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बस्तर के दिवाली बाजारों से घट रहा धान की बाली का चलन, प्लास्टिक तोरण और चाइनीज झालरों ने ली जगह

बस्तर में भी दिवाली त्योहार (festival of diwali) के लिए शहर का बाजार सजकर तैयार है. इस बार बस्तर में भी वह कल 4:00 लोकल को काफी महत्व (importance to local) दिया जा रहा है. हालांकि कई जगहों पर चाइनीज (Chinese) दिए हैं और झालर भी दिख रहे हैं लेकिन बस्तर वासियों के द्वारा बड़ी संख्या में दिए खरीदे जा रहे हैं.

बस्तर के दिवाली बाजारों से घट रहा धान की बाली का चलन
बस्तर के दिवाली बाजारों से घट रहा धान की बाली का चलन

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Published : Nov 3, 2021, 9:53 PM IST

Updated : Nov 3, 2021, 10:13 PM IST

जगदलपुरः बस्तर में भी दिवाली त्योहार के लिए शहर का बाजार सजकर तैयार है. इस बार बस्तर में भी वह कल 4:00 लोकल को काफी महत्व दिया जा रहा है. हालांकि कई जगहों पर चाइनीज दिए हैं और झालर भी दिख रहे हैं लेकिन बस्तर वासियों के द्वारा बड़ी संख्या में दिए खरीदे जा रहे हैं. हालांकि पिछले कुछ सालों से दिवाली त्योहार पर बिकने वाली परंपरागत वस्तुओं (traditional goods) की चलन काफी घटी है.

बस्तर के दिवाली बाजारों से घट रहा धान की बाली का चलन

जिसमें से मुख्य रूप से धान की बाली शामिल है. दरअसल दिवाली त्योहार में बस्तर के हर आदिवासियों के घर में धान की बाली से घर को सजाया जाता है. साथ ही लक्ष्मी पूजा में भी धान के बाली का काफी महत्व है लेकिन अब बस्तर के बाजार में धान की बाली काफी कम मात्रा में दिख रही है. लोग धान की बाली ना लेकर नए प्रकार के तोरण और झालर से अपने द्वार सजा रहे हैं.

परंपरागत वस्तुओं को लेकर शहर पहुंच रहे कारोबारी

हर साल दिवाली त्योहार के दौरान बड़ी संख्या में बस्तर जिले के ग्रामीण इलाकों से लोग मिट्टी के बने दिए. टोरा तेल और बस्तर की परंपरागत वस्तुओं को बेचने शहर पहुंचते हैं और बकायदा शहर के सिरासार परिसर, संजय मार्केट और गोल बाजार में बड़ी संख्या में ग्रामीणों द्वारा बाजार लगाया जाता है. उम्मीद रहती है कि दिवाली पर्व के दौरान उनकी अच्छी खासी परंपरागत वस्तुओं की बिक्री होगी और दिवाली अच्छे से मना पाएंगे लेकिन दिए को छोड़ अन्य सामानों में चाइनीज वस्तुओं का इस बार के दिवाली त्यौहार में काफी चलन है. वहीं, धान की बाली का भी महत्व बस्तर में त्योहारों के दौरान घटते जा रहा है.

हर वर्ष बड़ी संख्या में बस्तर के ग्रामीण धान की बाली को अलग-अलग तरह से सजा कर बिक्री के लिए शहर लाते थे, लेकिन अब बाजार में चुनिंदा जगह ही यह धान की बाली देखने को मिल रही है और पूरी तरह से विलुप्त होने के कगार पर हैं. इसके पीछे वजह यह माना जा रहा है कि अब धान के बाली के जगह घर के द्वार और मां लक्ष्मी देवी के पास प्लास्टिक फूलों के बने तोरण और चाइनीज झालरों का ज्यादा चलन हो गया है. जिस वजह से अब बस्तर के ग्रामीण बेहद कम मात्रा में धान की बाली लेकर शहर पहुंचते हैं.

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कम हुआ धान के बाली की बिक्री

हालांकि इस बार उड़ीसा से भी बड़ी संख्या में किसान धान की बाली के तोरण लेकर पहुंचे हुए हैं लेकिन चलन घटने की वजह से अब इसकी बिक्री काफी कम हो रही है. शहरवासियों का मानना है कि अब स्थानीय लोग धीरे-धीरे धान की बाली के महत्व को भूलते जा रहे हैं. हर साल खास कर बस्तर में दिवाली पर्व के दौरान हर घरों में धान की बाली से द्वार को सजाया जाता था और मां लक्ष्मी देवी की पूजा अर्चना के दौरान इस धान की बाली को रखा जाता था. उनका कहना है कि धान की बाली का यह भी महत्व है कि इसे घर के द्वार में लगाने से शुभ होता है और देवी महालक्ष्मी धन-धान्य की वर्षा करती है. लेकिन आधुनिक युग में बेहद कम लोग हैं जो इसके महत्व को अभी भी भली-भांति समझते हैं और अधिकतर लोग अब प्लास्टिक के बने तोरण और चाइनीज झालरों से अपने घर सजा रहे हैं.

Last Updated : Nov 3, 2021, 10:13 PM IST

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