बिहार

bihar

90 साल की मां अपने बेटे के इलाज के लिए लगा रही गुहार, सुन भी लीजिए सरकार

By

Published : May 24, 2020, 12:58 PM IST

Updated : May 24, 2020, 1:11 PM IST

दुखों का पहाड़ जब टूटता है, तो सभी रास्ते बंद हो जाते हैं. कुछ ऐसी तस्वीरें गोपालगंज के राघो के टूटी-फूटी झोपड़ी बयां कर रही है. कोरोना काल में जहां आम आदमी पर आर्थिक संकट है. तो वहीं राघो राम और उसकी बूढ़ी मां पर अब दोगुनी मुसीबत आन पड़ी है.

गोपालगंज से अटल की रिपोर्ट
गोपालगंज से अटल की रिपोर्ट

गोपालगंज :जिले के श्याम सिनेमा रोड निवासी राघो राम पिछले पांच सालों से बिस्तर पर पड़ा हुआ है. दिल्ली में काम करने गया राघो एक हादसे का शिकार हो गया था. जिसके बाद वो लकवे का शिकार हो गया और उसके पूरे शरीर ने काम करना बंद कर दिया. पति को ऐसी हालत में देख पत्नी भी बीमार रहने लगी और एक दिन उसने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया. आलम यह है कि दो बेटे उसका साथ छोड़ गए हैं और बूढ़ी मां उसकी देख-रेख कर रही है.

राघो राम की दास्तां सुन आंखें भर आती है. दरअसल, बेटी की शादी के लिए राघो राम ने कर्ज लिया और उसे चुकाने के लिए दिल्ली में काम करने गया था. अब उसकी वो बेटी उसकी सुध तक नहीं लेती. दो बेटे थे, जिनका कुछ अता-पता नहीं है. अब साथ है, तो 90 साल की बूढ़ी मां. मां, जिसकी ममता की छांव में राघो अपने बेजान शरीर के साथ खाट पर पड़ा हुआ है.

गोपालगंज से अटल की रिपोर्ट

फैक्ट्री में हुआ हादसा
साल 2015 के अक्टूबर महीने में राघो अपनी बेटी के शादी के लिए किसी से 70 हजार रुपये कर्ज लिए थे. उसने इस कर्ज को चुकाने के लिए दिल्ली स्थित एक फैक्ट्री में काम तलाश लिया. इसी फैक्ट्री में एक दिन मशीन की चपेट में आकर राघो बुरी तरह जख्मी हो गया. ठेकेदार ने प्राथमिक उपचार करा राघो को गोपालगंज भेज दिया. लेकिन शरीर ज्यादा जख्मी था और इलाज के लिए रुपया कम. लिहाजा, जख्म तो भर गए लेकिन राघो के शरीर को लकवा मार गया.

इस टूटी-फूटी झोपड़ी में रहते हैं मां-बेटे

दाने-दाने को मोहताज राघो का परिवार
वहीं, सूदखोर कर्जे की डिमांड करने लगे. इसके चलते उनकी पत्नी कुंती काफी परेशान रहने लगी और बीमार हो गई. कुछ दिन बाद वो भी दुनिया छोड़कर चली गई. कुंती की मौत के बाद परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया. हालांकि, बेटी ने कुछ दिन मदद की लेकिन बाद में उसने भी साथ छोड़ दिया. दो बेटे थे, जो न जाने कहां भटक गए उनका कुछ अता-पता नहीं है.

कुछ ऐसे जिलेबा रखती है बेटे का ख्याल

बूढ़ी मां रो पड़ती है
राघो के इस हालात में बस एक मां है, जो उसका सहारा बनी हुई है. 90 साल की जिलेबा कुंवर बेटे की इस हालत को देख हर रोज आंसू बहाती है. उसे दैनिक कार्यों से लेकर खाना खिलाती है. जिलेबा का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है. जिलेबा कहती है, 'कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. कौन मदद करेगा. मैं लाचार हूं. आस-पड़ोस वाले कुछ खाने को दे देते हैं. बेटा सही हो जाए, बस.

नहीं थमते जिलेबा के आंसू

राघो कहता है कि उसका पूरा परिवार बिखर गया है. दवा नहीं हो रही है. खाने के लिए आसपास के लोग जो कुछ देते हैं, उसी से पेट की भूख मिट रही है.

नहीं मिली सरकारी मदद
झोपड़ी में रह रहे राघो और उसकी मां को किसी प्रकार की कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. राशन कार्ड भी नहीं है. पीने के पानी से लेकर शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है. राघो कहता है कि वो जीना चाहता है. लेकिन इलाज के लिए पैसे नहीं है. उसने बताया कि दिव्यांगता प्रमाण पत्र तो बना है लेकिन पेंशन अभी तक नहीं मिली. राघो ने मदद की गुहार लगाते हुए कहा कि कोई उसका इलाज करा दे, ताकि वो कुछ दिन अपनी बूढ़ी मां की सेवा कर सके. वो अपने आप को अभागा बताते हुए कहता है कि ये मेरा दुर्भाग्य है कि मां को मेरी सेवा करनी पड़ रही है.

Last Updated : May 24, 2020, 1:11 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details