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बादल से उभरेगी बस्तर की विलुप्त होती आदिवासी कला संस्कृति, विश्व में भी बनेगी पहचान - Bastar Academy of Dance, Art, Literature and Language

बादल(Badal) यानी कि "बस्तर अकादमी ऑफ डांस, आर्ट, लिटरेचर एंड लैंग्वेज" (Bastar Academy of Dance, Art, Literature and Language) इस अकादमी में पर्यटक से लेकर छात्रों को जनजातीय संस्कृति को करीब से जानने का अवसर मिलेगा. इसके साथ ही यहां शोध भी किया जा सकेगा. इस अकादमी को रिसोर्स सेंटर का रूप दिया जा रहा है ,जिसमें जनजातीय भाषा और संस्कृति से जुड़े कुछ कोर्स भी शुरू किए जाएंगे जो खैरागढ़ यूनिवर्सिटी और बस्तर विश्वविद्यालय से संबंधित होंगे और डिग्री भी वहीं से मिलेगी.

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BADAL से उभरेगी बस्तर की विलुप्त होती आदिवासी कला संस्कृति

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Published : Sep 17, 2021, 5:55 PM IST

जगदलपुरः छत्तीसगढ़ का बस्तर अपने प्राकृतिक सौंदर्य (Natural beauty)के साथ-साथ अपनी आदिवासी कल्चर, लोक कला, संस्कृति और लोक नृत्य के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी विख्यात है. इसके साथ ही आदिवासी क्षेत्रों (Tribal areas)के संस्कृतियों में बस्तर की संस्कृति अपनी एक अलग ही पहचान रखती है, जिसमें विशेष रूप से लोकनृत्य, लोकगीत, स्थानीय भाषा, साहित्य और शिल्पकला शामिल है. ऐसे में आदिवासियों की कला संस्कृति भाषा और साहित्य के संरक्षण और संवर्धन के लिए जिला प्रशासन शहर से लगे आसना ग्राम में बादल संस्था (Bastar Academy of Dance, Art, Literature and Language) की शुरुआत करने जा रही है.

बस्तर अकादमी ऑफ डांस आर्ट लिटरेचर एंड लैंग्वेज

पर्यटकों से लेकर छात्रों को जनजातीय संस्कृति को जानने का मिलेगा अवसर

दरअसल, बादल (Badal) यानी कि "बस्तर अकादमी ऑफ डांस, आर्ट, लिटरेचर एंड लैंग्वेज" इस अकादमी में पर्यटक से लेकर छात्रों को जनजातीय संस्कृति को करीब से जानने का अवसर मिलेगा. साथ ही यहां शोध भी किया जा सकेगा. इस अकादमी को रिसोर्स सेंटर का रूप दिया जा रहा है ,जिसमें जनजातीय भाषा और संस्कृति से जुड़े कुछ कोर्स भी शुरू किए जाएंगे. जो खैरागढ़ यूनिवर्सिटी और बस्तर विश्वविद्यालय से संबंध होंगे. जिसके बाद छात्रों को वहीं से डिग्री भी मिलेगी. इसके अलावा खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय के साथ रजिस्टर्ड करने की दिशा में भी प्रयास जारी है. बताया जा रहा है कि बादल संस्था बस्तर और आदिवासियों की कला संस्कृति, भाषा और साहित्य के संरक्षण और संवर्धन का प्रमुख केंद्र बनेगा.

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90 फीसद तक हो चुका है बादल संस्था का काम

वहीं, इस विषय में बस्तर कलेक्टर ने बताया कि बादल संस्था का 90% काम पूरा हो चुका है. आने वाले कुछ माह में इस संस्था की शुरुआत भी कर दी जाएगी. दूसरे राज्य और देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए यह पर्यटन दृष्टि से भी मुख्य आकर्षण का केंद्र होगा. इसके साथ ही कलेक्टर ने बताया कि इस संस्था की शुरुआत करने का उद्देश्य बस्तर में आदिवासी समाज के ध्रुवा, भतरी और गोंडी आदि बोलियां विलुप्त होने के कगार पर है, इन बोलियों का संरक्षण और संवर्धन करना बादल के प्रमुख कार्य में शामिल रहेंगे.

40 प्रकार के परंपरागत लोक गीतों के संकलन का कार्य पूर्णता की ओर

उन्होंने कहा कि भाषा के अलावा लोक कला और लोक गीत साथ ही लोक नृत्य की जानकारी अभिलेखीकरण भी यहां अनिवार्य रूप से दिए जाएंगे , उन्होंने बताया कि इस कार्य के अंतर्गत बस्तर संभाग के 40 प्रकार के परंपरागत लोक गीतों के संकलन का कार्य लगभग पूर्णता की ओर है. इस बादल संस्था में एकेडमिक ब्लॉक, एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक और अकोमोडेशन ब्लॉक होंगे, यहां 24 कमरों की व्यवस्था भी की गई है. वहीं कई तरह के प्रशिक्षण का आयोजन भी यहां किया जा सकता है. एकेडमिक ब्लॉक में साउंड रिकॉर्डिंग स्टूडियो, लाइब्रेरी के साथ ही जनजातियों से संबंधित डेटाबेस उपलब्ध होगा, वहीं संस्था को पूरी तरह से स्वावलंबी बनाया जा रहा है.

बादल संस्था से आदिवासी संस्कृति को होगा फायदा

आगे उन्होंने बताया कि बादल संस्था में प्रमुख रूप से चार प्रमुख प्रभाव होंगे, जिसमें लोक नृत्य और लोक गीत ,लोक साहित्य ,भाषा और बस्तर शिल्पकला संकाय शामिल है. इसके अलावा यहां कुछ ही दिनों में शुरू होने जा रही लाइब्रेरी में जल्द ही भतरी, गोंडी और स्थानीय बोली की पुस्तकों को संग्रह किया जाएगा. ताकि यहां आने वाले लोग पुस्तक के माध्यम से भी बस्तर की संस्कृति की जानकारी ले सकेंगे. इसके अलावा पर्यटकों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी यहाँ किया जाएगा और इसके लिए हॉल सहित अन्य निर्माण भी किए जा चुके हैं. कलेक्टर ने आगे बताया कि बस्तर की संस्कृति को ध्यान में रखते हुए पर्यटकों को यहां लाया जाएगा और बादल के माध्यम से लोक कला व संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन किया जाएगा.

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