बिलासपुर : छत्तीसगढ़ वन विभाग (Chhattisgarh Forest Department) असम के मानस नेशनल पार्क से एक नर और एक मादा सहित दो वन भैंसों को पकड़ कर लाया है. इसके लिए पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार ने अनुमति दी थी. इसमें कहा गया था कि वन भैसों को समुचित प्राकृतिक आवास में छोड़ा जायेगा. लेकिन अधिकारियों ने दोनों वन भैसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण में बाड़े में बंधक बनाकर रखा है. जो कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972(Wildlife Protection Act 1972) के प्रावधानों के तहत अपराध है. इसके लिए कम से कम 3 साल से 7 साल तक की सजा हो सकती है.
गौरतलब है कि वन भैंसा, बाघ के समान ही अनुसूची-एक का वन्य प्राणी है. इनको तब तक बंधक नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि यह सुनिश्चित नहीं हो जाये कि उन को पुनर्वासित नहीं किया जा सकता. जैसे कि बाघ के मामले में यदि ऐसी चोट जो ठीक न हो सके, जिससे वह शिकार न कर सके. वन भैसों के मामले में तो केंद्र से अनुमति ही इस शर्त के साथ मिली थी कि उन्हें उचित रहवास वाले वन में छोड़ा जायेगा, फिर भी उन्हें बंधक बनाकर रखा गया है. वन भैंसा असम से छत्तीसगढ़ लाने में 4 आईएफएस जिम्मेदार (4 IFS to bring from Assam to Chhattisgarh Responsible) हैं. इसलिए उनके विरुद्ध अभियोजन की अनुमति पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ही दे सकता है.
अत: अभियोजन के लिए उन्होंने सितंबर 2021 में अनुमति देने की मांग मंत्रालय से की थी. बाद में कई रिमाइंडर भी भेजे गए, लेकिन मंत्रालय द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर कोर्ट से अभियोजन की अनुमति के आवेदन पर निर्णय लेने के लिए आदेशित करने की मांग की गई. इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.
क्या है पूरा मामला?
छत्तीसगढ़ वन विभाग वर्तमान में पदस्थ प्रधान मुख्य वन संरक्षक (Principal Chief Conservator of Forests) (वन्यप्राणी) पीवी नरसिम्ह राव आईएफएस तथा तत्कालीन अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) वर्तमान में सदस्य सचिव बायो-डाइवर्सिटी बोर्ड अरुण कुमार पांडे, आईएफएस कार्यकाल में अप्रैल 2021 में असम से वन भैंसा लेकर आए थे. जिन्हें बारनवापारा अभ्यारण में बाड़े में कैद कर रखा है. इनके विरुद्ध अभियोजन की अनुमति मांगी गई है.
पूर्व में पदस्थ सेवानिवृत्त आईएफएस प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) कौशलेंद्र कुमार सिंह ने प्लान बनाया था कि असम से पांच “मादा” वन भैंसों को पकड़ कर लाया जाएगा और यहां पर बंधक बनाकर उनसे प्रजनन कराया जाएगा. जो वन भैंसे पैदा होंगे, उनको वन में छोड़ा जाएगा. वन अधिकारी असम के वन भैसों का उदंती सीता नदी अभ्यारण में रखे गए वन भैसों से मेल करा कर नई जीन पूल तैयार करना चाहते थे. इनके विरुद्ध अभियोजन की अनुमति मांगी गई है. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया इस बात को लेकर विरोध कर रहा है. वाइल्डन लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अनुसार छत्तीसगढ़ के वन भैंसों का जीन पूल पूरे विश्व में सबसे यूनिक है. अतः दो जीन पूल अर्थात छत्तीसगढ़ और असम के वन भैसों का जीन पूल को नहीं मिलाना चाहिए.
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बाद में बदला गया प्लान
बाद में निर्णय लिया गया कि असम से पांच मादा वन भैसों को लाने के साथ-साथ एक नर वन भैंसा भी लाया जाये. इसके लिए पूर्व में पदस्थ प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) वर्तमान पदस्थापना प्रधान मुख्य वन संरक्षक, स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च ट्रेंनिंग इंस्टीट्यूट रायपुर अतुल कुमार शुक्ला ने असम से एक वन भैंसा लाने की अनुमति मांगी. इनके विरुद्ध अभियोजन की अनुमति मांगी गई है.