पटना: 16 लोकसभा की चुनाव अब आखिरी दौर में है. 19 मई को सातवें और अंतिम चरण का मतदान होना है और 23 मई को रिजल्ट सामने आएगा. ऐसे में etv भारत की टीम ने कुछ बड़े राष्ट्रीय अखबारों के वरिष्ठ पत्रकारों से जाना कि आखिर इस बार के चुनाव में क्या कुछ नया रहा और क्या कुछ विशेष.
मोदी ही मुद्दा हैं
वरिष्ठ पत्रकार इंद्र भूषण ने बताया कि इस चुनाव में बहुत दिनों बाद जनता के बीच की लहर कोई भी नेता नहीं पकड़ पाया है. उन्होंने कहा कि सभी लोग इसी टॉपिक पर चर्चा कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाना है और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाना है. इसी एक ध्रुवीय मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस बार राष्ट्रवाद का मुद्दा दूरदराज इलाके वाले गांव में भी है. जो भाजपा का मुद्दा है वही महागठबंधन चुनाव को जाति के एंगल पर ले जाने की कोशिश करता दिखा है.जैसे कि सवर्णों के आरक्षण का विरोध किया हो या 90% आरक्षण की मांग की हो.
चुनाव पर अपनी राय रखते वरिष्ठ पत्रकार मोदी के राष्ट्रवाद के इकलौते काट थे लालू
इंद्र भूषण ने बताया कि वाल्मीकि नगर से लेकर बांका तक, सासाराम से लेकर किशनगंज तक कहीं भी स्थानीय मुद्दे नहीं दिखे और इस चुनाव में लोकल मुद्दे पूरी तरह गायब हैं. जैसे स्कूल हो या पुल हो या फिर अस्पताल यह सारे मुद्दे इस बार गायब हैं. उन्होंने बताया कि इस बार लालू के बिना बिहार में चुनाव का असर दिखा. जिस तरह से पीएम बार-बार अपने मुद्दे पर विपक्ष को घुमाते नजर आए. अगर लालू यादव जेल से बाहर होते तो वे नरेंद्र मोदी के राष्ट्रवाद के मुद्दे के एकमात्र काट थे.
इस चुनाव से गायब हैं मुद्दे
एक और वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार ने बताया कि इस बार के चुनाव में कई मुद्दे शांत हैं. विकास का मुद्दा नहीं है. मुद्दा मात्र मोदी है. पाकिस्तान है मतलब साफ है कि राष्ट्रवाद एक मुद्दा है. उन्होंने बताया कि पहली बार यह एक अनोखा चुनाव है. इससे पहले जो भी चुनाव रहे सरकार अपने डेवलपमेंट वर्क लेकर आती थी और विरोधी दल सरकार की खामियों को उजागर करते थे, लेकिन यह पहला चुनाव है कि इस तरह का मुद्दे कहीं नहीं दिख रहे हैं.
लालू बिन सूनापन
उन्होंने कहा कि लालू के बगैर चुनाव का बिहार में काफी असर पड़ा है. लालू अपने कार्यकर्ताओं को जरूर मैसेज दे रहे हैं, लेकिन एक आम जनता को वह मोटिवेट नहीं कर पा रहे हैं. जैसे वह सक्रिय तौर पर किया करते थे. लालू की कमी विपक्षी दलों को साफ खल रही है. हालांकि लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने बहुत हद तक उनकी एमवाई वोट बैंक को संभाला है, लेकिन फिर भी वह लालू के स्थान को नहीं ले पाए हैं. तेजस्वी लालू जैसे एक्टिव नहीं दिखे. उन्होंने कहा कि इस बार बिहार का चुनाव लालू के बगैर सूना रह गया है.