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हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल: यहां एक साथ चढ़ाए जाते हैं शिवलिंग और मजार पर फूल

चर्चित मान्यताओं के अनुसार 13वीं शताब्दी में इस मंदिर की स्थापना हुई थी. यहां फरियाद लेकर आने वाले हर भक्त शिवलिंग और मजार दोनों में माथा टेकते हैं.

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Published : Jul 29, 2019, 6:27 PM IST

समस्तीपुर: जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर के दूरी पर गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल देखने को मिलती है. दरअसल, मोरवा प्रखंड में बने बाबा खुदनेश्वर धाम का विशाल मंदिर आज हिंदू-मुस्लिम एकता का पर्याय माना जा रहा है. यह मंदिर अन्य मंदिरों से काफी अलग है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

खुदनेश्वर धाम में एक ही छत के नीचे शिवलिंग और मजार दोनों पूजे जाते हैं. इस कारण इस मंदिर का अपना महत्व और लोकप्रियता है. सावन के महीने में यहां रोजाना सैकड़ों की संख्या में भक्त और श्रद्धालु आते हैं. यहां फरियाद लेकर आने वाले हर भक्त शिवलिंग और मजार दोनों में माथा टेकता है.

मजार पर माथा टेकते भक्त

कैसे हुआ निर्माण?
चर्चित मान्यताओं के अनुसार 13वीं शताब्दी में इस मंदिर की स्थापना हुई थी. हिन्दू-मुस्लिम आबादी वाले इस क्षेत्र में यहां की बाशिंदा रही खुदनी बीबी इन स्थान पर रोजाना गाय चराने आया करती थी. उनकी गाय प्रतिदिन एक खास स्थान पर खुद ब खुद दूध दे दिया करती थी. एक दिन जब खुदनी बीबी ने इस रहस्य को देखा तो भगवान भोलेनाथ ने उसे साक्षात दर्शन दिए. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार खुदनी बीबी को इस रहस्य को उजागर नहीं करने का हिदायत मिली थी. लेकिन, खुदनी बीबी ने सच्चाई बता दी. इस खुलासे के चंद मिनट बाद ही उसकी मौत हो गयी.

खुदनेश्वर धाम

खुदनी बीबी के नाम पर रखा गया नाम
बाद में गांव वालों के सुझाव पर खुदनी बीबी को उसी स्थान पर दफना दिया गया. लेकिन, इस घटना के कुछ दिन बाद ही मजार के पास शिवलिंग देखा गया. इसके बाद मंदिर भी यहीं बनवा दिया गया. जिसका नाम खुदनेश्वर धाम रखा गया.

मजार और शिवलिंग

दूर-दराज से पहुंचते हैं श्रद्धालु
आज इस खुदनेश्वर धाम में आस्था और साम्प्रदायिक सौहार्द का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. वैसे तो यहां सालों भर श्रद्धालु पंहुचते हैं. लेकिन, सावन के मौके पर यहां बड़ा आयोजन होता है. इस समय यहां मेला भी लगता है.

शिवलिंग

गौरतलब है कि आपसी सौहार्द के इस बेमिसाल उदाहरण को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित करने का ऐलान किया है. लेकिन, इसका कुछ खास असर यहां नहीं दिखता है. यहां तक पहुंचने वाले मार्ग का हाल बेहाल है. साथ ही मंदिर परिसर में सुविधाओं का भी घोर अभाव है.

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