गया: गया जी में लाखों पिंडदानी अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान कर रहे हैं. ये परंपरा हजारों साल पुरानी है. ऐसे में पिंडदान करने आए लोग 'पितृदण्ड' को अपने साथ लेकर चलते हैं. वे दण्ड को लाल या सफेद कपड़े में बांधकर उसको कंधे पर लेकर चलते हैं. ये पितृदण्ड हर क्षेत्र में अलग-अलग विधि-विधान से किया जाता है, लेकिन कोई भी पिंडदानी पितृदण्ड को कंधे से नहीं उतारता.
क्या है 'पितृदण्ड'
पितरों को मोक्ष दिलाने देश-विदेश से श्रद्धालु गया जी आते हैं. गया मोक्ष धाम में पितरों का वास होता है. युगों-युगों से यहां पिंडदान किया जाता रहा है. हजारों सालों से चलती आ रही परंपरा आज इस आधुनिक युग में भी जिंदा है. ऐसे में पितृदण्ड, एक ऐसी ही परंपरा है जिसमें पितरों को आह्वान करके फिर कपड़े में बांधकर पितरों का उसमें वास करवाया जाता है. पिंडदानी घर से निकलने से लेकर पिंडदान की समाप्ति तक उस पितृदण्ड को स्वच्छता और सुरक्षित पूर्वक रखते हैं.
कंधे पर ले जाने की परंपरा
इस साल पितृपक्ष में पिंडदानियों को कंधों पर पितृदण्ड ले जाते देखा जा रहा है. पिंडदानी पितृदण्ड को विभिन्न पिंडवेदियों में ले जाते हैं. सिवान से आए एक श्रद्धालु ने बताया कि घर पर दो दिन तक पूजा करवाने के बाद पितृदण्ड को बनाया गया है. उसके बाद पितृदण्ड को पूरे गाजे-बाजे के साथ घुमाया गया. उन्होंने बताया कि वे लोग पितृदण्ड को निकलने से लेकर पिंडदान समाप्त होने तक कंधे पर रखते हैं. अगर कोई दूसरा काम करना है तो पितृदण्ड को अपने किसी दूसरे व्यक्ति को दे देना चाहिए. जमीन पर उसे नहीं रखना चाहिए.