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बगहा: मौनी अमावस्या मेला में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़, लगाएंगे पवित्र डुबकी

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Published : Feb 11, 2021, 1:56 PM IST

इंडो-नेपाल सीमा स्थित गंडक नदी तट पर प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी मौनी अमावस्या माघ मेला में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंची है. यहां श्रद्धालु अहले सुबह से त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं और गो दान और तिल समेत चावल और नकदी का दान कर रहे हैं.

Mouni Amavasya fair organized
Mouni Amavasya fair organized

पश्चिम चंपारण (बगहा): माघ मौनी अमावस्या के मौके पर इंडो-नेपाल सीमा स्थित वाल्मीकिनगर के त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट गई है. यहां नारायणी गंडक नदी के तट पर श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान कर रहे हैं और दान पुण्य की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. बता दें कि गण्डक नदी में सोनभद्र, ताम्रभद्र और नारायणी नदी मिलती है. लिहाजा प्रयागराज के बाद यह दूसरा बड़ा त्रिवेणी संगम है.

मेला में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
इंडो नेपाल सीमा स्थित गंडक नदी तट पर प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी मौनी अमावस्या माघ मेला में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंची है. यहां श्रद्धालु अहले सुबह से त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं और गो दान और तिल समेत चावल और नगदी का दान कर रहे हैं ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो सके. बता दें कि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व अंतर्गत नारायणी नदी त्रिवेणी संगम में स्नान करने आने वाले भक्तों के आने का तांता तीन दिन पूर्व से ही लगा हुआ था.

मौनी अमावस्या मेला

त्रिवेणी संगम तट पर भक्त करते हैं स्नान
दरअसल, माघ मौनी अमावस्या तिथि के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. ऐसे में हिमालय के गर्भ से निकली गंडक नदी को नेपाल में शालिग्राम के नाम से जाना जाता है. क्योंकि गंडक नदी विश्व की एकमात्र ऐसी नदी है जिसके गर्भ में शालिग्राम पाया जाता है. ऐसे में श्रद्धालुओं का कहना है कि शालिग्राम नदी जिसको गंडक, सप्त गंडकी और सदानीरा के नाम से भी जाना जाता है. वहां स्नान दान का महत्व बढ़ जाता है. इस नदी में सोनभद्र, ताम्रभद्र और नारायणी का पवित्र मिलन होता है. यही वजह है कि इसे प्रयागराज के बाद देश का दूसरा त्रिवेणी संगम होने का गौरव प्राप्त है.

मौनी अमावस्या मेला में उमड़ी भीड़

सीमा बंद होने से उमड़ी भीड़
इंडो नेपाल सीमा स्थित गंडक बराज के पार नेपाल के हिस्से में त्रिवेणी धाम स्थान है. जहां बिहार, नेपाल और यूपी के श्रद्धालु स्नान दान करने पहुंचते हैं और आस्था के त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं. भक्तों का कहना है कि इस वर्ष इंडो-नेपाल सीमा सील होने की वजह से श्रद्धालु नेपाली क्षेत्र त्रिवेणी धाम स्नान करने नहीं पहुंच पा रहे, लिहाजा भीड़ बहुत ज्यादा है. बता दें कि इस मेला में नारंगी और तेजपत्ता की बिक्री बहुत ज्यादा होती है और लोग इसे खरीदना अपनी परंपरा समझते हैं.

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मौन धारण कर पूजा और दान करने की है परंपरा
माघ माह में पड़ने वाले मौनी अमावस्या पर्व में मौन धारण कर मुनियों के समान आचरण करते हुए स्नान दान की परंपरा है. लिहाजा यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और इस दिन स्नान के बाद तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्र समेत दूध देने वाली गाय का दान कर पुण्य के भागीदार बनते हैं. बता दें कि माघ मास में गोचर करते हुए भगवान सूर्य जब चंद्रमा के साथ मकर राशि पर आसीन होते हैं तो उस काल को मौनी अमावस्या कहा जाता है.

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