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चाइनीज प्रोडक्ट के कारण पुश्तैनी धंधा छोड़ने को मजबूर कुम्हार, रोजी रोटी पर आई आफत

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Published : Oct 19, 2019, 3:29 PM IST

साल में एक बार आने वाली दीपावली के लिए दीये बनाने का काम 2 या तीन महीने पहले से शुरू हो जाता है. इसके लिए पूरा परिवार बच्चे-बुजुर्ग सभी दिन रात एक कर दीये बनाने का काम करते हैं. लेकिन बाजार में मिट्टी के दीये की मांग कम होने से कुम्हारों में मायूसी है.

डिजाइन इमेज

नवादाःदीपावली के लिए कुम्हारों के घरों में दीये बनाने की तैयारी तीन-चार महीने पहले ही शुरू हो जाती है. इन्हें पूरे साल में एक बार अच्छी कमाई की उम्मीद होती है. लेकिन कुम्हारों की इन उम्मीदों पर धीरे-धीरे पानी फिरता दिख रहा है. क्योंकि अब बाजार में चाइनीज लाइट्स और दीये की बिक्री ज्यादा होने लगी है. यही वजह है कि इस पेशे से जुड़े लोग अपना पुश्तैनी काम छोड़ने को मजबूर हैं.

बर्तन बनाती महिला

मिट्टी के दीये की मांग हुई कम
जिले के गोंदापुर चौक पर रहने वाले कुम्हार पिछले कई सालों से दीपावली के दीये बनाने का काम कर रहे हैं. उनका यह पुश्तैनी पेशा है. जिससे वो अपने परिवार का खर्चा चलाते हैं. लेकिन कुछ दशकों से इनकी आमदनी पर डाका पड़ गया है. जहां इस पेशे से पहले अच्छी आमदनी हो जाती थी. वहीं, आज चाइनीज लाइट्स की बाजार में बढ़ती मांगों से इनकी आमदनी कम हो गई है. जब से चाइनीज लाइट बाजार में आई है, तबसे मिट्टी के दीये की मांग कम हो गई है.

चाक पर दीये को आकार देता कुम्हार

लागत भी सही से नहीं निकल पाती
हिंदू सनातन धर्म में दीये की परंपरा को जीवंत रखने वाले कुम्हार जाति आज हाशिये पर पहुंच चुकी है. अब उन्हें इस पेशे में लागत भी सही से नहीं निकल पा रही है. जिसकी वजह से इनके बच्चे अब पुश्तैनी धंधे से मुंह मोड़ने लगे हैं. कुम्हार सिधेश्वर पंडित का कहना है कि जबसे चाइनीज लाइट्स की मांग बढ़ गई है, तब से उनके बच्चे इस पेशा से दूर होने लगे है.

स्पेशल रिपोर्ट

दीये की कम बिक्री से परेशान हैं कुम्हार
साल में एक बार आने वाली दीपावली के लिए दीये बनाने का काम 2 या तीन महीने पहले से शुरू हो जाता है. इसके लिए पूरा परिवार बच्चे-बुजुर्ग सभी दिन रात एक कर दीये बनाने का काम करते हैं. लेकिन बाजार में घटते मिट्टी के दीये और उसके बर्तन के डिमांड से परेशान कारी देवी ये काम छोड़ने को मजबूर हैं. वो कहती हैं लागत भी सही से नहीं निकल पाता है. मिट्टी महंगी हो गई है. इसी से परिवार चलाते थे. अगर ऐसी हालत रही तो क्या करेंगे छोड़ना ही पड़ेगा, कहीं और मजदूरी करके कमा लेंगे.

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