धमतरी:जैसे-जैसे रक्षाबंधन का त्योहार पास आता है. बाजार सजने लगते हैं. रंग-बिरंगी राखियों से अलग ही रौनक आ जाती है. इस साल शायद बाजारों में भीड़ कम दिखे. कोरोना वायरस के संक्रमण ने जहां सामान्य जनजीवन को प्रभावित किया, वहीं भारत में लोग चीन के सामान का बहिष्कार कर रहे हैं. गलवान झड़प के बाद लोग 'वोकल फॉर लोकल' होने लगे हैं और इसकी खूबसूरत तस्वीर देखने को मिल रही है धमतरी जिले से.
धमतरी जिले की महिलाओं ने स्वदेशी राखियां बनाई हैं. जिले के 20 स्वसहायता समूहों की करीब 165 महिलाओं ने बांस और गोबर से सुंदर-सुंदर राखियां तैयार की हैं. पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाई गई इन राखियों को 'ओज' नाम दिया गया है. खास बात ये भी है कि इन राखियों में महिलाओं ने पौधे के बीज भी डाले हैं. राखियों के टूटने पर पर अगर उन्हें क्यारियों में डाल दिया जाए, तो पौधे पनप सकते हैं.
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धमतरी में छाती और छिपली जबर्रा में स्वसहायता समूह की महिलाएं करीब 2 महीने से राखी बनाने का काम कर रही हैं. ये राखियां जिले में पहली बार बिहान योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को रोजगार दिलाने और चाइनीज राखियों को बाजार से बाहर करने के उद्देश्य से तैयार की जा रही हैं. समूह की महिलाएं बांस और गोबर से यह राखियां तैयार कर रही हैं. इसमें बच्चों की राखियां, बांस की राखियां, गोबर की राखियां, कुमकुम और अक्षत बंधन राखियां बनाई जा रही हैं. पर्यावरण के अनुकूल इस राखियों में प्लास्टिक का इस्तेमाल जरा भी नहीं है.
बच्चों के लिए कार्टून वाली राखियां