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बिहार में विरासत की जंग, कार्यकर्ता हुए दरकिनार

बिहार में एक या दो नहीं बल्कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जो एक बार फिर बता रहे हैं कि किस तरह पार्टियां राजनेताओं के विरासत को आगे बढ़ा रही हैं.

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Published : Apr 2, 2019, 6:38 PM IST

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पटना:विरासत को आगे बढ़ाने में किस तरह राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हैं, इसका बेहतरीन उदाहरण है राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति पार्टी. यहां कार्यकर्ताओं से ज्यादा पारिवारिक रिश्तों की अहमियत कुछ ज्यादा ही है.यह हम नहीं कह रहे बल्कि इन पार्टियों के आंकड़े कह रहे हैं.

पाटलिपुत्र से राष्ट्रीय जनता दल ने मीसा भारती को उम्मीदवार बनाया है.चर्चा थी कि यहां से भाई वीरेंद्र को मौका मिलेगा. वहीं,हाजीपुर से रामविलास पासवान ने अपनी जगह अपने भाई पशुपति कुमार पारस को मैदान में उतारा है.मधुबनी में हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक यादव को मौका मिला है.

खास रिपोर्ट

सजे सजाए नाम
बिहार मेंएक या दो नहीं बल्कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जो एक बार फिर बता रहे हैं कि किस तरह पार्टियां राजनेताओं के विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. भले ही कार्यकर्ताओं की बलि चढ़ानी पड़े.बात चाहे मीसा भारती, हिना शहाब, चंद्रिका यादव, चिराग पासवान, अशोक यादव, चंदन कुमार की हों या फिर पशुपति कुमार पारस की. बिहार की 40 लोकसभा सीटों के चुनावी योद्धा अखाड़े में अपने पूर्वजों के नाम पर वोट मांगते नजर आएंगे.

इनकी प्रतिष्ठा दांव पर

  • सिवान से बाहुबली शहाबुद्दीन की पत्नी हिना साहब
  • नवादा से बाहुबली और सजायाफ्ता राजबल्लभ की पत्नी विभा देवी
  • नवादा से ही बाहुबली सूरजभान के भाई चंदन कुमार
  • हाजीपुर से रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस
  • जमुई से रामविलास पासवान के बेटा चिराग पासवान
  • मधुबनी से हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक यादव
  • मुंगेर से बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी
  • पाटलिपुत्र से लालू यादव की बेटी मीसा भारती
  • समस्तीपुर से रामविलास पासवान के भाई रामचंद्र पासवान प्रत्याशी के रूप में अपने संबंधियों की प्रतिष्ठा बचाने उतरेंगे.

इनके अलावा और भी कई नाम हैं जिनमें प्रमुख हैं पश्चिम चंपारण से संजय जयसवाल, महाराजगंज से प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह और मुजफ्फरपुर से दिवंगत जय नारायण निषाद के बेटे अजय निषाद. ये भी अपने पूर्वजों के दम पर राजनीति करते नजर आ रहे हैं.

कोई नेता नहीं बोलता...
खुले तौर पर किसी भी पार्टी का कोई नेता इस बारे में बोलने से परहेज करता है. हालांकि, बीजेपी दावा करती है कि वो सिर्फ कार्यकर्ताओं को तरजीह देती है. इधर राजद नेता और टिकट के दावेदार रहे भाई वीरेंद्र भी विरासत को आगे बढ़ाने को कोई गलती नहीं मानते. हालांकि दबी जुबान में अपनी व्यथा जरूर बयां कर देते हैं.

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