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बस्तर में धर्म परिवर्तन के खिलाफ जनजाति सुरक्षा मंच, आरक्षण लाभ नहीं देने के लिए राष्ट्रपति को लिखा पत्र

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Published : May 14, 2022, 6:09 PM IST

बस्तर में धर्म परिवर्तन को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच (Tribal Suraksha Manch in bastar) ने मोर्चा खोला है. इस बारे में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को आरक्षण का लाभ नहीं देने की मांग की गई है.

Tribal Suraksha Manch against religious conversion in Bastar
बस्तर में धर्म परिवर्तन के खिलाफ जनजाति सुरक्षा मंच

जगदलपुर :छत्तीसगढ़ के बस्तर में इन दिनों धर्मांतरण का मुद्दा छाया हुआ है. धर्मांतरण को लेकर बीजेपी के साथ ही आदिवासी समाज भी लंबे समय से इसका विरोध करता आ रहा है. कोंडागांव जिले में भी बीते दिनों आदिवासी जनजाति सुरक्षा मंच ने धर्मांतरण के विरोध में और धर्मांतरण किये लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं देने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किया. इस धरना प्रदर्शन में बस्तर संभाग के सातों जिलों के सैकड़ों आदिवासी ग्रामीण इकट्ठा हुए थे. अब एक बार फिर से जनजाति सुरक्षा मंच ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र लिखकर धर्मांतरण करने वाली जनजातियों का आरक्षण खत्म करने की मांग की (Tribal Suraksha Manch wrote a letter to the President) है. जनजाति सुरक्षा मंच के प्रांतीय संयोजक भोजराज नाग ने कहा कि ''ऐसे लोग जो आदिवासी धर्म संस्कृति को छोड़कर दूसरे धर्म में जाते हैं तो उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए.''

क्यों हो रही है आरक्षण लाभ नहीं देने की मांग :जनजाति सुरक्षा मंच ((Tribal Suraksha Manch against religious conversion in Bastar) ) के मुताबिकबस्तर क्षेत्र में20% धर्म परिवर्तित आदिवासी 80% आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. इसके विपरीत 80% मूल जनजाति आदिवासियों को केवल 20% ही आरक्षण का लाभ मिल पा रहा है. साथ ही भोजराज नाग का आरोप है कि ''ऐसे कई लोग जो धर्म परिवर्तन किए हैं वे लोग छट्टी, मरनी, दाह संस्कार जैसे कार्यक्रमों में जाते हैं. वहां लोगों को धर्म परिवर्तन करने का प्रलोभन देते हैं. ये लोग समाज को तोड़ने की कोशिशों में लगे रहते हैं. ''

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50 साल पुरानी है मांग : इसके अलावा सुरक्षा मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि '' धर्म आंतरिक जनजातियों को आरक्षण सुविधा दिए जाने के खिलाफ आवाज पहले भी उठ चुकी है. तत्कालीन बिहार वर्तमान में झारखंड के जनजाति नेता और लोकसभा सदस्य केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय कार्तिक उरांव ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस संबंध में साल 1970 में एक आवेदन दिया था. इस बात को 50 साल बीत चुके हैं. आवेदन को ना लोकसभा के पटल में रखा गया और ना ही उसे खारिज किया गया था, बल्कि उसे ठंडे बस्ते में ही डाल दिया गया.

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