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Supreme Court On Prohibition Case : शराबबंदी कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- 'क्यों न सभी आरोपियों को बेल दे दें?'

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Published : Jan 24, 2023, 1:33 PM IST

Bihar Liquor Ban शराबबंदी को लेकर बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से फिर झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट बनाने के लिए बिहार सरकार की ओर से अब तक जमीन मुहैया नहीं कराई गई, इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने नाराजगी जाहिर (Supreme Court On Prohibition Case) की. पढ़ें पूरी खबर

बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से फिर झटका
बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से फिर झटका

पटना:सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद अधिनियम के तहत मामलों से निपटने के लिए बिहार में विशेष अदालतों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में देरी (SC ON Special Liquor Case Courts In Bihar) पर असंतोष व्यक्त किया. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 2016 में कानून पारित किया गया था, लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक विशेष अदालतों के बुनियादी ढांचे के लिए भूमि आवंटित नहीं की है. पीठ ने राज्य सरकार के वकील से पूछा कि बुनियादी ढांचे की कमी को देखते हुए राज्य प्ली बारगेनिंग को बढ़ावा क्यों नहीं देता है.

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'क्यों न सभी आरोपियों को जमानत दे दें' : कोर्ट ने वकील से पूछा कि शराबबंदी कानून के तहत दर्ज सभी आरोपियों को मुकदमे के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार होने तक जमानत पर रिहा क्यों नहीं कर दिया जाता. पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अभय एस. ओका भी शामिल हैं, ने बिहार सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार से कहा: हम कानून में निर्दिष्ट अपराधों के तहत दर्ज सभी अभियुक्तों को जमानत क्यों नहीं दे सकते? आप सरकारी भवनों को अदालतों के लिए खाली क्यों नहीं कर देते?

जानिए शराबबंदी पर क्या कहा कोर्ट ने? : न्यायपालिका पर बोझ डालने वाले लंबित मामलों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि कानून के तहत 3.78 लाख से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन केवल 4,000 से अधिक का निस्तारण किया गया है, और कहा कि यह समस्या है, आप न्यायिक बुनियादी ढांचे और समाज पर इसके प्रभाव को देखे बिना कानून पारित करते हैं.

अधिनियम की एक धारा का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि जहां तक शराब के सेवन के लिए जुर्माना लगाने की शक्ति का संबंध है, यह ठीक है, लेकिन इसका संबंध कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्तों को सजा देने की शक्ति से है. इस मामले में एमिकस क्यूरी एडवोकेट गौरव अग्रवाल ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को शक्तियां प्रदान करने के बारे में अपनी आपत्ति व्यक्त की है. कुमार ने कहा कि अधिनियम के तहत मामलों के निपटान की दर में वृद्धि हुई है क्योंकि कई न्यायिक अधिकारियों की भर्ती की गई है.

बिहार सरकार को एक हफ्ते का समय:पीठ ने राज्य सरकार के वकील को इस मुद्दे पर आवश्यक निर्देश प्राप्त करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया कि इस मामले में क्या किया जा सकता है. पीठ ने कहा, साथ ही मामले से जुड़े सभी पहलुओं- कानून के तहत मामलों से निपटने के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को शक्तियां प्रदान करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण- की जांच की जाएगी. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी बिहार में 2016 में लागू शराबबंदी कानून से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान की.

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