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बिहार में तेजस्वी से लड़ता एनडीए

तेजस्वी यादव बिहार की सियासत में 2020 के ब्रांड क्वेश्चन क्रिएटर हो गए हैं. अब जब सियासी रगड़ जनता के मन के पास पहुंच चुकी है, तो नेताओं का निजी हमला करना भी लाजमी है. लेकिन सोच तो सियासी धुरंधरों को लेना ही चाहिए कि 2012 में जिस तरीके से नरेंद्र मोदी के पीछे पूरी यूपीए सरकार पड़ी थी. उसमें सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी की ब्रांडिंग हुई थी. अब तेजस्वी की ब्रांडिंग हो रही है.

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Published : Oct 23, 2020, 2:47 PM IST

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पटना:हुकूमत 2020 की जंग में बिहार की सियासत और उसके लिए चल रही राजनीति में तेजस्वी केंद्र बिंदु बन गए हैं. बिहार की राजनीति अगर कहीं से चलकर कहीं पहुंच रही है तो, उसमें तेजस्वी हर जगह शामिल हैं. तेजस्वी को जिस तरह से राजनीति में जगह मिल रही है, उससे एक बात तो साफ है कि बिहार की सियासत में तेजस्वी के बिना अब किसी दल की राजनीति नहीं चलेगी. 2020 की बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव जिस तरीके से हमलावर हैं या फिर तेजस्वी यादव से जिस तरीके से राजनेता लड़ रहे हैं और 2012 की सियासत का वह कौन है जिसमें नरेंद्र मोदी को लेकर जो स्थितियां बनी थीं लगभग उसी के आसपास बिहार की सियासत में तेजस्वी पहुंच गए हैं.

सियासी हमलों से निखरते जा रहे तेजस्वी!
बिहार की बदलती राजनीति में नाम की चर्चा शायद किसी से तुलना करने पर विभेद में चली जाए लेकिन 2005 से तो इसकी तुलना की भी जा सकती है. जेपी के आंदोलन, लोहिया की सियासत, समाजवाद का सिद्धांत और सैद्धांतिक समाजवाद की राजनीति ने बिहार में जो भी बदलाव दिए हो वह तमाम तरीके के सियासी विभेद का विषय हो सकता है. लेकिन विकास के जिस राजनीति को लेकर नीतीश कुमार ने 2005 में नारा बुलंद किया था वहां से कम से कम 86 लड़ाई को जोड़कर तो देखा ही जा सकता है. 2005 में नीतीश कुमार ने जंगलराज बनाम सुशासन की बात कह कर लालू सरकार को गद्दी से उखाड़ फेंका था. 2005 में भाजपा और जदयू का गठबंधन जीता था. सुशासन के नाम पर सरकार मजबूती से चली भी, असर भी दिखा और 2010 का जो विधानसभा चुनाव परिणाम आया उसमें विपक्षियों का सूपड़ा ही साफ हो गया.

2020 के ब्रांड तेजस्वी !
2014 के लोकसभा चुनाव के लिए 2012 से ही बिहार में सियासी बयार बहने लगी थी बीजेपी की राजगीर में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में वर्तमान में केंद्र सरकार के दो मंत्री गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे ने बिहार विधानसभा के गेट पर पहली बार 'नमो-नमो' का नारा लगाया था. बिहार जिंदाबाद, नरेंद्र मोदी जिंदाबाद का नारा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान उठा था. इस पर नीतीश की नाराजगी भी आ गई थी क्योंकि तब बीजेपी नीतीश की सरकार में शामिल थी. केंद्र में चल रही यूपीए-2 की सरकार में जिस तरीके से घपले और घोटाले हुए थे और जनता के बीच जिस घोटाले की बात उठी थी और जो चर्चा थी उसमें नरेंद्र मोदी की कोई भी बात जनता के बीच एक लहर बन जाती थी. तेजस्वी यादव का सियासी कद भले ही नरेंद्र मोदी जैसा ना हो, लेकिन एक बात तो साफ है कि 2012 में जब नरेंद्र मोदी कोई बात कहते थे, तो यूपीए की पूरी सरकार नरेंद्र मोदी के पीछे पड़ जाती थी, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को छोड़ दिया जाए तो बाकी शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो पूरे दिन नरेंद्र मोदी को लेकर 10 तरह का बयान ना दे दे. गोधरा से लेकर नरेंद्र मोदी के सियासी सफर और उनकी पत्नी के साथ उनके संबंधों को लेकर भी राजनीतिक बयानबाजी खूब हुई.

तेजस्वी पर निजी हमले
2020 में तेजस्वी यादव बिहार चुनाव में सभी बड़े नेताओं के निशाने पर हैं. तेजस्वी यादव कुछ भी बोलते हैं हर नेता उनके पीछे ही पड़ जाता है. चाहे उनके पिता के द्वारा घोटालों के कारण हुई बदनामी की बात हो, या फिर उनके बड़े भाई की पत्नी को छोड़े जाने की बात. बात अब इससे आगे निकल चुकी है. 22 तारीख को मुजफ्फरपुर की रैली में नीतीश कुमार ने यहां तक कह दिया कि तेजस्वी यादव दिल्ली में क्या करने जाते थे इसकी जानकारी उन्हें है दिल्ली में हल्के होते थे लेकिन मैं यह कह कर के उनकी सियासत को हल्का नहीं करूंगा.

सवालों से संघर्ष की सियासत
राजनीति में यह वैसे लोगों के बयान हैं जो लोग अपनी राजनीतिक नैतिकता शब्दों की मर्यादा और संबंधों की सुचिता की बात करते हैं. सवाल यह उठ रहा है कि 2020 में बिहार को लेकर तेजस्वी यादव ने जो सवाल उठाए हैं उसका जवाब कोई नहीं दे रहा है. तेजस्वी के खिलाफ इंडिया के जितने नेता मैदान में आ रहे हैं उससे एक बात तो साफ है कि तेजस्वी यादव की सियासत सही जगह पर जा रही है. तेजस्वी यादव ने बिहार में 10 लाख लोगों को रोजगार देने की बात क्या कहीं देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हो या फिर आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय हों या फिर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे केंद्र में मंत्री आरके सिंह हों या फिर गिरिराज सिंह सभी लोग तेजस्वी यादव को सियासत में अपने भीतर झांकने की सलाह जरूर दे देते हैं.

सियासत की नब्ज हैं तेजस्वी
सवाल तो यही उठ रहा है कि तेजस्वी यादव ने जिस तरह से सियासत के नब्ज को झांक लिया है, सियासत में उनके विरोधियों की सांस अटक गई है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण बिहार के हर नेता का तेजस्वी यादव से लड़ते हुए देखना है. महागठबंधन में तेजस्वी के अलावा राहुल गांधी भी हैं लेकिन पहले चरण के मतदान में अब सिर्फ गिनती का समय बच गया है. चुनाव मैदान में वहां से कोई आया भी नहीं है और बिहार की सियासत में चर्चा में भी नहीं है. सियासत में अगर कुछ चर्चा में है तो तेजस्वी और सियासी चर्चा का विषय. अगर कुछ बन रहा है तो तेजस्वी की नीतियां. वजह साफ है कि भाजपा की नीति हो या नीतीश की जदयू का मामला हो या फिर मोदी का इन सभी चीजों पर बोल सिर्फ तेजस्वी रहे हैं. और जवाब देने के लिए जदयू और भाजपा की पूरी फौज खड़ी हो जा रही है.

2020 में कुछ नया होने वाला है
तेजस्वी यादव बिहार की सियासत में 2020 के ब्रांड क्वेश्चन क्रिएटर हो गए हैं. अब जब सियासी रगड़ जनता के मन के पास पहुंच चुकी है, तो नेताओं का निजी हमला करना भी लाजमी है. लेकिन सोच तो सियासी धुरंधरों को लेना ही चाहिए कि 2012 में जिस तरीके से नरेंद्र मोदी के पीछे पूरी यूपीए सरकार पड़ी थी. उसमें सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी की ब्रांडिंग हुई थी . 2020 में जिस तरीके से नरेंद्र मोदी की पूरी ब्रिगेड तेजस्वी के पीछे पड़ी है उससे कुछ न कुछ तो होगा यह तय है. कितना होगा यह तो परिणाम बताएगा. लेकिन एक बात तो साफ है कि तेजस्वी जिस तरीके की सियासत कर रहे हैं और सियासत दान जिस तरीके से उन से लड़ रहे हैं राजनीति में कुछ ना कुछ तो नया होने वाला है.

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