कोरबा :आपने दिवाली के दौरान घरों में साफ-सफाई और रंगरोगन होते देखा होगा.लोग मिठाईयां बनाकर,दीये जलाकर इस पर्व को मनाते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा रखने वाले आदिवासी पहाड़ी कोरवा और बिरहोर समुदाय के लोग अनोखे तरीके से दिवाली मनाते हैं. जहां एक ओर पूरी दुनियां अपने घरों को सजाकर दिवाली मनाती है,वहीं दूसरी ओर कोरवा और बिरहोर समुदाय के लोग अपने घरों को तोड़कर दिवाली मनाते हैं.
विरासत में मिली है यह परंपरा :जिला मुख्यालय से अंतिम छोर पर बसे लेमरू क्षेत्र के गांव कोराई, देवपहरी, देवदुआरी और छाताबहार में निवास करने वाले पहाड़ी कोरबा समुदाय के लोग दिवाली के दिन अपने घरों को तोड़ देते हैं. इसके बाद सगे संबंधियों को बुलाकर मृत्युभोज का इंतजाम करते हैं. ताकि पूर्वजों की आत्मा को शांत कर सकें.
जिस घर में हमारे किसी भी रिश्तेदार, पूर्वज की मौत हो जाती है. उसे हम तोड़ देते हैं. उस घर को तोड़ने के लिए हम दिवाली के दिन को ही चुनते हैं. दिवाली के दिन घर को तोड़कर क्रियाकर्म कर करके फिर नए घर में प्रवेश करते हैं. फिर इसी दिन नए घर को बनाने की शुरुआत भी करते हैं. यह परंपरा हमें पूर्वजों से मिली है. पुरातन काल से हम इसका पालन करते आ रहे हैं- बुधवार साय, ग्रामीण
परंपरा नहीं छोड़ना चाहते आदिवासी : वनांचल गांव देवदुआरी के निवासी बिरहोर समुदाय से आने वाले दिल राम कहते हैं कि हम गरीब आदिवासी जंगलों में ही रहते हैं. दिवाली का त्योहार हम वैसे नहीं मनाते जैसे अब मनाते हैं, बल्कि इस दिन हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं. परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर हम उसे मिट्टी देते हैं.इसके बाद दिवाली के दिन ही उस घर को तोड़ देते हैं. जिसमें किसी परिजन की मृत्यु हुई थी. हमारा घर मिट्टी का झोपड़ी का होता है, इसलिए उसे तोड़कर हम दूसरे स्थान पर घर बना लेते हैं. जिस घर में किसी पूर्वज की मौत होती है. हम वहां नहीं रहते. हमारे सियान लोगों से यह परंपरा हमें विरासत में मिली है.
मैं जब छोटा था तब बचपन में ही मेरे मां-बाप की मौत हो गई थी. इसके बाद किसी तरह बिना मां बाप के मेरा पालन पोषण हुआ. आज मैं अपने परिवार को आगे बढ़ा रहा हूं. कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, लेकिन अपने पूर्वजों से मिली परंपरा को भी नहीं छोड़ा. हम चाहते हैं कि यह परंपरा आगे भी जारी रहे. जो हमें पूर्वजों से मिली है, उसे हम नहीं छोड़ना चाहते-दिल राम, बिरहोर समुदाय