पटनाःअनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामले पर अनसुलझे ही रह जाते हैं. इन मामलों पर फैसला आने से पहले ही इसे रफादफा कर दिया जाता है. इसमें सजा नहीं के बराबर हो रही है. ऐसा अभियुक्तों के साथ समझौता हो जाने या पीड़ितों के बयान से पटलने के कारण हो रहा है. एससी-एसटी एक्ट से जुड़े दो-तिहाई से ज्यादा मामलों का यही हाल है.
ट्रायल पूरा होने के पहले ही हो जाता है समझौता
जानकारी के मुताबिक एससी-एसटी एक्ट से जुड़े मामलों में ट्रायल पूरा होने के पहले ही समझौता हो जाता है या फिर केस करनेवाला ही पलट जाता है. पुलिस मुख्यालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 2019 में एससी-एसटी एक्ट से जुड़े 2187 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ. इनमें 2046 मामलों में किसी को सजा नहीं हुई.
बयान पर कायम नहीं रहता पीड़ित पक्ष
बताया जाता है कि इसकी वजह अलग-अलग है. सबसे ज्यादा 1012 मामलों में पीड़ित और अभियुक्त पक्ष के बीच सुहल हो गई है. जिससे केस क्लोज कर दिया गया. सजा नहीं होने की दूसरी सबसे बड़ी वजह रही पक्षद्रोही होना. इन मामलों में केस करनेवाला ही अपने बयान से पलट गया. ऐसे 814 मामले सामने आए हैं, जिसमें पीड़ित पक्ष अपने बयान पर कायम नहीं रहा.
अभियुक्तों को नहीं मिल पा रही सजा
वहीं, 220 कांडों में साक्ष्य नहीं होने के चलते अभियुक्तों को लाभ मिला और आरोपी बरी कर दिये गए. 2187 मामलों में सिर्फ 141 में अभियुक्तों को सजा सुनाई गई. बता दें कि राज्य पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से जुड़े करीब 6 हजार मामले हर साल दर्ज होते हैं. लेकिन ज्यादातर मामलों में दोषियों को सजा दिलाने की नौबत ही नहीं आती.