सारण: इस जिले को महापुरुषोंकी धरती कहा जाता है. इसी धरती ने देश के ऐसे कई महापुरुषों को जन्म दिया है, जिन्होंने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई है. इस ऐतिहासिक धरती ने महान अर्थशास्त्री गोरखनाथ सिंह को भी जन्म दिया जिन्होंने पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपने राज्य और जिले का नाम रौशन किया. लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण आज उनकी पहचान उपेक्षा का शिकार है.
जिले के मरहौरा अनुमंडल के मरहौरा खुर्द निवासी गोरखनाथ सिंह के पिता बाबु राम सिंह मिडिल स्कूल के हेड मास्टर थे. इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई. इसके बाद आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वो केम्बिरीज चले गये. वहां उन्हें सभी विषयों में अव्वल आने पर TRAIPS की उपाधी से नवाजा गया. यह एक वर्ल्ड रिकॉर्ड था जो किसी भारतीय छात्र ने बनाया था. बाद में स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने राबिन्स कॉलेज कटक और पटना विश्वविद्यालय में शिक्षक की नौकरी की.
गोरखनाथ सिंह ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से की थी पढ़ाई
गोरखनाथ सिंह पटना विश्वविधालय के प्रो वाइस चांसलर भी बने. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इनके साथी रहे नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन हिक्स जब भारत आये तो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु से गोरखनाथ के बारे में पूछा. जवाहरलाल नेहरु को भी गोरखनाथ के बारे मे जानकारी नहीं थी. इसके बाद नेहरु जी ने बिहार के तत्कालिक मुख्यमंत्री से उनकी जानकारी मांगी. तब प्रधानमंत्री नेहरु ने गोरखनाथ सिंह को दिल्ली बुलाकर जॉन हिक्स से मुलाकात कराई.
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सरकार की उपेक्षा
इसके बाद गोरखनाथ ने बिहार राज्य वित्त निगम सहित कई संस्थानों की कमान संभाला. लेकिन आज इस अर्थ शास्त्री को बिहार की सरकार भुल गयी है. आज बिहार के ऐसे कई महान साहित्यकार, अर्थ शास्त्री, कला और संगीत जगत के साथ-साथ खेल से जुड़ी हस्तियां है जो गुमनाम जिन्दगी जीने को विवश है. लेकिन राज्य सरकार की ओर से इनके ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. लोगों का कहना है कि इस गांव में गोरखनाथ के धरोहर का असतित्व मिटता जा रहा है. लेकिन सरकार मूक दर्शक बनीं हुई है.