नवादाः आधुनिक आंदोलन के जनक भारत रत्न जयप्रकाश नारायण की अविस्मरणीय स्मृतियों को संजोए एक ऐसा आश्रम जहां से आज भी स्वराज्य की खुशबू आती है. जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर सेखोदेवरा गांव में जयप्रकाशख नारायण की यादें आज भी ताजा हैं. इस गांव के हर शख्स में जेपी बसे हुए हैं, लेकिन देश के कई महापुरूषों की तरह उनके आश्रम की तरफ सरकार का ध्यान नहीं है.
पहाड़ियों की तलहट्टी में बसा यह गांव जेपी की स्मृतियों का प्रमुख केंद्र बना है. यहां स्थित जयप्रकाश नारायण के आश्रम में आकर ऐसा लगता है कि यहां वे आज भी अपने क्रांतिकारी भ्रष्टाचारमुक्त विचारों की अलख जला रहे हैं. इस आश्रम की स्थापना जेपी ने 1954 में की थी. आश्रम के एक कोने में निवास स्थान है जहां वो विनोवा भावे और देश के जानेमाने व्यक्त्वियों के साथ रणनीति बनाया करते थे.
उनके निवास स्थान के पीछे वाले हिस्से में एक फूस की कुटिया बनी हुई है जहां अपने शुभचिंतक और आम लोगों से मिलते रहते थे. इस आश्रम में ऐसी कई चीजें रखी हैं जो उनके सादा जीवन को जीवांत कर रही हैं.
जेपी कैसे पहुंचे सेखोदेवरा
जयप्रकाश नारायण ने आजादी से पहले महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. इस दौरान अंग्रेजों ने उन्हें हजारीबाग जेल में बंद कर दिया गया, लेकिन उनके जेहन में आजादी की आग धधकती रही और वे जेल से फरार हो गए. वहां से वे कौआकौल के पहाड़ो पर आकर छिप गए. वहां उन्होंने सेखोदेवरा गांव के लोगों की हालत देख उनके आर्थिक उत्थान में लग गए.