गया था. इस बीच राजा साहब के नहीं रहने की दुखद सूचना मिली है.