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गया: हजारों साल पुरानी परंपरा का आज भी निर्वहन कर रहे हैं पिंडदानी, जानें क्या है 'पितृदण्ड'

जो एक दिवसीय पिंडदान करते हैं, वो पितृदण्ड की परंपरा को नहीं निभाते हैं. जो त्रिदिवसीय पिंडदान करते हैं, वो इसकी परंपरा को निभाते हैं. जिले में प्रेतशिला जाने के क्रम में हर पिंडदानी पितृदण्ड को लेकर जाता है. 17 दिवसीय पिंडदान में पिंडदानी 17 दिनों तक पितृदण्ड का कर्मकांड करते हैं.

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Published : Sep 20, 2019, 7:51 PM IST

पिंडदान की खबर

गया: गया जी में लाखों पिंडदानी अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान कर रहे हैं. ये परंपरा हजारों साल पुरानी है. ऐसे में पिंडदान करने आए लोग 'पितृदण्ड' को अपने साथ लेकर चलते हैं. वे दण्ड को लाल या सफेद कपड़े में बांधकर उसको कंधे पर लेकर चलते हैं. ये पितृदण्ड हर क्षेत्र में अलग-अलग विधि-विधान से किया जाता है, लेकिन कोई भी पिंडदानी पितृदण्ड को कंधे से नहीं उतारता.

क्या है 'पितृदण्ड'
पितरों को मोक्ष दिलाने देश-विदेश से श्रद्धालु गया जी आते हैं. गया मोक्ष धाम में पितरों का वास होता है. युगों-युगों से यहां पिंडदान किया जाता रहा है. हजारों सालों से चलती आ रही परंपरा आज इस आधुनिक युग में भी जिंदा है. ऐसे में पितृदण्ड, एक ऐसी ही परंपरा है जिसमें पितरों को आह्वान करके फिर कपड़े में बांधकर पितरों का उसमें वास करवाया जाता है. पिंडदानी घर से निकलने से लेकर पिंडदान की समाप्ति तक उस पितृदण्ड को स्वच्छता और सुरक्षित पूर्वक रखते हैं.

कंधे पर 'पितृदण्ड' ले जाते पिंडदानी

कंधे पर ले जाने की परंपरा
इस साल पितृपक्ष में पिंडदानियों को कंधों पर पितृदण्ड ले जाते देखा जा रहा है. पिंडदानी पितृदण्ड को विभिन्न पिंडवेदियों में ले जाते हैं. सिवान से आए एक श्रद्धालु ने बताया कि घर पर दो दिन तक पूजा करवाने के बाद पितृदण्ड को बनाया गया है. उसके बाद पितृदण्ड को पूरे गाजे-बाजे के साथ घुमाया गया. उन्होंने बताया कि वे लोग पितृदण्ड को निकलने से लेकर पिंडदान समाप्त होने तक कंधे पर रखते हैं. अगर कोई दूसरा काम करना है तो पितृदण्ड को अपने किसी दूसरे व्यक्ति को दे देना चाहिए. जमीन पर उसे नहीं रखना चाहिए.

ट्रेन में 'पितृदण्ड' के लिए होती है अलग से रिजर्वेशन

उड़ीसा से पितृदण्ड लेकर आया एक परिवार
उड़ीसा से एक परिवार पितृदण्ड को लेकर पिंडदान करने आया है. यह परिवार सात पीढ़ियों का पिंडदान करने गया जी आया है. ताज्जूब की बात तो यह है कि यह परिवार पितृदण्ड को कंधे पर नहीं रखता है, बल्कि पितृदण्ड को रखने के लिए ट्रेन में उसका कंफर्म टिकट करवा कर आया है. पितरों के प्रति श्रद्धा और परंपरा के निर्वहन के लिए मित्तल परिवार पितृदण्ड के लिए गया जी आया है.

पिंडदान में पूरानी परंपरा है 'पितृदण्ड'

पितृदण्ड के लिए अलग से रिजर्वेशन
पिंडदानी ने बताया कि ट्रेन में आने के क्रम में कोच के बर्थ पर पितृदण्ड को लिटा कर लाया गया है. इसी बीच ट्रेन में टीटीई ने पूछा कि यह क्या है तो हमने उन्हें बताया कि इसमें हमारे पूर्वजों की आत्मा है. जिसे पितृदण्ड कहते हैं. परिवार के सदस्य रास्ते में पितृदण्ड को दो-दो घंटे पहरा देते हैं. ताकि पितृदण्ड को किसी तरह की कोई परेशानी न हो. साथ ही, उनकी पवित्रता से कोई छेड़छाड़ न हो. ऐसे में इसके विधि-विधान का पूरा ध्यान रखा जाता है.

एक दिवसीय पिंडदान में पितृदण्ड नहीं
जो एक दिवसीय पिंडदान करते हैं, वो पितृदण्ड की परंपरा को नहीं निभाते हैं. जो त्रिदिवसीय पिंडदान करते हैं, वो इसकी परंपरा को निभाते हैं. जिले में प्रेतशिला जाने के क्रम में हर पिंडदानी पितृदण्ड को लेकर जाता है. 17 दिवसीय पिंडदान में पिंडदानी 17 दिनों तक पितृदण्ड का कर्मकांड करते हैं.

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