बालोद: 5 दिसंबर से 7 दिसंबर तक बालोद के बाघमार में स्वतंत्रता सेनानी कंगला मांझी की पुण्यतिथि मनाई जा रही है. हीरा सिंह देव ऊर्फ कंगला मांझी ने स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों की नाकों में दम कर दिया था. सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज से प्रभावित होकर कंगला मांझी ने 1942 अपनी शांति सेना बनाई. कंगला मांझी की शांति सेना ने आजादी के आंदोलन में छत्तीसगढ़ में बड़ा आंदोलन खड़ा किया. मांझी सरकार के पास वर्तमान में 2 लाख से ज्यादा देशभर में वर्दीधारी सैनिक हैं. बिना हथियार के मांझी सरकार की सेना ने अंग्रेजों को पानी पिला दिया था.
कंगला मांझी की 40वीं पुण्यतिथि: स्वतंत्रता सेनानी कंगला मांझी की पुण्यतिथि पर तीन दिनों तक चलने वाले आयोजन में हजारों लोग शामिल होते हैं. कंगला मांझी को श्रद्धांजलि देने वाले बालोद के बाघमार आकर उनको नमन करते हैं. साल 1913 में कंगला मांझी आजादी के आंदोलन से जुड़ चुके थे. साल 1914 में उनकी मुलाकात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से हुई. गांधी जी से मुलाकात के बाद वो पूरी तरह से आजादी के आंदोलन से जुड़ गए.
बाघमार में लगता है मेला: बालोद जिले में घने जंगलों के बीच बसा एक गांव हैं बाघमार यहां हर साल तीन दिनों के लिए बड़ा मेला लगता है. मेले में यहां खिलौने और मिठाईयां नहीं मिलती बल्कि यहां मिलते हैं सैनिकों के सामान. मेले में बैग, वर्दी, बूट, बेल्ट, सेना की रैंक वाले प्रतीक चिन्ह. बघमार के मेल में आने वाले लोग बड़े चाव से इसे खरीदते हैं. स्वतंत्रता सेनानी कंगला मांझी की पुण्यतिथि पर लगने वाले इस मेले में हर दिन हजारों लोग पहुंचते हैं.
जल जंगल जमीन की करते हैं रक्षा:आदिवासियों के लिए जल,जंगल,जमीन के संरक्षण और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार आज भी आदिवासी परंपरा और समाज के उत्थान के लिए काम कर रही है. वर्तमान में मांझी सरकार के पास 2 लाख से ज्यादा वर्दीधारी सैनिक हैं. देश सेवा के काम में ये सैनिक हमेशा तत्पर रहते हैं.